पटना : राजद सुप्रीमो लालू यादव के छोटे पुत्र और बिहर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने चचिर्त मुजफ्फरपुर बालिका गृह दुष्कर्म कांड पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बिहार सरकार के हाथ ही केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा है. बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए मोदी सरकार पर केंद्रीय संस्थाओं का दुरुपयोग करने का गंभीर आरोप लगाया है. तेजस्वी ने कहा कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय संस्थाओं व एजेंसियों को बर्बाद कर दिया है. साथ ही तेजस्वी ने बिहार सरकार पर मुजफ्फरपुर कांड को लेकर हमला बोलते हुए कहा कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो गया है.
पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने विधानसभा परिसर में पत्रकारों से बात करते हुए उक्त बातें कही. तेजस्वी ने बिहार सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि कोर्ट की फटकार से राज्य सरकार सीख लेना चाहिए. मुजफ्फरपुर कांड मामले पर बोलते हुए तेजस्वी ने कहा कि सरकार ब्रजेश के कॉल डिटेल को सार्वजनिक करें. इसके साथ ही जेल में छापेमारी के दौरान ब्रजेश के पास से मिले कांटेक्ट नंबर्स का भी खुलासा करें. जिसके बाद जाहिर हो जायेगा की ब्रजेश ठाकुर किस-किस के संपर्क में था. वहीं, सृजन घोटाले को लेकर भी तेजस्वी ने राज्य सरकार पर घेरने को प्रयास किया. तेजस्वी ने कहा कि सरकार ने सृजन घोटाला में शामिल दोषियों को बचाने का काम किया है. साथ ही साथ घोटाले से जुड़े सबूतों को भी नष्ट किया गया.
विदित हो कि इससे पहले आज उच्चतम न्यायालय ने बिहार के 17 आश्रय गृहों में रहने वाले बच्चों के शारीरिक और यौन शोषण के आरोपों की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दी. न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने इन मामलों की जांच सीबीआई को नहीं सौंपने का राज्य सरकार का अनुरोध ठुकरा दिया. बिहार पुलिस इन मामलों की जांच कर रही थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) की रिपोर्ट में राज्य के 17 आश्रय गृहों के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की गयी थी. इसलिए केंद्रीय जांच ब्यूरो को इनकी जांच करनी ही चाहिए. इनमें से एक मुजफ्फरपुर आश्रय गृह में लड़कियों का कथित रूप से बलात्कार और यौन शोषण कांड की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो पहले ही कर रहा है.
इस बीच, सीबीआई ने पीठ से कहा कि सिद्धांत रूप में वह जांच का काम अपने हाथ में लेने के लिये तैयार है. जांच ब्यूरो ने न्यायालय को बताया कि इस मामले में सात दिसंबर तक आरोप पत्र दाखिल किया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बिहार में आश्रय गृहों की जांच कर रहे जांच ब्यूरो के किसी भी अधिकारी का उसकी पूर्व अनुमति के बगैर तबादला नहीं किया जाये. शीर्ष अदालत ने मंगलवार को बिहार के आश्रय गृहों में बच्चों के शारीरिक और यौन शोषण के आरोपों के बावजूद उचित कार्रवाई नहीं करने पर राज्य सरकार के आचरण को ‘बहुत ही शर्मनाक’ और ‘अमानवीय’ करार दिया था.
न्यायालय ने कहा था कि इन मामलों की जांच भी केंद्रीय जांच ब्यूरो से कराने की आवश्यकता है. न्यायालय ने काफी तल्ख शब्दों में कहा था कि ऐसे अपराध करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के मामले में सरकार का रवैया ‘बहुत ही नरम’ और ‘पक्षपातपूर्ण’ रहा है. न्यायालय ने राज्य सरकार से सवाल किया था कि क्या ये बच्चे इस देश के नागरिक नहीं हैं? शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार के वकील से जानना चाहा था कि आश्रय गृहों में बच्चों के साथ अप्राकृतिक अपराध के आरोपों के बावजूद ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की गयी? हालांकि, बिहार सरकार के वकील ने न्यायालय को आश्वासन दिया था कि सरकार इस मामले में सभी उचित कदम उठायेगी और अपनी सभी गलतियों को सुधारेगी.
न्यायालय का कड़ा रुख देखते हुए राज्य सरकार के वकील ने कहा था कि वह सुनिश्चित करेंगे कि दर्ज प्राथमिकी में धारा 377 भी जोड़ी जाये. याचिकाकर्ता फौजिया शकील की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफडे ने दावा किया था कि राज्य सरकार इन मामलों में ‘नरम’ रूख अपना रही है और इन मामलों में कम गंभीर अपराध के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी हैं. नफडे ने टीआईएसएस की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा था कि आश्रय गृहों में कई बच्चों के साथ दुराचार किया गया है और इनमें भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत मामला बनता है. टीआईएसएस की रिपोर्ट के आधार पर मुजफ्फरपुर आश्रय गृह कांड में 31 मई को 11 व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. बाद में यह मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दिया गया. इस मामले में अब तक कम से कम 17 व्यक्ति गिरफ्तार किये जा चुके हैं.