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Bihar News: बोधगया में थाईलैंड के श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी, अब खत्म होने लगा भिक्षुओं का चीवर संकट

Bihar News: भिक्षुओं के तीन महीने के वर्षावास के समापन के बाद थाईलैंड, म्यांमार, श्रीलंका, कंबोडिया, लाओस व अन्य बुद्धिस्ट देशों से बोधगया आने वाले श्रद्धालु अपने साथ चीवर लेकर आते हैं और यहां चीवरदान समारोह आयोजित कर भिक्षुओं को चीवर भेंट करते हैं.

बोधगया में प्रवास करने वाले बौद्ध भिक्षुओं का चीवर संकट अब खत्म होने लगा है. भिक्षुओं को अब बौद्ध श्रद्धालुओं द्वारा नये चीवर दान किये जाने लगे हैं और पिछले दो वर्षों से चीवर की तंगी से जूझ रहे भिक्षुओं ने अब राहत की सांस ली है. दरअसल, पिछले दिनों से थाईलैंड के बौद्ध श्रद्धालुओं की बोधगया में आवाजाही शुरू हो चुकी है. वे अपने साथ भिक्षुओं को दान करने के लिए चीवर भी लेकर पहुंच रहे हैं. यहां महाबोधि मंदिर व अन्य बौद्ध मंदिरों में पूजा समारोह आयोजित कर भिक्षुओं को चीवर भेंट कर रहे हैं.

बौद्ध श्रद्धालु चीवरदान समारोह का आयोजन इस कारण नहीं कर पा रहे हैं कि भिक्षुओं के वर्षावास के समापन के बाद ही चीवरदान समारोह का आयोजन किया जा सकता है. लेकिन, मार्च 2020 के बाद से कोरोना के कारण इंटरनेशनल फ्लाइटों के बंद हो जाने व मुख्य रूप से थाईलैंड व म्यांमार के बौद्ध श्रद्धालुओं के बोधगया नहीं पहुंचने के कारण भिक्षुओं को नये चीवर के लिए संकट का सामना करना पड़ रहा था.

थाईलैंड से अपने साथ लाये चीवर भिक्षुओं को दान किया

पिछले दिनों अभिनेता गगन मलिक के बोधगया आगमन पर भी उन्होंने थाईलैंड से अपने साथ लाये चीवर भिक्षुओं को दान किया था और 13 अप्रैल को थाईलैंड के नये साल के उपलक्ष्य में आयोजित वाटर फेस्टिवल के अवसर पर भी थाईलैंड के यहां पहुंचे बौद्ध श्रद्धालुओं ने अपने साथ लाये चीवर भिक्षुओं को दान किया. इससे भिक्षुओं के पास अब नये चीवर उपलब्ध होने लगे हैं और वे उसका धारण करने लगे हैं. इसी तरह आने वाले दिनों में थाईलैंड व म्यांमार से चीवर को आयात भी किया जा सकेगा. उल्लेखनीय है कि बौद्ध भिक्षुओं के धारण करने वाले वस्त्र, जिसे चीवर कहा जाता है, थाईलैंड व म्यांमार में तैयार किये जाते हैं. श्रीलंका में भी चीवर बनाया जाता है.

भिक्षुओं को भेंट करते हैं चीवर

भिक्षुओं के तीन महीने के वर्षावास के समापन के बाद थाईलैंड, म्यांमार, श्रीलंका, कंबोडिया, लाओस व अन्य बुद्धिस्ट देशों से बोधगया आने वाले श्रद्धालु अपने साथ चीवर लेकर आते हैं और यहां चीवरदान समारोह आयोजित कर भिक्षुओं को चीवर भेंट करते हैं. इसे एक साल तक भिक्षु उपयोग में लाते हैं. लेकिन, कोरोना के कारण उक्त देशों के श्रद्धालुओं की आवाजाही बंद हो गयी थी और विमानों के उड़ान भी बंद हो गये थे. इस कारण भिक्षुओं के समक्ष चीवर का संकट खड़ा हो गया था. यहां तक कि भगवान बुद्ध को अर्पित करने के लिए भी चीवर की कमी पड़ गयी थी.

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सात से नौ मीटर कपड़े की होती है चीवर

हालांकि, भारतीय भिक्षुओं ने इसका रास्ता निकाल लिया था और सूती के सफेद कपड़े खरीद कर गया स्थित बजाजा रोड में कपड़ों की रंगाई करने वाले रंगरेज से चीवर के रंग में रंगाई कर उसे चीवर के रूप में धारण करने लगे थे. गौरतलब है कि भिक्षुओं के धारण करने वाले चीवर सात से नौ मीटर कपड़े की होती है और पंथ के मुताबिक अलग-अलग रंगों की होती है. महायान सेक्ट के लामाओं के चीवर लाल रंग के होते हैं. थेरोवाद पंथ वाले भिक्षुओं के चीवर ऑरेंज-केसरिया मिला होता है. अन्य सेक्टर के भिक्षुओं के चीवर के रंगों में भी भिन्नता पायी जाती है.

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