2017 में नवादा के दो बच्चों की हो चुकी है मौत
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सावधानी और साफ-सफाई से ही दूर भागेंगी बीमारियां
2017 में नवादा के दो बच्चों की हो चुकी है मौत मौसमी बीमारियों का भी बढ़ा खतरा अस्पतालों में उपलब्ध हैं पर्याप्त दवाएं नवादा : बरसात के मौसम में बीमारियों का बढ़ जाता है़ मौसमी बीमारियों के साथ-साथ खतरनाक जानलेवा बीमारी इंसेफ्लाइटिस को लेकर भी डर बना रहता है़ मौसमी बीमारियों का असर सबसे ज्यादा […]
मौसमी बीमारियों का भी बढ़ा खतरा
अस्पतालों में उपलब्ध हैं पर्याप्त दवाएं
नवादा : बरसात के मौसम में बीमारियों का बढ़ जाता है़ मौसमी बीमारियों के साथ-साथ खतरनाक जानलेवा बीमारी इंसेफ्लाइटिस को लेकर भी डर बना रहता है़ मौसमी बीमारियों का असर सबसे ज्यादा बच्चों पर पड़ रहा है. इससे बच्चे मौत के मुंह तक जा रहे हैं. नवादा जिले में पिछले साल इंसेफ्लाइटिस यानी एईएस व जेई से ग्रसित दो बच्चों की मौत हो चुकी है. इसमें मरनेवाले दोनों बच्चे हिसुआ के मंझवे तथा मेसकौर के थे. पिछले दिनों गया जिले में भी इस बीमारी से तीन बच्चों की मौत होने के बाद जिला स्वास्थ्य महकमा काफी सतर्क हो गयी है. इसके लिए कहा जा रहा है कि जिला अस्पताल से लेकर एपीएससी तक इस बीमारी के लिए पर्याप्त दवाएं उपलब्ध करा दी गयी हैं. नवादा से गया के सटे होने के कारण जिले को रिस्क जोन में रखा गया है.
इसे सख्ती से पालन किये जाने के लिए फिर से टीकाकरण किया जा रहा है. इन दिनों जिस कदर निजी क्लिनिक में मरीजों की तादाद बढ़ी है, उससे यह साफ हो रहा है कि मौसमी बीमारियों का प्रकोप बढ़ चुका है. हालांकि, सदर अस्पताल में बच्चों के चिकित्सक की कमी बरकरार है. यही वजह है कि प्राइवेट क्लिनिक में मरीजों की संख्या बढ़ी हुई है.
एक से 15 वर्ष के बच्चों को होती है एईएस व जेई
मस्तिष्क ज्वर के रूप में इस बीमारी का वैज्ञानिक नाम एईएस व जेई है. यह बीमारी एक से 15 वर्ष के बच्चों में अधिक होता है. इसके लिए लोगों को इस बीमारी का लक्षण पकड़ने की जरूरत है. इसमें तेज बुखार आना व लगातार बुखार रहना, पूरे शरीर या किसी खास अंग में ऐंठन होना, बच्चे का बेहोश होना व दांत पर दांत बैठाना, शरीर में चमकी होना, बच्चे का सुस्त होना, चिउंटी काटने पर शरीर में कोई हरकत नहीं होना इस बीमारी के प्रमुख लक्षण है.
ग्रामीण इलाकों में अधिक फैलती है बीमारी
जानकारी के अनुसार, यह बीमारी ग्रामीण इलाकों में अधिक फैलती है़ इससे बचने के लिए सफाई का पूरा ध्यान रखने की जरूरत है. ग्रामीण इलाकों में इस बात पर लोग ध्यान नहीं देते हैं. यही वजह है कि मौसमी बीमारियों के अलावा ऐसी खतरनाक बीमारियों की चपेट में सबसे अधिक ग्रामीण बच्चे ही होते हैं. स्वास्थ्य विभाग इसके लिए ग्रामीण स्तर पर विशेष सुविधाओं का प्रबंध करा रखा है. इसमें हैलोजन टैबलेट, जिंक तथा उल्टी व दस्त की दवा और स्लाइन के अलावा ब्लीचिंग पाउडर की व्यवस्था की गयी है़ इस बीमारी के लिए चिकित्सा पदाधिकारियों व स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण दिये जाने की भी तैयारी जिला स्वास्थ्य समिति के द्वारा की जा रही है.
बच्चों को कभी भी गंदगी में नहीं रखें, उसे हमेशा साफ-सफाईवाले स्थान पर रखंे, खाना हमेशा ताजा दें. बाजार के खाने-पीने की चीजों से बच्चों को दूर रखें. ऐसे मौसम में बच्चों के प्रति सावधानी बढ़ जाती है. बरसात के मौसम में बच्चों को बाहर भीगने नहीं दें. सावधानी बरतने से ही मौसमी बीमारियों से बच सकते हैं़ बुखार हो या उल्टी-दस्त किसी भी हालत में तुरंत नजदीक के चिकित्सक से मिलना चाहिए.
डाॅ अखिलेश कुमार मोहन, शिशु रोग चिकित्सक
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