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बाजार की ठगी से कंज्यूमर लाचार, सिस्टम की अनदेखी और काम के बोझ तले दबा उम्मीदों भरा उपभोक्ता फोरम

गुड्स-सर्विस सेक्टर में छले जा रहे उपभोक्ता – पटना शहर में हर दिन व्यावसायिक कंपनियों एवं फर्मों के हाथों ठगे जाने के सात-आठ नये केस जिला उपभाेक्ता फाेरम में दर्ज किये जा रहे हैं. कहने को यह संख्या छोटी लगती है, लेकिन असलियत इससे एकदम उलट है. दरअसल बाजारवादी ताकतों के खिलाफ केस दर्ज कराने […]

गुड्स-सर्विस सेक्टर में छले जा रहे उपभोक्ता –
पटना शहर में हर दिन व्यावसायिक कंपनियों एवं फर्मों के हाथों ठगे जाने के सात-आठ नये केस जिला उपभाेक्ता फाेरम में दर्ज किये जा रहे हैं. कहने को यह संख्या छोटी लगती है, लेकिन असलियत इससे एकदम उलट है. दरअसल बाजारवादी ताकतों के खिलाफ केस दर्ज कराने वाले ये लोग हैं, जो बाजार की ‘दादागिरी’ के सामने नतमस्तक नहीं हुए.
अन्यथा हजारों ऐसे उपभोक्ता हैं, जो बाजार में किसी-न-किसी तरह ठगे जाने के बाद मन मारकर रह जाते हैं. आधिकारिक जानकारी के मुताबिक बाजार और सर्विस सेक्टर के हाथों ठगे जाने के करीब साढ़े चार हजार से अधिक केस केवल जिला उपभोक्ता फोरम में लंबित हैं. इसके बावजूद बाजार से धोखा खाये उपभोक्ता फोरम की चौखट पर न्याय हासिल करने आते हैं. हालांकि यह फोरम आधारभूत इन्फ्रास्ट्रक्चर और ह्यूमन रिसोर्स के अभाव में लोगों को समय पर न्याय नहीं दे पाता. यही वजह है कि जहां छह माह में न्याय मिल जाना चाहिए, वहां छह-छह माह में केसों की सुनवाई के लिए तारीखें मिल पा रही हैं.
बाजार में इक्का दुक्का ही कोई मोबाइल कंपनी, सुपर बाजार, नामी गिरामी बिल्डर व प्राइवेट अस्पताल, फूड कंपनी, ऑनलाइन कारोबार करने वाली कंपनी नहीं हो, जिनसे ठगे जाने के दर्जनों केस पटना उपभोक्ता फाेरम में न पहुंचे हों. राजदेव पाण्डेय की रिपोर्ट…
पटना जिला उपभोक्ता फोरम के पास केवल एक बेंच है. जबकि केसों की संख्या को देखते हुए तीन बेंचें होनी चाहिए थीं. 1500 केसों पर एक बेंच का प्रबंध होना चाहिए, लेकिन एक स्थायी अध्यक्ष तक नहीं दिया गया है. अमेरिका में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए 250 केसों पर एक बेंच का प्रबंध है.
– बेंच कम होने के कारण केसों के लिए तारीखें छह-छह माह बाद मिल पाती हैं, जबकि नियमानुसार हर हाल मेें छह माह में केस का निराकरण हो जाना चाहिए.
– 10 से 15 साल पुराने केसों की संख्या भी कुल लंबित केसों की संख्या की एक चौथाई बतायी जाती है.उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी से निरंकुश हैं कंपनियां : पटना शहर के उपभोक्ताओं में काफी जागरूकता है, इसलिए इनके केसों की संख्या हजारों में है.
उन्हें देर-सबेर न्याय भी मिल रहा है. जबकि प्रदेश में उपभोक्ताओं के हितों से गुड्स और सर्विस सेक्टर जम कर छल कर रहे हैं. दरअसल अन्य जगहों पर दर्ज केसों की संख्या बेहद कम है. जागरूकता के अभाव में लोग शिकायत करने भी नहीं आ रहे हैं. इसका सीधा फायदा कंपनियां उठा रही हैं.
वे जिले जहां सबसे कम केस हैं दर्ज : शेखपुरा, सीतामढ़ी, शिवहर, अरवल, लखीसराय, किशनगंज, सुपौल ऐसे जिले हैं, जहां केसों की संख्या 40 से नीचे है. 100 केस दर्ज करने वाले जिलों की संख्या सबसे ज्यादा है.
इसके अलावा कुछ जिले ऐसे भी हैं, जहां अपेक्षाकृत अधिक जागरूकता है. इन जिलों में पटना के अलावा समस्तीपुर (1100 से अधिक), सारण (800), वैशाली (700), छपरा (600), मुजफ्फरपुर (1000 से अधिक) शामिल हैं.
शायद ही कोई निजी गुड्स एवं सर्विस कंपनी हो, जिसके खिलाफ उपभोक्ताओं ने केस दर्ज नहीं कराया हो. हालांकि ब्रांडेड और बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी इज्जत बचाने के लिए प्रथम नोटिस पर लाख दो लाख रुपये देकर राजीनामा कर केस वापस करा लेती हैं. सबसे ज्यादा मेडिकल सर्विसेज और निजी शैक्षणिक संस्थाओं ने उपभोक्ताओं को छला है, जिनके खिलाफ फोरम ने कुछ माइल स्टोन फैसले भी दिये हैं.
सुपर बाजारों में भी माप तौल में गड़बड़ी: शहर के सुपर मार्केटों में माप तौल में गड़बड़ी हो रही है. ऐसा पिछले दिनों हुआ, जब उपभोक्ता ने एक बड़े मॉल में कोई एक किलोग्राम सामान खरीदा. वह तीन सौ ग्राम कम निकला.
मॉल के प्रबंधकों ने उसे उपभोक्ता फोरम से बाहर ही सुलझाने के लिए कहा, लेकिन उपभोक्ता ने जिला फोरम में शिकायत दर्ज करायी. वहां भी तराजू से वह सामान तौला गया. तीन सौ ग्राम कम निकला. संबंधित कंपनी परेशान है. ऐसे सैकड़ों केस दर्ज किये गये हैं.
वारंट जारी न होने के बाद गिरफ्तार नहीं करती पुलिस
उपभोक्ता फोरम को कमजोर करने में सरकारी एजेंसियों का भी बड़ा हाथ है. एक तरफ उनके पास स्टाफ नहीं हैं. दूसरे उनके आदेश के पालन कराने में मदद के लिए सरकारी एजेंसियां हाथ खड़े कर देती हैं. उदाहरण के लिए पटना जिला फोरम में 450 केस ऐसे हैं, जिनमें तमाम निजी कंपनियों के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुए हैं.
राज्य से लेकर पटना तक सभी जगह बेंच का अभाव है. समय पर सुनवाई नहीं हो पा रही है. हालांकि इसके बाद भी मामलों में समाधान मिलने से लोग फोरम की तरफ आ रहे हैं. सबसे ज्यादा गुड्स एवं सर्विस देने वाली कंपनियां उपभोक्ताओं के साथ छल कर रही हैं. सरकार को चाहिए कि उपभोक्ता फोरम काे मजबूत बनाये, तभी लोग राहत की सांस लेंगे. यहां उन्हें नाम मात्र के पैसे में काफी राहत मिल पाती है.
अनिल कुमार पांडेय, वरिष्ठ अधिवक्ता, हाइकोर्ट एवं उपभोक्ता फोरम
उपभोक्ता फोरम अपने मकसद में कामयाब है. उपभोक्ताओं को काफी हद तक न्याय मिल रहा है. बाजारवाद ने उपभोक्ताओं के हितों को सबसे ज्यादा चोट पहुंचायी है. जिन कंपनियों पर लोग आंख बंद करके भरोसा करते हैं, उनके खिलाफ दर्जनों मामले दर्ज हैं. चिकित्सा जैसा पवित्र पेशा भी इस बीमारी से अछूता नहीं रह गया है. उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए जागरूकता की जरूरत है.
सुबोध कुमार श्रीवास्तव, प्रभारी अध्यक्ष, जिला उपभोक्ता फोरम

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