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मुंगेर संसदीय क्षेत्र : तांगे से प्रचार कर तीन बार संसद पहुंचे थे बनारसी बाबू
राणा गौरी शंकर मुंगेर : मुंगेर संसदीय क्षेत्र के पहले सांसद बनारसी प्रसाद सिंह राजनीतिक जीवन में साफ-सुथरे और ईमानदार छवि के नेता थे. आजादी के बाद सन 1952 में जब देश में पहली बार लोकसभा का चुनाव हुआ, तो वे मुंगेर के सांसद चुने गये. लगातार तीन बार 1952, 1957 व 1962 में उन्होंने […]
राणा गौरी शंकर
मुंगेर : मुंगेर संसदीय क्षेत्र के पहले सांसद बनारसी प्रसाद सिंह राजनीतिक जीवन में साफ-सुथरे और ईमानदार छवि के नेता थे. आजादी के बाद सन 1952 में जब देश में पहली बार लोकसभा का चुनाव हुआ, तो वे मुंगेर के सांसद चुने गये. लगातार तीन बार 1952, 1957 व 1962 में उन्होंने अपनी जीत दर्ज करायी थी. सादा जीवन-उच्च विचार के प्रतिमूर्ति बनारसी बाबू तांगा से प्रचार करते थे और पहले चुनाव में मात्र 3000 रुपये खर्च कर वे सांसद बने थे.
प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों का भी करते थे स्वागत : उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशियों को भी अपने घर भोजन कराते थे. जब बनारसी बाबू ने संसदीय चुनाव लड़ा था, तो उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार के रूप में किशुन यादव थे. क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि जब किशुन यादव चुनाव प्रचार के लिए बनारसी बाबू के गांव खड़गपुर के मिलकी आते थे, तो उनका भोजन बनारसी बाबू के घर ही होता था. बनारसी बाबू उनका स्वागत करते थे और फिर भोजन कराकर उन्हें अपने गांव में भी वोट मांगने के लिए भेजते थे.
3000 हजार खर्च कर पहली बार पहुंचे थे संसद
भारतीय संसदीय व्यवस्था कि यह खूबसूरती रही है कि जमीन के निचले पायदान के लोग भी उच्च पदों पर जाते रहे हैं. तब चुनाव में इतना ताम-झाम नहीं था. बनारसी बाबू के पौत्र समीर कुमार सिंह का कहना है कि पहले चुनाव में मात्र 3000 रुपये खर्च कर उनके दादा जी एमपी बने थे. चूंकि बनारसी बाबू अपनी दैनिकी लिखते थे, इसलिए उनकी डायरी में यह अंकित है. इतना ही नहीं, सन् 1957 में 4000 और 1962 में 4500 रुपये खर्च हुए थे.
खादी की गंजी पहनकर जाते थे संसद: सांसद बनारसी प्रसाद सिंह गांधीवादी थे. वे जीवन पर्यंत धोती
के साथ खादी की गोल गला जेबी वाली गंजी पहनते रहे. यहां तक कि वे गंजी पहन कर ही लोकसभा जाते थे. एक बार संसद में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनसे कहा कि वे गंजी पहन कर संसद आते हैं, कुर्ता क्यों नहीं पहनते. तब बनारसी बाबू ने जवाब दिया था कि वे जिस क्षेत्र से आते हैं, वहां हजारों लोग हमारी जैसी गंजी भी नहीं पहनते, तो फिर मैं कुर्ता कैसे पहनूं.
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