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करोड़ों हुआ खर्च, नहीं बना पुल

घोरघट पुल . प्रशासनिक पेच में आठ साल से फंसा है भूमि अधिग्रहण का मामला मुंगेर एवं भागलपुर के बीच राष्ट्रीय उच्च पथ 80 पर स्थित घोरघट पुल का निर्माण प्रशासनिक पेंच में फंसा हुआ है. पिछले आठ वर्षों से भूमि अधिग्रहण का मामला लंबित है. जिसका निष्पादन नहीं हो रहा. फलत: मुंगेर यातायात के […]

घोरघट पुल . प्रशासनिक पेच में आठ साल से फंसा है भूमि अधिग्रहण का मामला

मुंगेर एवं भागलपुर के बीच राष्ट्रीय उच्च पथ 80 पर स्थित घोरघट पुल का निर्माण प्रशासनिक पेंच में फंसा हुआ है. पिछले आठ वर्षों से भूमि अधिग्रहण का मामला लंबित है. जिसका निष्पादन नहीं हो रहा. फलत: मुंगेर यातायात के दृष्टिकोण से टापू बन गया है. क्योंकि पूर्व बिहार व झारखंड से बड़े वाहनों का परिचालन मुंगेर तक नहीं हो पा रहा.
मुंगेर : राष्ट्रीय उच्च पथ 80 पर मुंगेर एवं भागलपुर की सीमा घोरघट में मणी नदी पर पुल बना हुआ है. वर्ष 2006 में श्रावणी मेला के उद्घाटन करने के लिए जब राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सुलतानगंज जा रहे थे तो उनके काफिले के गुजरते ही यह पुल धंस गया था.
इस पुल पर बड़े वाहनों का परिचालन रोक दिया गया और बाद में बेली ब्रिज डाल कर यातायात को सुचारु किया गया. किंतु बेली ब्रिज से ही सिर्फ छोटे वाहनों का ही परिचालन संभव हो पा रहा. मणी नदी पर पुल बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण करना जरूरी है. ताकि नये पुल का निर्माण हो सके. किंतु आठ वर्षों से भूमि अधिग्रहण का मामला फाइलों में ही दौड़ रहा है.
करोड़ों खर्च के बाद भी नहीं बना पुल
पुल निर्माण के लिए मुंगेर सीमा में जहां भूमि अधिग्रहण का मामला लंबित है. वहीं एनएचआइ ने पुल बनाने के लिए प्रक्रिया प्रारंभ की थी. जिसके लिए निविदा निकाला गया और एक कंपनी को वर्क ऑर्डर भी मिला. कंपनी ने आनन-फानन में पुल के पाइलिंग का कार्य भी किया और यह कहते हुए अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया कि जब तक भूमि अधिग्रहण नहीं होगा तब तक पुल निर्माण का कार्य संभव नहीं है. स्थानीय लोगों का कहना है कि जिस कंपनी ने पाइलिंग का कार्य कर करोड़ों की राशि निकाली है उसमें व्यापक स्तर पर अनियमितता बरती गयी है.
मुआवजे की राशि में फंसा मामला
भू स्वामियों को मुआवजे की उचित राशि नहीं मिलने के कारण भूमि अधिग्रहण का मामला फंसा हुआ है. सर्किल रेट के आधार पर घोरघट के कठगोला में महज 7 हजार रुपये प्रति डिसमिल मुआवज की राशि तय की गयी है. जबकि यह स्थल राष्ट्रीय उच्च पथ 80 पर स्थित है. भू-स्वामियों का कहना है कि इसी प्रखंड पडि़या में 3 लाख 90 हजार रुपये प्रति डिसमिल के आधार पर मुआवजे के राशि की भुगतान की गयी है. जाहिर है कि कहीं 7 हजार तो कहीं 3.90 लाख का फासला लोगों के समझ से पड़े हो गया है.
सीओ के नोटिस से भू-स्वामी आक्रोशित
एक ओर पिछले आठ वर्षों से भूमि अधिग्रहण का मामला फंसा हुआ है तो दूसरी ओर बरियारपुर के अंचलाधिकारी भू-स्वामियों को नोटिस भेज कर कहा है कि यह जमीन गैर मजरुआ आम है. इसलिए क्यों नहीं जमाबंदी रद्द कर दी जाय. यदि जमाबंदी रद्द होती है तो भू-स्वामियों को मुआवजे की राशि ही नहीं मिलेगी. अंचलाधिकारी के इस नोटिस के बाद भू-स्वामियों में आक्रोश है. अलबत्ता यह कि जिस रैयत अमरेंद्र कुमार को मुआवजे की राशि का भुगतान कर दिया गया है उसे भी नोटिस भेजा गया है. कुल मिला कर प्रशासनिक पेंच में यह मामला फंसा हुआ है.
कहते हैं अधिकारी
बरियारपुर के अंचलाधिकारी मुकुल कुमार झा ने बताया कि जिला भू अर्जन पदाधिकारी के निर्देशानुसार भू स्वामियों को नोटिस भेजा गया है. जिसमें तीन बिंदुओं पर जांच होनी है. पहला जमीन के दखलकारी का किस प्रकार अधिकार है, जमीन का
किस्म व रकवा. इस मामले में जांच कर भू-अर्जन पदाधिकारी को रिपोर्ट भेजी जायेगी.

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