हरलाखी.
मिथिलाधाम की प्रसिद्ध मध्यमा परिक्रमा यात्रा बुधवार को विशौल गांव स्थित विश्वामित्र आश्रम पहुंची. जहां भगवान बिहारी व किशोरी जी की डोला को ग्रामीणों ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया. बुधवार को सुबह करुणा गांव स्थित रामसागर पड़ाव से भगवान की डोली विश्वामित्र आश्रम के लिए निकली. जहां रास्ते में ग्रामीणों ने भगवान की डोली को हाथ जोड़कर नम आंखों से श्रद्धा निवेदित की. डोली के पीछे- पीछे हजारों की संख्या में साधु महात्मा जय किशोरी जी जय श्रीराम की जयकारे लगाते हुए विश्वामित्र आश्रम पहुंचे. इससे पहले परिक्रमा यात्रियों ने कल्याणेश्वर स्थान जाकर भगवान शिव के दर्शन व पूजा की. जब परिक्रमा यात्री कल्याणेश्वर स्थान में रात्रि विश्राम के बाद जब अगले सुबह फुलहर गिरिजा माई स्थान के लिए रवाना होने लगते है तो उसी दिन पंद्रह दिनों में पन्द्रह देव स्थलों की भ्रमण करने का संकल्प लेकर कल्याणेश्वर मंदिर के दीवारों पर अपना -अपना निशान बना देते है. फिर जब 14 वें पड़ाव के लिए करुणा गांव से विश्वामित्र आश्रम के लिए निकलते है तो सबसे पहले कल्याणेश्वर स्थान आकर दिए गए चिन्हों को मिटाते है. उसके बाद विशौल गांव स्थित विश्वामित्र आश्रम में रात्रि विश्राम करते है.महंत एवं ग्रामीणों ने किया स्वागत
डोली संग साधु महात्माओं जब पहुंचे तो सबसे पहले विश्वामित्र आश्रम के महंत ब्रजमोहन दास संग विशौल के ग्रामीणों ने भगवान की डोली पर पुष्पवर्षा कर स्वागत किया. फिर किशोरी जी व जानकी जी को विभिन्न प्रकार की व्यंजन का भोग लगाया गया. परिक्रमा यात्रियों व साधु संतों के भोजन के लिए ग्रामीणों के सहयोग से महंत द्वारा भव्य भंडारे का आयोजन किया गया था. जहां सुबह से देर शाम तक भंडारा चलता रहा. भंडारे में साधु संत व परिक्रमा यात्रियों की काफी भीड़ देखी गई.जहां-जहां ठहरे थे प्रभु श्रीराम उन स्थानों का होता है भ्रमण
मान्यता है कि जहां-जहां प्रभु श्रीराम ठहरे थे उन सभी देव स्थलों का भ्रमण परिक्रमा यात्री करते है. इसी प्रकार मान्यता है कि तत्कालीन राजा जनक द्वारा आयोजित सीता स्वयंवर में शामिल होने के लिए अपने गुरु विश्वामित्र के साथ जब प्रभु श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ जब धनुष यज्ञ में भाग लेने आए थे. उस समय राजा जनक ने गुरु विश्वामित्र संग भगवान को इसी स्थान में ठहरने की व्यवस्था किए थे. इसी जगह से अपने गुरु की पूजा के लिए फूल चुनने फुलहर गांव स्थित जनक के फुलबाड़ी फुलहर बाग तड़ाग में गए थे, जहां माता सीता व प्रभु श्रीराम का पहला मिलन हुआ था. इसलिए यह स्थान विश्वामित्र आश्रम के नाम से विख्यात है. मान्यता के अनुसार पन्द्रह देव स्थलों में एक स्थल विश्वामित्र आश्रम भी माना जाता है. यही कारण है कि परिक्रमा यात्री एक रात का विश्राम विश्वामित्र आश्रम में करते है.
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