Bihar News: मुजफ्फरपुर में कुपोषण अब भी एक भयावह सच है. नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, जिले में 47 हजार बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, जिनमें से 12.12 फीसदी पांच वर्ष से कम आयु के हैं. तीन लाख से अधिक बच्चे जिले के 3,918 आंगनबाड़ी केंद्रों पर पंजीकृत हैं, लेकिन इनमें से हजारों को समुचित पोषण नहीं मिल पा रहा है.
गर्भवती महिलाएं और माताएं भी कुपोषण की चपेट में
जीविका दीदियों द्वारा हाल ही में किए गए सर्वे के अनुसार, जिले में पंजीकृत 21,273 गर्भवती महिलाओं में से 2,739 कुपोषित पाई गईं. वहीं 17,952 नवजात माताओं में से 1,863 को पोषण की जरूरत है. यह आंकड़ा खुद बयां करता है कि महिलाओं की स्थिति भी बच्चों से अलग नहीं है.
पोषण पखवाड़ा, लेकिन असर की गारंटी नहीं
समाज कल्याण विभाग ने 8 अप्रैल से 22 अप्रैल तक पोषण पखवाड़ा चलाने की घोषणा की है. इस अभियान में बच्चों और माताओं को पौष्टिक आहार, एनीमिया और डायरिया से बचाव का प्रशिक्षण देने का दावा किया गया है. लेकिन सवाल यह है कि क्या 15 दिनों के भीतर इतने बड़े स्तर पर कोई बदलाव लाया जा सकेगा?
पोषण केंद्र मौजूद, लेकिन बच्चे नहीं पहुंचते
सदर अस्पताल परिसर में 20 बेड का पोषण पुनर्वास केंद्र चालू है. इसमें छह माह से 59 महीने तक के बच्चों के लिए 24 घंटे डॉक्टर, एएनएम और रसोइया की व्यवस्था है. बावजूद इसके, पिछले एक साल में यहां सिर्फ 166 बच्चों का इलाज हो सका है. विभागीय निर्देशों के बावजूद आंगनबाड़ी और पीएचसी स्तर से बच्चों को केंद्र तक नहीं भेजा जा रहा.
ये भी पढ़े: प्रेमी संग भागी पत्नी 15 साल बाद लौटी, अब पति को दे रही धमकी– घर में नहीं रखा तो भेज दूंगी जेल
जमीनी उदासीनता सबसे बड़ी चुनौती
पोषण पुनर्वास केंद्र के प्रभारी पवन शर्मा का कहना है कि सभी आंगनबाड़ी और पीएचसी को निर्देश दिए गए हैं, लेकिन फील्ड स्तर पर लापरवाही के चलते बच्चे केंद्र तक नहीं पहुंच पा रहे.