पटना : महागंठबंधन की सरकार के शपथ समारोह में 20 नवंबर को देशभर के भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विरोधी नेताओं का जुटान होगा. ऐतिहासिक गांधी मैदान में दोपहर दो बजे पांचवीं बार नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. इस मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, यूपी के सीएम अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, ओड़िशा के सीएम नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू, असम के सीएम तरुण गोगोई को आमंत्रण भेजा गया है. अन्य नेताओं में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और पटना साहिब के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा को भी आमंत्रण भेजे जाने की चर्चा है.
हालांकि, रविवार की देर शाम तक आधिकारिक तौर पर कोई भी बताने को तैयार नहीं था कि किन्हें बुलाये जाने की तैयारी चल रही है. इधर, जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि मेरी इच्छा भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को शपथ समारोह में बुलाये जाने की है. लेकिन, इसका अंतिम निर्णय तीनों दलों के नेताओं को करना है. राज्य सरकार के मातहत विशिष्ट अतिथियों को राजभवन की ओर से अामंत्रण कार्ड भेजे गये हैं, महागंठबंधन के तीनों दलों के साझा मेहमानों के लिए कुछ आमंत्रण कार्ड मुख्यमंत्री सचिवालय की ओर से भेजे जा रहे हैं.
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के 10 सर्कुलर रोड स्थित आवासीय कार्यालय को भी अपने खास मेहमानों के लिए आमंत्रण कार्ड उपलब्ध कराये गये हैं. सूत्र के अनुसार मेहमानों को आमंत्रित
करने को लेकर महागंठबंधन के तीनों दल जदयू, राजद व कांग्रेस नेताओं की उच्चस्तरीय बैठक हुई, जिसमें मेहमानों के नामों पर सहमति बनी है.
सूत्रों के मुताबिक शपथ ग्रहण समारोह में शामि ल होने के लि ए लालू-राबड़ी के समधी शिवपाल सिंह यादव को भी न्योता भेजा गया है. ठहरने के लिए मौर्या होटल का सूट आरक्षित कराया गया है.
दिल्ली तय करेगी कांग्रेसी मंत्री का फैसला
राज्य में बननेवाली नयी सरकार में कांग्रेस शामिल होगी या नहीं, इस पर अभी भी संशय की स्थिति है. कांग्रेस के सरकार में शामिल होने का निर्णय आलाकमान को करना है, इसलिए सबकी नजर दिल्ली पर टिकी है. कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता के चयन के लिए भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अधि कृत किया गया है.
19 नवंबर को सभी नव निर्वाचित विधायकों को दिल्ली में बुलाहट है. दिल्ली में नव निर्वाचित विधायकों से सोनिया व राहुल से मुलाकात करेंगे. इसके बाद कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता का चयन होगा. इसके अलावा कांग्रेस के सरकार में शामिल होने पर निर्णय लिया जायेगा. 18 की शाम अधिकांश विधायक दिल्ली के लिए रवाना होंगे. 19 नवंबर को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात करेंगे. नीतीश कुमार की घोषणा के बाद से कांग्रेस से मंत्री बनने को लेकर कवायद तेज हो गयी है.
सरकार में शामिल होने की स्थिति में कांग्रेस से ऐसे नेता के चयन पर मुहर लग सकती है जो पहले से मंत्री रहे हैं. जिन्हें विभाग चलाने का अनुभव है. चुनाव में जीत कर आये 27 वि धायक में 12 पुराने व 15 नये चेहरे हैं. इसमें आधा दर्जन विधायक ऐसे हैं, जो पहले मंत्री रह चुके हैं. फार्मूला के आधार पर मंत्री बनाने की बात होती है तो कांग्रेस से पांच या छह मंत्री बन सकते हैं. इसके अलावा विधान पार्षद को भी मंत्री बनने का मौका मिल सकता है.
इनके आने की है संभावना
सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष
राहुल गांधी, कांग्रेस उपाध्यक्ष
लालकृष्ण आडवाणी, वरिष्ठ नेता भाजपा
शत्रुघ्न सिन्हा , भाजपा सांसद, पटना साहिब
तेज प्रताप यादव, सांसद (लालू के दामाद)
ये सीएम भी आ सकते हैं
अरविंद केजरीवाल, सीएम दिल्ली
अखिलेश यादव, सीएम यूपी
ममता बनर्जी, सीएम पश्चिम बंगाल
नवीन पटनायक, सीएम ओड़िशा
चंद्रबाबू नायडू, सीएम आंध्र प्रदेश
तरुण गोगोई, सीएम असम
चुनाव नतीजे से भाजपा का भ्रम टूटा: चौधरी
प्रदेश जदयू के वरिष्ठ नेता विजय कुमार चौधरी ने रविवार को बयान जारी कर कहा कि पिछले दो सालों से भाजपा के नेता यह जताने की कोशिश करते रहे कि नीतीश कुमार को उन लोगों ने सीएम बनाया. यहां तक कि यह भाजपा का त्याग था जो उसने नीतीश कुमार को नेता माना. उनका दावा था कि वर्ष 2005 में यह भाजपा की लोकप्रियता थी, जिस कारण जदयू को उतनी सीटें आयी एवं नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. श्री चौधरी ने कहा कि जदयू की तरफ से बार-बार स्पष्ट किया गया कि यह नीतीश कुमार की लोकप्रियता एवं विश्वसनीयता थी, जिसके आधार पर भाजपा को भी फायदा हुआ एवं उसे 90 से अधिक सीटें मिली. इसे मानने को भाजपा तैयार नहीं थी. आखिरकार, इस बात की सच्चाई की परीक्षा की घड़ी इस विधानसभा चुनाव में स्वभाविक रूप से आ गयी.
नीतीश कुमार अपने सर्वमान्य एवं विश्वसनीय व्यक्तित्व के बल पर नये सहयोगियों के साथ एक बार फिर भारी बहुमत की सरकार बना रहे हैं. उन्होंने कहा कि भाजपा को यह पता चल गया होगा कि नीतीश कुमार के बगैर उनकी क्या ताकत बच गयी है. भले ही अपना आबरू बचाने के लिए उन्होंने तीन पार्टियों से घोषित एवं सीमांचल में दो पार्टी से अघोषित समझौता किया, लेकिन बिहार की जनता ने इनकी सभी साजिशों एवं हवाबाजी को समझ कर इन्हें नकार दिया.
इसके बावजूद इनके विधायकों की संख्या लगभग आधी हो गयी. कम से कम भाजपा को अब तो अहसास हो गया होगा कि नीतीश कुमार उनके कारण मुख्यमंत्री बने थे या भाजपा की ताकत एवं विधायकों की संख्या नीतीश कुमार के कारण बढ़ी थी? इस चुनाव में उनके रॉकस्टार प्रधानमंत्री का तथाकथित करिश्माई व्यक्तित्व भी उन्हें नहीं उबार सका.