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Muzaffarpur में 1902 में बंग्लाभाषी समुदाय ने शुरू की थी दुर्गा पूजा, जानें कब कहां शुरू हुई पूजा

Muzaffarpur में बांग्लाभाषी समुदाय की ओर से हरिसभा स्कूल में 1902 से दुर्गा पूजा हो रही है. देश की पराधीनता के वक्त दुर्गा पूजा की शुरुआत देशभक्तों को संगठित करने का माध्यम था. पांच दिनों तक लोग यहां एकजुट होते थे और मां की पूजा के साथ आंदोलन की नीति भी बनाते थे.

Muzaffarpur में बांग्लाभाषी समुदाय की ओर से हरिसभा स्कूल में 1902 से दुर्गा पूजा हो रही है. देश की पराधीनता के वक्त दुर्गा पूजा की शुरुआत देशभक्तों को संगठित करने का माध्यम था. पांच दिनों तक लोग यहां एकजुट होते थे और मां की पूजा के साथ आंदोलन की नीति भी बनाते थे. उस दौरान रंग-बंग समाज भी काफी एक्टिव था. पूजा की शुरुआत के दूसरे साल ही 1902 में यहां कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर का यहां नागरिक सम्मान किया गया. उस दौरान कमलाचरण मुखोपाध्याय, रमेशचंद्र राय, केशवचंद्र बसु, प्यारे मोहन मुखोपाध्याय, प्रभाषचंद्र बंद्योपाध्याय, बेनी माधव भट्टाचार्य व ज्ञानेंद्रनाथ देव काफी सक्रिय थे.

अघोरिया बाजार में 1954 से हो रही दुर्गा पूजा

अघोरिया बाजार भव्य पंडाल और सुंदर लाइटिंग के कारण जाना जाता है. शहर में माता के दर्शन के लिए निकलने वाले लोग अघोरिया बाजार में एक बार जरूर घूमना चाहते हैं. यहां पूजा की शुरुआत 1954 से की गयी थी. उस वक्त रामफल मिस्त्री, जगदीश प्रसाद, श्याम सुंदर प्रसाद, रामावतार साह, मथुरा प्रसाद साह, छट्टूसिंह, झगरू साह, महावीर प्रसाद, रामदेव साह, फूदन दास और जगदीश हलवाई ने पूजा की शुरुआत की थी. इसके बाद से लगातार यहां पूजा होती आ रही है. इस बार अध्यक्ष नंद किशोर प्रसाद के नेतृत्व में भव्य पंडाल बनाया गया है.

86 वर्षों से हो रही बंगलामुखी मंदिर में पूजा

भक्तों की आस्था का केंद्र नकुलवा चौक स्थित बगलामुखी मंदिर में दुर्गा पूजा करीब 86 वर्षों से हो रही है. हालांकि पिछले दस वर्षों में यहां भक्तों की भीड़ काफी बढ़ी है. यहां दक्षिण और वाम मार्गी तरीके से मां की पूजा की जाती है. यहां मां की अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित है. ऐसी मान्यता है कि यहां आकर मां की पूजा करने वालों की सारी मनोकामना पूर्ण होती है. यहां मां को हल्दी का भोग लगाया जाता है. अन्य दिनों भी सुबह और शाम में यहां भक्तों की काफी भीड़ हुआ करती है. बड़ी संख्या में भक्त यहां मन्नत मांगने के लिए आते हैं.

मोतीझील की दुर्गा पूजा याद दिलाती है आजादी

मोतीझील दुर्गा पूजा समिति की ओर से पांडेय गली में 1947 से दुर्गा पूजा हो रही है. यहां की पूजा भी बेहतर साज-सज्जा के लिए जानी जाती है. यहां भक्तों को फिल्म की तरह मां दुर्गा का राक्षस का वध किया जाना दिखाया जाता है. इस कारण सप्तमी से नवमी तक भक्तों की काफी भीड़ रहती है. यहां की लाइटिंग की व्यवस्था भी अच्छी रहती है. शहर में घूमने निकले लोग यहां आकर माता का दर्शन जरूर करते हैं. इस बार यहां महाकालेश्वर का स्वरूप बनाया गया है. मां के दर्शन के साथ पंडाल देखने लोग दूर-दूर से यहां पहुंच रहे हैं.

55 वर्षों से भक्तों की आस्था का केंद्र महामाया स्थान

महेश बाबू चौक स्थित महामाया स्थान मंदिर में पिछले 55 वर्षों से मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जा रही है. इस बार भी यहां बेहतर सजावट के साथ पूजा पंडाल बनाया गया है. यहां आकर्षक लाइट की भी व्यवस्था की गयी है. मंदिर के करीब 200 मीटर की दूरी तक रोड के दोनों तरफ बिजली के रंग-बिरंगे बल्ब लगाये गये हैं. इसकी रोशनी भक्तों का मन मोह रही है. यहां भी दूर-दूर से भक्त मां का दर्शन करने आते हैं. आस्था का केंद्र महामाया स्थान में दुर्गा पूजा के मौके पर काफी संख्या में महिलाएं पूजा और माता को खोइंचा भरने के लिए पहुंचती हैं.

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