नवादा : बकरीद का त्योहार 22 अगस्त को मनाया जायेगा़ रमजान खत्म होने के लगभग 70 दिन के बाद यह पर्व मनाया जाता है. इस त्योहार को कई नामों से जाना जाता है़ इसे बकरा ईद, बकरीद, ईद-उल-अजहा या ईद-उल जूहा भी कहा जाता है. मुसलमानों का यह दूसरा प्रमुख त्योहार है, इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है. इस कुर्बानी के बाद बकरे के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. इस्लाम धर्म में पहला मुख्य त्योहार मीठी ईद होती है, इसे ईद-उल-फितर कहा जाता है. इस मीठी ईद पर मुस्लिमों के घर पर सेवइयां और कई मीठे पकवान बनाये जाते हैं. लेकिन, बकरीद के मौके पर मवेशियों की कुर्बानी देने की प्रथा है.
जिले भर में इस पर्व को लेकर इस्लाम धर्म के लोग तैयारी को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. शहर के हाट बाजारों में बकरों की जम कर खरीदारी की गयी. 5000 से लेकर 50 हजार तक के बकरे बेचे गये. कुर्बानी के लिए बकरों की खरीदारी का अपना ही एक अलग जुनून होता है. इसमें लोग अपने हैसियत के हिसाब से बकरों की खरीदारी करते हैं. शहर के बाजार में बकरीद को लेकर सेवइयों की भी मांग खूब बढ़ गयी है. स्थानीय स्तर से निर्मित सेवइयाें के अलावा ब्रांडेड सेवई की भी मांग है.
ईदगाहों की हुई सफाई
शहर के गोंदापुर बड़ी दरगाह ईदगाह की साफ-सफाई की गयी है़ यहां बकरीद के दिन अंतिम नमाज अदा की जायेगी. इसके अलावा अन्य मस्जिदों में भी सफाई का काम चरम पर है. वहीं नेशनल इस्लामिक फेस्टिवल फेडरेशन आॅफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष मो नेजाम खां कल्लू ने जिला प्रशासन को सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम करने का आग्रह किया है. उन्होंने बताया कि पेयजल, बिजली तथा साफ-सफाई की व्यवस्था प्रमुख है़ उन्होंने बताया कि शहर के ईदगाह सहित विभिन्न मस्जिदों में नमाज अदा करने की समय सारिणी जारी कर दी गयी है. जिला प्रशासन से मांग की गयी है कि संवेदनशील इलाकों में जितने भी मंदिर हैं उनकी भी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया जाये.
वह बताते हैं कि एक बार इब्राहिम अलैय सलाम नामक एक व्यक्ति थे, उन्हें ख्वाब (सपने) में अल्लाह का हुक्म हुआ कि वे अपने प्यारे बेटे इस्माइल जो बाद में पैगंबर हुए, को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दें. यह इब्राहिम अलैय सलाम के लिए इम्तिहान था, जिसमें एक तरफ थी अपने बेटे से मुहब्बत और एक दूसरी तरफ था अल्लाह का हुक्म. लेकिन, अल्लाह का हुक्म ठुकराना अपने धर्म की तौहीन करने के समान था, जो इब्राहिम अलैय सलाम को कभी भी कुबूल नहीं था. इसलिए, उन्होंने सिर्फ अल्लाह के हुक्म को पूरा करने का निर्णय बनाया और अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गये. लेकिन, अल्लाह ने ऐसा रास्ता खोज निकाला था जिससे उसके बंदे को दर्द न हो, जैसे ही इब्राहिम अलैय सलाम छुरी लेकर अपने बेटे को कुर्बान करने लगे, वैसे ही फरिश्तों के सरदार जिबरिल अमीन ने तेजी से इस्माइल अलैय सलाम को छुरी के नीचे से हटा कर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया. फिर क्या था, इस तरह इब्राहिम अलैय सलाम के हाथों मेमने के जिबह होने के साथ पहली कुर्बानी हुई. इसके बाद जिबरिल अमीन ने इब्राहिम अलैय सलाम को खुशखबरी सुनायी कि अल्लाह ने आपकी कुर्बानी कुबूल कर ली है और अल्लाह आपकी कुर्बानी से राजी है. इसलिए ,तभी से इस त्योहार पर अल्लाह के नाम पर एक जानवर की कुर्बानी दी जाती है. दरअसल इस्लाम, कौम से जीवन के हर क्षेत्र में कुर्बानी मांगता है. इस्लाम के प्रसार में धन व जीवन की कुर्बानी, नरम बिस्तर छोड़ कर कड़कड़ाती ठंड या जबर्दस्त गर्मी में बेसहारा लोगों की सेवा के लिए जान की कुर्बानी भी खास मायने रखती है. उन्होंने बताया कि कुर्बानी का असली मतलब यहां ऐसे बलिदान से है, जो दूसरों के लिए दिया गया हो. परंतु, इस त्योहार के दिन जानवरों की कुर्बानी महज एक प्रतीक है. असल कुर्बानी हर एक मुस्लिम को अल्लाह के लिए जीवन भर करनी होती है.
मस्जिदों में नमाज अदा करने के लिए तय समय
दीपावली की तरह मनायी जाती है खुशी
फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष मो नेजाम बताते हैं कि ईद-उल-जूहा अत्यधिक खुशी, विशेष प्रार्थनाओं और अभिवादन करने का त्योहार है. सभी मुस्लिम भाई इस दिन एक-दूसरे के साथ उपहार बांटते हैं, जिस तरह से हिंदू धर्म में दीपावली पर काफी धूमधाम होती है. ठीक इसी तरह से ईद-उल-जूहा के दिन हर मुस्लिम परिवार में रौनक दिखायी देती है. ईद-उल-जुहा, यह नाम अधिकतर अरबी देशों में ही लिया जाता है, लेकिन हमारे यहां इस त्योहार को बकर-ईद कहा जाता है, इसका कारण है इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है़ उन्होंने बताया कि मीठी ईद के ठीक दो माह बाद बकरीद आती है.