प्रतिनिधि, मुंगेर. यदि हम अतीत के लोगों की स्मृतियां अपनी स्मृतियों में संजोते हैं तो हमारा इतिहास बोध सशक्त बनता है. उक्त बातें बुधवार को जेआरएस कॉलेज, जमालपुर में मुंगेर विश्वविद्यालय के इतिहास पीजी विभाग द्वारा आयोजित सिनेमा, साहित्य और इतिहास विषय पर चर्चा के दौरान रविंद्र भारती विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो हितेंद्र पटेल ने कही. उन्होंने कहा कि हमारी स्मृतियां हमारे साथ बनी रहती हैं. इतिहास लिखने के लिए केवल बाहरी स्रोत और तथ्य नहीं होते, बल्कि ये तत्व हमारे अंदर भी मौजूद होते हैं. जब हम इन दोनों को जोड़ते हैं, तभी असली इतिहास बनता है. इस प्रक्रिया में फिल्म, साहित्य और काल से प्रेरणा लेकर हम इतिहास को सही रूप से समझ सकते हैं. इस प्रकार इतिहास तक पहुंचने के लिए हमें इन विभिन्न माध्यमों को जोड़ने की आवश्यकता होती है. ताकि हम सही और समग्र दृष्टिकोण से अतीत को समझ सकें. पुरूलिया से आयी डाॅ नंदिता ने कहा कि साहित्य पर आधारित फिल्में लगातार बनी हैं. इन साहित्यिक और सिनेमा में गहरी संवेदनाओं और सामाजिक मुद्दों को उजागर किया गया है. हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखकों जैसे प्रेमचंद और रेणु की कहानियां भी फिल्मों में रूपांतरित की गयी. इसमें समाज के विभिन्न पहलुओं का सूक्ष्म और बारीक चित्रण किया गया. डॉ मंजू लाल जी ने कहा कि तीन घंटे की एक फिल्म में एक पूरा युग सिमट सकता है. यह एक अनूठी प्रक्रिया है. जहां फिल्म न केवल किसी कालखंड को प्रदर्शित करती है, बल्कि उस समय की भावनाओं, संघर्षों और परिवर्तनों को भी हमारे सामने प्रस्तुत करती है. सिनेमा हमें यह समझने में मदद करती है कि हम किस प्रकार अपने समय और समाज से जुड़े हुए हैं. कॉलेज के प्राचार्य प्रो. देवराज सुमन ने साहित्य, इतिहास और सिनेमा के बीच संबंधों की चर्चा की.
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