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बड़ा सवाल ! CBI जांच बिहार में हमेशा फेल, अभी तक इन मामलों में नतीजा रहा सिफर

राज्य में जब भी कोई बड़ी घटना या घोटाला होता है, तो सीबीआइ जांच की मांग पुरजोर तरीके से उठने लगती है. बिहार कर्मचारी चयन आयोग के परचा लीक मामले में भी सीबीआइ जांच की मांग जोर पकड़ रही है, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मांग को सिरे से खारिज कर चुके हैं. पिछले एक […]

राज्य में जब भी कोई बड़ी घटना या घोटाला होता है, तो सीबीआइ जांच की मांग पुरजोर तरीके से उठने लगती है. बिहार कर्मचारी चयन आयोग के परचा लीक मामले में भी सीबीआइ जांच की मांग जोर पकड़ रही है, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मांग को सिरे से खारिज कर चुके हैं. पिछले एक दशक का रिकॉर्ड देखें, तो राज्य सरकार ने सीबीआइ को 10 मामले ट्रांसफर किये. इनमें छह मामले स्वीकृत तो हो गये, पर जांच का नतीजा अब तक सिफर ही रहा है.
चर्चित ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड, सीवान के पत्रकार राजदेव हत्याकांड, मुजफ्फरपुर का नवरूणा हत्याकांड आदि मामले की सीबीआइ जांच चल रही है, पर अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है. बिहार सरकार ने पिछले एक दशक में कितने मामलों को सीबीआइ जांच के लिए ट्रांसफर किया और इनका क्या हाल हुआ, इसकी पूरी हकीकत की पड़ताल कर रहे हैं हमारे वरीय संवाददाता कौशिक रंजन .
पटना : पिछले एक दशक के दौरान बिहार सरकार ने सीबीआइ को जांच के लिए 10 मामले ट्रांसफर किये. इनमें छह मामले स्वीकृत हुए और चार मामलों को सीबीआइ ने अस्वीकृत कर दिया. यानी छह मामलों को स्वीकार करने के बाद सीबीआइ ने इनकी जांच अपने स्तर पर बिल्कुल शुरुआत से की, लेकिन इनमें सभी मामलों का नतीजा अभी तक सिफर ही रहा है.
सीबीआइ के पास ट्रांसफर हुए सभी छह मामले बेहद चर्चित हैं और इनमें बड़ी राजनीतिक साजिश या किसी न किसी बड़े सफेदपोश के शामिल होने की बात कही जा रही है. इसमें ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड, सीवान के पत्रकार राजदेव हत्याकांड, मुजफ्फरपुर का नवरूणा हत्याकांड समेत अन्य मामले बेहद प्रमुख हैं. इन सभी चर्चित मामलों में बिहार पुलिस ने एसआइटी का गठन किया था और दर्जनों आरोपितों की गिरफ्तारी भी की थी, लेकिन मामला सीबीआइ के पास ट्रांसफर होने के बाद इनकी जांच फिर से नये सिरे से शुरू की गयी, कुछ आरोपितों की गिरफ्तारी भी हुई, लेकिन न कोई ठोस नतीजा निकला और न ही किसी मुख्य अभियुक्त की गिरफ्तारी ही हो पायी है. सारे मामले मजधार में लटके हुए हैं. सीबीआइ कोई ठोस नतीजा नहीं निकाल पाया है. इन चर्चित मामलों की जांच सीबीआइ के पास लटके रहने के बावजूद जब कोई इस तरह का कोई बड़ा मामला प्रकाश में आता है, तो फिर से सीबीआइ जांच की मांग शुरू हो जाती है.
सीएम बोले : फैशन बन गयी है सीबीआइ जांच की मांग
विपक्ष के साथ-साथ आइएएस एसोसिएशन बिहार कर्मचारी चयन आयोग पेपर लीक मामले की सीबीआइ जांच की मांग कर रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीबीआइ जांच की मांग को खारिज कर दिया है. जदयू विधानमंडल दल की बैठक और बिहार विधानमंडल में जवाब देते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि किसी भी मामले की सीबीआइ जांच की मांग का फैशन चल गया है. सीबीआइ में भी तो पुलिस सर्विस वाले ही होते हैं.
कभी-कभी लगता है कि सीबीआइ जांच की मांग किसी अनुसंधान की जो प्रगति रहती है, उसमें बाधा डालने का तो नहीं होता है. मुख्यमंत्री ने कहा कि सीबीआइ को बिहार के कई मामले दिये गये. जांच होती है, लेकिन उसमें प्रगति आगे नहीं बढ़ती है. ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड में मेरी खूब आलोचना हो रही थी. इस हत्याकांड की जांच के लिए सीबीआइ की अनुशंसा की गयी थी, लेकिन उन्होंने इसे लौटा दिया. दोबारा फिर प्रयास किया गया कि जो लोग इस मामले में बच रहे हैं, उन्हें पकड़ा जाये और लोगों को संतोष मिले. इस बार सीबीआइ ने अनुशंसा को मान लिया और सीबीआइ जांच शुरू हुई, लेकिन पुलिस ने जो जांच की थी उससे कोई नया तथ्य आगे नहीं आया. नवरूणा मामले में सीबीआइ ने कोई प्रगति नहीं की.
ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड
पांच साल से जांच, मुख्य अभियुक्त की तलाश जारी
आरा जिले के नवादा थाना क्षेत्र में रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया उर्फ ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या जून, 2012 में कर दी गयी थी. सुबह अपने घर से मॉर्निंग वॉक करके लौटने के बाद घर के पास ही उनकी हत्या कर दी गयी थी. इसके बाद पूरे राज्य में काफी बड़ा बवाल मचा था.
राजनीतिक और जातिगत स्तर पर काफी बड़ा गतिरोध पैदा हो गया था. राज्य पुलिस ने मामले की जांच के लिए एक एसआइटी का गठन किया था. परंतु इस हत्याकांड को राजनीतिक हत्या करार देते हुए इसकी जांच केंद्रीय जांच एजेंसी से कराने की मांग हर मोरचे पर उठने लगी. इसके बाद राज्य सरकार ने घटना होने के सात-आठ दिन बाद इसकी जांच का जिम्मा सीबीआइ को सौंप दिया. सीबीआइ ने मामले को स्वीकृत करने के बाद इसकी जांच भी शुरू कर दी , लेकिन पांच साल बाद भी इसकी जांच में कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका है. अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ कि हत्याकांड के पीछे मास्टरमाइंड कौन है या किसके इशारे पर गोली मारी गयी थी. हत्या के पीछे का मकसद राजनीतिक था या व्यक्तिगत, यह भी अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है.
हालांकि हत्याकांड में गोली मारने में सहयोग करने वाले फौजी पांडे समेत दो-तीन साजिशकर्ता की गिरफ्तारी सीबीआइ ने की है. अभी तक मुख्य साजिशकर्ता और इस हत्याकांड के पीछे जिन कुछ सफेदपोशों के नाम सामने आने के कयास लग रहे थे, उनके नाम अभी तक सामने नहीं आये हैं. इस मामले में किसी बड़े या रसूखदार लोगों के नाम सामने नहीं आये हैं. सीबीआइ को मामला ट्रांसफर होने के बाद इसमें बड़े खुलासे या बड़े नाम सामने आने की संभावना हर कोई लगाने लगा था, लेकिन पांच साल बाद भी ऐसा कुछ नहीं हो सका है. इस मामले की जांच चल ही रही है.
ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड मामले मेंसीबीआइ ने असली हत्यारे को पकड़ने के लिए दिसंबर 2016 में सभी मुख्य हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए 10 लाख रुपये का इनाम तक जारी किया है. हत्यारों का सुराग देने वालों या उन्हें गिरफ्तार करवाने वालों को यह इनाम देने की घोषणा की गयी थी. इस मामले के एक मुख्य आरोपित फौजी पांडे उर्फ नंद गणेश पांडेय को जुलाई 2016 में जमुई और आरा पुलिस ने संयुक्त रूप से जमुई एसपी के आवास के पास से गिरफ्तार किया था. फौजी पर भी 50 हजार रुपये का इनाम था. गिरफ्तारी के बाद सीबीआइ भी इससे कई बार पूछताछ कर चुकी है. परंतु अभी तक उससे कुछ विशेष जानकारी हासिल नहीं कर पायी है. सीबीआइ की जांच में यह भी सामने आया कि फौजी की संलिप्तता इस मामले में बहुत ज्यादा नहीं थी. वह इस हत्याकांड का कोई प्रमुख अभियुक्त नहीं है. सीबीआइ को अभी तक इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त की तलाश जारी है.
राजदेव हत्याकांड
सीवान में एक दैनिक अखबार के ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन की हत्या के मामले का खुलासा सीबीआइ अब तक नहीं कर पाया है. 13 मई, 2016 को उस समय उसकी हत्या कर दी गयी थी, जब वह शाम को अपने कार्यालय से निकलकर घर जा रहे थे. हत्या के बाद काफी हंगामा शुरू हो गया था.
सीवान में फिर से बाहुबली सांसद मो. शहाबुद्दीन के वर्ष 2000-04 के समय के खौफनाक और निरंकुश समय को याद किया जाने लगा. राज्य सरकार ने इस मामले की जांच के लिए सीवान एसपी के नेतृत्व में एक एसआइटी का गठन किया. एसआइटी ने राजदेव को गोली मारने वाले पांच शूटरों रोहित कुमार, विजय कुमार, राजेश कुमार, विष्णु कुमार और सोनू कुमार गुप्ता और हत्याकांड के चार साजिशकर्ता को भी गिरफ्तार किया, लेकिन इस हत्याकांड में पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन की संलिप्तता होने या उनके इशारे पर ही हत्या को अंजाम देने की बात कही जा रही है. क्योंकि इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड के रूप में लड्डन मियां को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. लड्डन मियां शहाबुद्दीन का शूटर और बेहद करीबी गुर्गा है. शहाबुद्दीन के करीबियों ने राजदेव की पत्नी को फोन पर धमकी भी देनी शुरू कर दी थी. इसके बाद इस हत्याकांड में शहाबुद्दीन के शामिल होने की बात पूरी तरह से कही जाने लगी.
यह भी कहा जाने लगा कि पुलिस की जांच टीम शहाबुद्दीन तक नहीं पहुंच पायेगी. इस तमाम हंगामे के बीच राज्य सरकार ने जांच को ट्रांसफर करने की अनुशंसा मई अंत में ही कर दी. परंतु पूरे मामले को सितंबर, 2016 में सीबाआइ ने टेक-ओवर किया. सीबीआइ ने मामले को स्वीकार करने के बाद इसकी जांच शुरू की. इसके बाद सीबीआइ की छह-सात सदस्यीय टीम भी इस मामले की जांच करने के लिए सितंबर में ही सीवान पहुंची. एक सप्ताह से ज्यादा समय तक सीवान में डेरा डालकर इस नौ सदस्यीय विशेष टीम ने हत्याकांड से जुड़े तमाम पहलुओं, स्थानों और लोगों से पूछताछ की.
इस मामले में सिर्फ पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन और मृतक की पत्नी समेत अन्य किसी परिजन से किसी तरह की कोई पूछताछ नहीं की है. इस जांच के बाद यह कहा जाने लगा कि अगली बार जब टीम आयेगी, तो वह सवालों की फेहरिस्त के साथ आयेगी और तब पूर्व सांसद से तमाम पहलुओं पर पूछताछ कर सकती है. परंतु सिर्फ कयास ही रह गया. सीबीआइ ने आज तक न शहाबुद्दीन से पूछताछ की है और न ही इस मामले में कोई ठोस निष्कर्ष ही निकाल पाया है. सीबीआइ टीम ने बक्सर जेल में बंद हत्याकांड के प्रमुख सूत्रधार लड्डन मियां समेत अन्य सभी गिरफ्तार आरोपितों से कई बार कई घंटों तक पूछताछ की, लेकिन कोई खास नतीजा नहीं आया. हालांकि सीबीआइ ने आधिकारिक रूप से इस मामले में कोई भी खुलासा नहीं किया है.
आरोप : सीबीआइ ने टेकओवर करने में कर दी देरी
पत्रकार हत्याकांड मामले में बिहार पुलिस मुख्यालय ने सीबीआइ पर आरोप भी लगाया कि उसने राजदेव हत्या मामले की जांच को टेक-ओवर करने में देरी की है. 16 मई को ही राज्य सरकार ने टेक-ओवर करने की अनुशंसा कर दी थी. बिहार पुलिस ने तो ससमय कार्रवाई की, लेकिन सीबीआइ की तरफ से ही अनुसंधान का प्रभार लेने में देरी की गयी. गौरतलब है कि बिहार पुलिस की तरफ से अनुशंसा करने के बाद जांच शुरू करने का निर्णय लेने में सीबीआइ को पांच महीने का समय लग गया. मुख्यालय ने कहा कि इस हत्या से संबंधित अनुसंधान एवं अपेक्षित कार्रवाई करने के लिए सीबीआइ को समूचे बिहार में शक्तियों एवं अधिकारिता के प्रयोग के लिए सहमति दे दी गयी है.
अब तक नहीं सुलझ पायी है मर्डर मिस्ट्री की गुत्थी
बिहार के सबसे चर्चित हत्याकांडों में से एक नवरूणा मामले की गुत्थी को सीबीआइ अब तक नहीं सुलझा पाया है. 18 सितंबर, 2012 को 10वीं की छात्रा नवरूणा को उसके घर के पास से किडनैप कर लिया गया था. जमीन के टुकड़े के लिए एक बंगाली परिवार की लड़की का अपहरण कर बाद में उसकी हत्या कर दी गयी. उसकी लाश आज तक नहीं बरामद हुई है.
एक कंकाल बरामद हुआ है, जिसकी डीएनए जांच के बाद इसे नवरूणा का साबित कर दिया गया. करोड़ों रुपये की जमीन के टुकड़े के लिए इस हाइ प्रोफाइल मर्डर मिस्ट्री में पुलिस के अाला अधिकारियों, कुछ नामचीन नेताओं से लेकर अन्य कई नामचीन लोगों के शामिल होने की बात सामने आयी है. हालांकि किसी के बारे में न कोई ठोस सबूत बरामद हुए और न ही कोई बड़ी गिरफ्तारी ही हुई है. काफी हंगामे के बाद यह मामला सितंबर, 2013 को सीबीआइ के पास पहुंच गया. इसके बाद से इसकी जांच लगातार सीबीआइ की कई टीमें कर रही हैं, लेकिन आज तक यह मामला मिस्ट्री ही बना हुआ है. कोई बड़ा नाम और कोई बड़ा खुलासा इतने साल बाद भी नहीं हो पाया है. बिहार का यह एकमात्र ऐसा मामला है, जिसमें डीएसपी, दो इंस्पेक्टर समेत अन्य कई लोगों के ‘पॉलीग्राफिक या नॉरको एनालेसिस टेस्ट’ तक कराया जा चुका है. इस टेस्ट में क्या जानकारी मिली है, इसका खुलासा अभी तक नहीं हुआ है. परंतु बड़े रसूखदारों के खिलाफ साक्ष्य पूरी तरह से नहीं जुटने के कारण जांच अंतिम पड़ाव पर नहीं पहुंच पा रहा है. हालांकि सीबीआइ की अब तक हुई जांच में यह तो स्पष्ट हो चुका है कि नवरूणा की हत्या कर दी गयी है.
इसके सबूतों से छेड़छाड़ करने में स्थानीय पुलिस वालों समेत अन्य लोगों की मिलीभगत सामने आयी है. बीच में इस बात की प्रबल संभावना दिखने लगी थी कि सीबीआइ इस कांड को अंजाम देने वाले बड़े चेहरों और जमीन माफियाओं समेत अन्य सभी दोषियों को दबोचने की जुगत में लग गयी है. परंतु यह कयास आज तक अंजाम तक नहीं पहुंच सका है. इस मामले में अब तक एकत्र किये सबूतों में छेड़छाड़ करने की बात सामने आ रही है. यह भी उजागर हुआ है कि पहले से बरामद किये गये सबूतों में बहुत बड़े स्तर पर छेड़छाड़ की गयी थी. इस कारण सीबीआइ को दोषियों खासकर बड़े चेहरों के खिलाफ सबूत जुटाने में बेहद मशक्कत करनी पड़ रही है. सूत्र बताते हैं कि सीबीआइ को उसकी हत्या होने के साक्ष्य पूरी तरह से मिल चुके हैं. वाबजूद इसके घटना होने के चार साल बाद भी नवरूणा के हत्यारों या अपहरणकर्ताओं की गिरफ्तारी नहीं हो पायी है. अब इसके साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने या इन्हें पूरी तरह से मिटाने की बात सामने आने लगी है.
विवाद : कंकाल को लेकर जांच एजेंसियों में एक मत नहीं
सीबीआइ का मानना है कि प्राप्त कंकाल के साथ छेड़छाड़ की गयी थी, जिसमें एफएसएलकी भूमिका भी हो सकती है. जबकि राज्य के एफएसएल (फॉरेंसिक साइंस लैब) का कहना है कि उसे कोई कंकाल बरामद ही नहीं हुआ था और न ही उसने कभी कंकाल की जांच की है. बरामदगी के बाद कंकाल को कुछ समय के लिए स्थानीय थाने में भी रखा गया था और इसकी जांच पीएमसीएच में करवायी गयी थी. परंतु उस दौरान नवरूणा के माता-पिता ने डीएनए सैंपल देने से मना कर दिया था, जिस कारण इसका मिलान नहीं हो सका था. सितंबर 2012 में जब नवरूणा का अपहरण हुआ था. शुरू के दो साल इसकी जांच राज्य पुलिस के पास ही थी.
…इसलिए सीबीआइ जांच में होती है देरी
सीबीआइ से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जो भी बड़े मामले सीबीआइ को ट्रांसफर किये जाते हैं, उनमें एक तो काफी देरी हो जाती है. इससे आरोपितों को बचने या साक्ष्यों को मिटाने का पर्याप्त समय मिल जाता है. कई बड़े चेहरे या रसूख वाले आरोपित पकड़ से काफी दूर भाग जाते हैं. दूसरी, नये सिरे से जांच शुरू करने के बाद सभी तथ्यों को फिर से जुटाना पड़ता है या इनकी पड़ताल नये सिरे से करनी पड़ती है. इसमें सबसे बड़ी बाधा आती है, तथ्यों को जुटाना. वह भी उन तथ्यों को, जिनके साथ छेड़छाड़ की गयी है.
चार मामलों को सीबीआइ ने कर दिया अस्वीकृत
पटना सिटी चौक थाने में व्यापारी पुत्र कुणाल कुमार के अपहरण की घटना अक्तूबर, 2016 में हुई थी. फिरौती वसूली के दौरान इसकी हत्या कर दी गयी थी. इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने के लिए गृह विभाग ने मार्च, 2015 में अनुशंसा भेजी थी, लेकिन सीबीआइ ने इसे अस्वीकृत कर दिया. इसके बाद इसकी जांच स्थानीय पुलिस ही कर रही है.
जमुई जिले के जमुई थाना क्षेत्र के ऐतिहासिक लछुआर मंदिर से भगवान महावीर की मूर्ति चोरी की घटना नवंबर, 2015 में हुई थी. इस मामले में अंतरराष्ट्रीय गिरोह के शामिल होने की बात कही जा रही थी. इसके बाद इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने के लिए दिसंबर, 2015 में अनुशंसा की गयी थी, लेकिन यह अस्वीकृत हो गयी. इसके बाद स्थानीय पुलिस ने इस मामले का खुलासा किया और चोरों को गिरफ्तार कर अंतरराज्यीय गिरोह का भंडाफोड़ किया था.
किशनगंज में सुजीत कुमार की मौत का मामला : जुलाई 2015 में हुई इस घटना के बाद जांच की अनुशंसा मई, 2016 में की गयी थी, लेकिन अस्वीकृत हो गया.
किशनगंज में सिंकु भारद्वाज की हत्या का मामला : जुलाई, 2015 में हुई इस घटना की जांच जनवरी, 2016 में सीबीआइ से कराने की अनुशंसा की गयी, लेकिन मामला अस्वीकृत हो गया.
चारा घोटाला : उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल हुई जांच में
बिहार के अब तक के सबसे चर्चित चारा घोटाले में सीबीआइ की जांच ने उल्लेखनीय भूमिका अदा की. इस जांच ने दो पूर्व मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक समेत दो दर्जन नामचीन समेत 35 से ज्यादा लोगों को सजा दिला दी. इसके बाद से सीबीआइ जांच के प्रति लोगों में ज्यादा विश्वास पैदा होने लगा. इसमें कोई भी बड़ा आदमी नहीं बचा था. इसी जद में पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, पूर्व सीएम लालू प्रसाद , पूर्व सांसद आरके राणा, पूर्व एमपी जगदीश शर्मा, पूर्व पशुपालन निदेशक श्याम बिहारी सिन्हा समेत 35 से ज्यादा लोगों को सजा हुई. हालांकि इस जांच में श्याम बिहारी सिन्हा समेत कई आरोपितों की मौत हो गयी है. वर्ष 1997 में यह मामला पहली बार उजागर हुआ था. इसके बाद से इसकी जांच और रांची स्थित सीबीआइ की विशेष न्यायालय में सुनवाई का सिलसिला जारी है. करीब 900 करोड़ के इस घोटाले में बड़े लोगों के नाम सामने आना जांच की बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है. इसी जांच के आधार पर हुई सजा का परिणाम है कि पूर्व सीएम लालू प्रसाद को चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लग गया है.
बेगूसराय हत्याकांड ठंडे बस्ते में पड़ी है जांच
बेगूसराय जिले में यह बहुचर्चित मामला वर्ष, 2012 में ही घटित हुआ था. यह मामला विजय लक्ष्मी उर्फ बिट्टू बनाम बिहार सरकार के बीच चला था. इस मामले में अप्रैल, 2015 में पटना हाइकोर्ट ने अहम आदेश भी पारित किये था. इसके बाद यह मामला सीबीआइ को ट्रांसफर कर दिया गया. इस मामले में स्थानीय स्तर के कुछ दबंग या बाहुबली लोगों के नाम प्रमुखता से सामने आ रहे थे. इस मामले की अभी तक कोई सुगबुगाहट ही नहीं है. सीबीआइ को मामला स्थानांतरित होने के बाद इसमें क्या हुआ, किसकी गिरफ्तारी हुई या जांच कहां तक पहुंची, इसकी कोई जानकारी नहीं है. मामले की जांच ठंडे बस्ते में पड़ गयी है.
पटना जंक्शन पोस्टल चोरी कांड
नहीं हो पाया खुलासा
यह मामला काफी पुराना है. इसमें 1994 में मामला दर्ज हुआ था. इसके तहत पटना जंकशन स्थित पोस्ट ऑफिस या आरएमएस कार्यालय से लाखों रुपये के स्टांप और पोस्टल ऑर्डर की चोरी हो गयी थी. उस समय इसे घोटाला के रूप में देखा जा रहा था. इस दौरान परीक्षा का फॉर्म भरने वाले कई छात्रों के फॉर्म से भी पोस्टल ऑर्डर की चोरी कर ली जाती थी. चोरी के इन पोस्टल ऑर्डरों को राज्य के बाहर ले जाकर फर्जी खाते के जरिये या इसे रद्द करवा कर भुगतान करवाया जाता था. इस तरह के गोरखधंधे में करोड़ों रुपये की हेर-फेर की गयी थी. इस मामले की शुरुआती जांच में ऊपर से लेकर नीचे तक के कर्मियों के शामिल होने की बात सामने आयी थी. मामला काफी चर्चित होने के बाद इसे सीबीआइ को ट्रांसफर कर दिया गया था. परंतु मामला ट्रांसफर होने के बाद से आज तक यह मामला चल ही रहा है. अब तो मामला बंद सा हो गया है. हालांकि सीबीआइ की शुरुआती जांच में इस मामले में कुछ लोगों की गिरफ्तारी हुई थी. बाद में सारा मामला ठंडे बस्ते में चला गया. इस पोस्टल चोरी कांड के मुख्य सरगना और इसमें शामिल पूरे रैकेट का आज तक पर्दाफाश नहीं हो सका है.
मधुबनी नगर कांड
शुरू भी नहीं हुई है जांच
मधुबनी जिले में हुए हत्याकांड मामले की जांच सीबीआइ को 2016 में ही सौंपी गयी थी . यह घटना 2014 की ही है. इसमें हत्या होने के बाद काफी हंगामा हो गया था और इस हत्या को पॉलीटिकल मर्डर के रूप में देखा जा रहा है. इसकी जांच सीबीआइ से कराने का आदेश पटना हाइकोर्ट ने दिया था. इस मामले में जांच की अभी तक शुरुआत भी नहीं हो पायी है.

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