नयीदिल्ली : यूनेस्को द्वारा देश की अनेक बोलियों को विलुप्त होने के खतरे की सूची में शामिल करने की रिपोर्ट को रेखांकित करते हुए देशज बोलियों और भाषाओं के संरक्षण और उन्हें प्रोत्साहन देने के लिए सरकार से भोजपुरी, राजस्थानी समेत कई भाषाओं को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गयी है जो काफी समय से विचाराधीन है.
उत्तर प्रदेश चुनाव में यह एक प्रमुख मुद्दे के रूप में उभरने की संभावना है. विभिन्न वर्गों का कहना है कि ऐसे समय में जब देशकाल और माहौल में काफी बदलाव आ रहा है, ऐसे में देशज बोलियों और भाषाओं के संरक्षण और प्रोत्साहन की काफी जरूरत है. ऐसे समय में भोजपुरी, राजस्थानी समेत कई भाषाओं को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए.
भाजपा सांसद अर्जुन राम मेघावाल ने कहा कि भोजपुरी एवं राजस्थानी सहित भोंटी भाषा को आठवीं अनुसूची में मान्यता देने का मुद्दा सरकार के समक्ष कई स्तरों पर पहले भी और अब भी रखा गया है. उन्होंने कहा, मुझे पूरी उम्मीद है कि तकनीकी अड़चनों को जल्द ही दूर करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त इन तीनों भाषाओं को संविधान में जगह दे दी जाएगी.
आम आदमी पार्टी के द्वारका से विधायक आदर्श शास्त्री ने कहा कि दिल्ली सरकार के स्तर पर भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने संबंधी प्रस्ताव पर दिल्ली सरकार पहल कर रही है क्योंकि यह लाखों की संख्या में भोजपुरी भाषी लोगों के हक का सवाल है.
भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजीत दूबे ने कहा कि भोजपुरी, राजस्थानी, भोंटी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की सभी अहर्ता पूरी करती हैं. ऐसे में इन भाषाओं को जल्द मान्यता प्रदान किये जाने की जरुरत है. उत्तरप्रदेश में अगले साल चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में पूर्वांचल के लोगों के लिए यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.
लोकसभा सचिवालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 1969 के बाद से भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के संबंध में लोकसभा में 18 निजी विधेयक पेश किये गये. जिसमें से 16 अवधि समाप्त होने के कारण निरस्त हो गये. जबकि राजीव प्रताप रुडी के मंत्री बनने के कारण उनका निजी विधेयक लंबित सूची से हटा दिया गया. ओम प्रकाश यादव का निजी विधेयक सदन में लंबित है.
राष्ट्रीय क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष गोपाल राय ने कहा कि सीताकांत महापात्र समिति की रिपोर्ट पेश किये जाने के 10 वर्ष गुजरने और संसद में बार बार मांग उठाये जाने एवं आश्वासनों के बावजूद भोजपुरी को अब तब अपेक्षित दर्जा नहीं मिला है. उत्तरप्रदेश एवं बिहार के लिए तो भोजपुरी पहचान से जुड़ा विषय है.
राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा देने पर जोर देते हुए राजस्थान सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि 2003 में राजस्थान विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक संकल्प पारित किया था. राजस्थानी भाषा का समृद्ध शब्दकोष है जिसमें 2.5 लाख शब्द है. इसे साहित्य अकादमी से मान्यता मिली है और दुनिया के कई देशों में काफी लोकप्रिय है. ऐसे में इसे संवैधानिक दर्जा दिये जाने की जरूरत है.
भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के बारे में पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के समय में भी संसद में आश्वासन दिया गया था. एक आरटीआइ के तहत प्राप्त जानकरी के अनुसार, यह मामला अभी सरकार के पास लंबित है और सरकार समिति की सिफारिशों पर विचार कर रही है.
नेपाल, मारिशस, श्रीलंका, फिजी, थाईलैंड, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद एवं टोबैगो समेत भारत के पूर्वांचल, झारखंड, दिल्ली सहित कई अन्य क्षेत्रों में चार करोड़ से अधिक लोग भोजपुरी बोलते हैं. सामाजिक संगठन सहस्त्रधारा ने बज्जिका को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल किये जाने की मांग की. इनका कहना है कि गृह मंत्रालय के अधीन जिन 38 भाषाओं का मुद्दा विचाराधीन है, उनमें बज्जिका शामिल है.