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मॉर्निंग-इवनिंग वाक के लिए सड़कों का विकल्प तैयार करना जरूरी
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक पटना जिले के दानापुर के पास एक रिटायर्ड रेलकर्मी सड़क पर टहलने के लिए निकले थे कि अनियंत्रित ट्रेक्टर ने उन्हें टक्कर मार दी. उनकी मौत हो गयी. यह घटना इसी महीने हुई. उससे पहले गत सितंबर में मोहाली में दो व्यक्ति माॅर्निंग वाक के लिए निकले थे. कार की चपेट […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
पटना जिले के दानापुर के पास एक रिटायर्ड रेलकर्मी सड़क पर टहलने के लिए निकले थे कि अनियंत्रित ट्रेक्टर ने उन्हें टक्कर मार दी. उनकी मौत हो गयी. यह घटना इसी महीने हुई. उससे पहले गत सितंबर में मोहाली में दो व्यक्ति माॅर्निंग वाक के लिए निकले थे. कार की चपेट में आकर अपनी जान गंवा बैठे. कई साल पहले भागलपुर में एक वाहन ने सड़क के किनारे टहल रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रो शिवचंद्र झा को धक्का मार दिया, जिस कारण उनकी असामयिक मौत हो गयी.
दरअसल, पटना सहित इस देश के अधिकतर शहरों में टहलने की जगह की भारी कमी के कारण लोग बाग सड़कों पर माॅर्निंग और इवनिंग वाक करते हैं. नतीजतन कई बहुमूल्य जानें चली जाती हैं. सड़कों पर टहलने के खिलाफ अभियान चला कर अनेक बहुमूल्य जानों को बचाया जा सकता है. जहां तक मेरी जानकारी है, अब तक ऐसा कोई अभियान नहीं चला है. इस समस्या को लेकर एक से अधिक तरीकों से अभियान चलाने की जरूरत है.
सरकारें संचार माध्यमों के जरिये लोगों को सड़कों पर टहलने से हतोत्साहित करे. साथ ही शासन बिल्डर्स व डेवलपर्स को यथासंभव खेलने-टहलने के स्थान छोड़ने को बाध्य करे. अपवादों को छोड़ दें तो अभी तो वे अपनी एक-एक इंच जमीन बेच देते हैं.
वैसे ग्राहकों को लुभाने के लिए डेवलपर्स अपने नक्शे में पार्क से लेकर स्कूल तक के लिए जगहें दिखा देते हैं. अपार्टमेंट्स के निचले हिस्से में खाली जगह कुछ और छोड़ देने का प्रावधान होता तो कम से कम महिलाओं के टहलने के लिए जगह उपलब्ध होती.
पटना तथा अन्य शहरों में सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन पर दबंगों ने कब्जा जमा लिया गया है. यदि शासन उन्हें उनके कब्जे से निकाल कर उन पर पार्क या अन्य जनोपयोगी संस्थान खड़े करता तो लोगबाग सरकार का गुणगान करते. पर क्या यह कभी हो पायेगा? आम धारणा तो यह है कि जिन दबंगों ने उस जमीन पर दशकों से कब्जा कर रखा है, वे किसी भी सरकार से अधिक ताकतवर लोग हैं.
छोटी उम्र में अपराध : कम उम्र के लड़कों में अपराध की बढ़ती प्रवृत्ति चिंताजनक है. भागलपुर पुलिस ने सातवीं, आठवीं और दसवीं कक्षाओं में अध्ययनरत किशाेरों द्वारा मोटर साइकिल चुराने की घटना उजागर की है. पुलिस ने अभिभावकों से अपील की है कि वे अपने कम उम्र के लड़कों की गतिविधियों पर लगातार नजर रखें. पुलिस का यह कदम सराहनीय है. पर यह काफी नहीं है. शासन एक और काम कर सकता है.
कम उम्र के जो भी लड़के अपराध की गतिविधियों में शामिल पाये जाएं, उनका विवरण तैयार किया जाना चाहिए. उनके अभिभावकों का विवरण खास कर. किस काम में लगे अभिभावकों के बच्चे अपराध की ओर अधिक झुक रहे हैं. सरकारी सेवा, ठेकेदारी, राजनीति या अन्य किस पेशे में लगे अभिभावकों के बच्चे अपेक्षाकृत अधिक संख्या में अपराध जगत की गिरफ्त में हैं. सरकारी सेवा में से किस सेवा के लोगों को अपने लड़कों को अनुशासित सुसंस्कारित करने का कम समय नहीं मिल रहा है.
यदि ऐसे आंकड़े जुटाने के सिलसिले में यदि कोई पैटर्न नजर आ रहा है तो उस खास सेवा के अभिभावकों पर शासन अलग से काम करे. उन्हें बताये कि आप अपनी संतान की गतिविधियों को नियंत्रित करें अन्यथा आपकी सेवा पुस्तिका में यह दर्ज हो सकता है. आपकी नौकरी भी खतरे मेें पड़ सकती है. आम तौर उदंड बच्चों को कुछ मांओं के लाड़-प्यार का सहारा मिल जाता है. इस कारण भी कुछ बच्चों को अपराध जगत की ओर जाने से रोकने वाला घर में कोई नहीं होता.
ऐसी मांओं को यदि यह खतरा दिखेगा कि बेटे के अपराध के कारण पति की नौकरी खतरे में पड़ सकती है तो शायद लाड़-प्यार की जगह वह अनुशासन का डंडा चलायेगी या चलवायेगी. अब कहियेगा कि बेटे के अपराध के लिए बाप को सजा क्यों? यदि डेंगू के मच्छर के उद्गम स्थल की सफाई नहीं करने वाले परिवार को एक लाख रुपये का जुर्माना भरने का कानून पश्चिम बंगाल में बन सकता है तो बेटे के अपराध के लिए पिता को किसी न किसी तरह की सजा क्यों नहीं मिल सकती?
कई ऐसे परिवार होंगे जिन पर एक लाख रुपये का जुर्मानालगने पर उस परिवार के सारे सदस्यों की आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है. यानी उसका नुकसान परिवार के उस सदस्य को भी होगा जिसका सफाई कार्य से कोई संबंध नहीं है. यानी जब डेंगू के मामले में पूरा परिवार भुगतेगा तो घर में किसी किशोर के अपराधी हो जाने पर उसका अपना परिवार क्यों नहीं भुगते. बच्चों को अनुशासित करके उन्हें अच्छे संस्कार देने की जिम्मेदारी परिवार खास कर माता पिता की ही तो है.
दंगाइयों के खिलाफ आरोपों का अनुसंधान : साम्प्रदायिक दंगों से संबंधित आरोपों के सबूत एकत्र करने का काम मानवाधिकार आयोग को सौंपा जाना चाहिए. ऐसा इसलिए किया जाना चाहिए क्योंकि दंगों के बाद कई बार मौजूदा सरकार या आने वाली सरकारें अपनी राजनीतिक सुविधा के अनुसार सबूतों और संबंधित दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ कर देती हैं. केस लंबे समय तक लटकाये जाते हैं. बाद में पता चलता है कि अदालत में सबूत पेश ही नहीं किये जा सके.
यदि दंगे के तत्काल बाद सबूत एकत्र करके उन्हें संरक्षित करने का काम मानवाधिकार आयोग को सौंप दिया जाये तो उपर्युक्त समस्या नहीं आयेगी. ऐसी समस्या 1984 के सिख विरोधी दंगों से संबंधित मुकदमों के सिलसिले में आती रही है. उस केस की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल में कहा कि साम्प्रदायिक दंगों से संबंधित मुकदमों को उनकी तार्किक परिणति तक पहुंचाने में मौजूदा क्रिमिनल लाॅ नाकाफी साबित हो रहे हैं.
याद रहे कि बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में 89 लोगों को सजा बरकरार रखी. हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत द्वारा दी गयी पांच-पांच साल की सजा सही है. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये हैं ताकि ऐसे मुकदमों को निष्पक्ष ढंग से तार्किक परिणति तक पहुंचाया जा सके.
विरल बीमारियों से ग्रस्त मरीजों का इलाज : विरल बीमारियों से भी इस देश में हजारों लोग ग्रस्त हैं. ‘हंटर सिंड्रोम’ नामक एक विरल बीमारी से इस देश में करीब 20 हजार बच्चे पीड़ित हैं. इस बीमारी के लिए दवा बहुत ही महंगी है और इसकी चिकित्सा पद्धति भी थोड़ी जटिल है.
इसका इलाज नयी दिल्ली के एम्स में तो संभव है, पर पटना एम्स में नहीं जबकि बिहार व झारखंड में भी ऐसी बीमारियों के मरीज हैं. उन्हें इलाज के लिए दिल्ली जाना पड़ता है. चूंकि इलाज लंबा चलता है, इसलिए बिहार तथा आसपास के प्रदेशों के लोगों को दिल्ली में किराये पर मकान लेकर रहना पड़ता है. यदि पटना एम्स में विरल रोगों की चिकित्सा के लिए विभाग खुल जाये तो वैसे लोगों को बहुत राहत मिलेगी.
पटना एम्स में धीरे-धीरे विभागों की संख्या बढ़ रही है. पर पता नहीं इस बीमारी की ओर एम्स प्रशासन या स्वास्थ्य मंत्रालय का ध्यान है या नहीं. बिहार और झारखंड सरकारें इस दिशा में पहल करें तो शायद मरीजों की राह आसान हो जाये.
और अंत में : पश्चिम बंगाल के नगरों-महानगरों के सार्वजनिक स्थलों पर ठोच कचरा फेंकने वालों पर 50 हजार रुपये तक का जुर्माना लगेगा. यदि किसी के घर में जमा पानी में डेंगू मच्छर का लार्वा मिला तो उसे एक लाख रुपये तक जुर्माना देना पड़ सकता है. इस संबंध में पश्चिम बंगाल विधानसभा ने हाल में विधेयक पास कर दिया है.
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