20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

निजी सेक्टर में आरक्षण की बहस छेड़ एक साथ कई चीजें साधने में जुटे नीतीश कुमार

पटना : बिहार के मुख्यमंत्री व जनता दल यूनाइटेड केअध्यक्ष नीतीश कुमार ने पिछले दिनों राज्य सरकार द्वारा आउटसोर्स की जाने वाली निजी कंपनियों की कांट्रेक्ट की नौकरियों में आरक्षण लागूकिया और इसके पांच दिन बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर निजी क्षेत्र में आरक्षण की चर्चा छेड़ दी है. नीतीश कुमार अपने इस प्रयास में […]

पटना : बिहार के मुख्यमंत्री व जनता दल यूनाइटेड केअध्यक्ष नीतीश कुमार ने पिछले दिनों राज्य सरकार द्वारा आउटसोर्स की जाने वाली निजी कंपनियों की कांट्रेक्ट की नौकरियों में आरक्षण लागूकिया और इसके पांच दिन बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर निजी क्षेत्र में आरक्षण की चर्चा छेड़ दी है. नीतीश कुमार अपने इस प्रयास में तब सफल होते दिखे, जब मायावती जैसी बड़ी दलित नेता और भाजपा की ओर से पिछड़ी जाति के प्रमुख चेहरा हुकुमदेव नारायण यादव ने इस पर प्रतिक्रिया दी.

हुकुमदेव नारायण ने नीतीश कुमार के स्टैंड का समर्थन किया और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर इस बहस को शुरू करने के लिए धन्यवाद दिया. वहीं, बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि नीतीश कोरी बयानबाजी नहीं करें और इस मामले में कुछ करके दिखायें. उन्होंने कहा कि भाजपा के सत्ता में बैठे लोगों को केंद्र में अपनी गंठबंधन सरकार से इसे लागू कराना चाहिए. नीतीश कुमार ने निजी क्षेत्र में 50 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही थी.

लालू को काउंटर करने व सोशल अंब्रेला तैयार करने की कोशिश

दरअसल, नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव से डेढ़ साल पहले ऐसी चर्चा छेड़ दी है, जिस पर राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव एक तरह से अपना एकाधिकार प्रकट करते रहे हैं. लालू प्रसाद यादव जाति की राजनीति और जातीय ध्रुवीकरण के माहिरहैं. लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार को आरक्षण विरोधी साबित करने पर तुले हैं. लालू अगर अपने मनसूबे में कामयाब होंगे तोजदयूकी चुनावी संभावनाएं उससे सीमित होंगी और राज्य में 2019 में मुकाबला भाजपा बनाम राजद का हो जायेगा.

पिछले एक दशक से अधिक समय से बिहार की सत्ता संभाल रहे नीतीश कुमार ने अपनी सोशल इंजीनिरयिंग के जरिये अपना एक वोट बैंक तैयार किया है. दलितों के अंदर महादलित को परिभाषित कर व उनके लिए योजनाएं लाकर वे इस वर्ग के स्वाभाविक नेता के रूप में स्थापित हुए हैं. पिछड़ी जाति में गैर यादव जातियां और अति पिछड़ों में उनका आधार है. उन्होंने पिछड़ों के अंदर अति पिछड़ा वर्ग को फोकस किया. इसके अलावा, अगड़ी जातियों में उनका आधार है. शराबबंदी आदि के जरिये वे महिला वोटरोंकेबीच बिहार में सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं और उन्होंने अपना एक महिला वोट बैंक तैयार किया है. उनके शराबबंदी के फैसले को अबतक चुनाव के पैमाने पर कसा नहीं गया है और इसका पहला मौका 2019 के लोकसभा चुनाव में ही आयेगा.

यह खबर भी पढ़ें :

नीतीश कुमार ने निजी क्षेत्रों में आरक्षण पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस की उठायी मांग, भाजपा सांसद का मिला समर्थन

चुनाव में मोलभाव की संभावनाएं बढ़ेगी

नीतीश कुमार की पार्टी की लोकसभा में वर्तमान में सबसे कम उपस्थिति है, उनकी पार्टी के मात्र दो सांसद हैं. वहीं, भाजपा के पास 22 व उसकीसहयोगी लोजपा व रालोसपा जैसे सहयोगियों के पास नौ सीटें हैं. इस तरह बिहार की 40 लोकसभा सीटों में 2014 के एनडीए ने 31 सीटें हासिल की थी. ऐसे में अगले साल के अंत से शुरू होने वाले चुनावी गहमागहमी में नीतीश के लिए मोलभाव करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. वाजपेयी-आडवानी के नेतृत्व वाले एनडीए में नीतीश कुमार की पार्टी लगभग 25 व भाजपा 15 सीटों पर लड़ा करती थी. अब मोदी-शाह के नेतृत्व वाला एनडीए है, जिनके पास अपनी सीटिंग सीट की ही बहुलता है, ऐसे में सीटों का बंटवारा एक बड़ा मुद्दा बनेगा.

नीतीश की राजनीति ऐसी रही है कि वे हमेशा भविष्य का आकलन करते हुए आज का एजेंडा तय करते हैं और अपने लिए वैकल्पिक दरवाजे हमेशा खुले रखते हैं. राजद के साथ रहते हुए भी उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कई कदमों की तारीफ की थी और राजद के साथ कांग्रेस पर कई मौकों पर दबाव बनाया था. ऐसे में उन्हाेंने एक ऐसे मुद्दे को उठाया है, जो बिहार की राजनीति दशकों से सबसे प्रभावी तत्व रहा है – जाति आधारित आरक्षण. अब यह आने वाले दिनों में पता चलेगा कि इस पर कौन कैसे दावं चलता है और उसे क्या हासिल होता है, लेकिन नीतीश कुमार ने तो पहली चाल चल ही दी है.

यह खबर भी पढ़ें :

निजी क्षेत्र में आरक्षण पर बोलीं मायावती, कोरी बयानबाजी ना करें नीतीश

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें