मधेपुरा : जिले में कछुये की गति से रेंगते वाहन और पार्किंग के लिए जद्दोजहद यहां की पहचान बन कर रह गयी है. शहर के मुख्य मार्ग से लेकर वैकल्पिक रास्तों पर अतिक्रमण के बाजार सजे हुए हैं. जिन मार्गों पर अब तक राह आसान नजर आ रही थी, वहां भी रूकावटों ने जड़ें मजबूत कर ली है. यातायात की कमान संभाले यातायात पुलिस की भूमिका महज चालान कर्मचारियों तक सिमट कर रह गयी है.
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सिमट रहीं सड़कें, जिले में निजी व व्यावसायिक वाहनों की बढ़ी संख्या
मधेपुरा : जिले में कछुये की गति से रेंगते वाहन और पार्किंग के लिए जद्दोजहद यहां की पहचान बन कर रह गयी है. शहर के मुख्य मार्ग से लेकर वैकल्पिक रास्तों पर अतिक्रमण के बाजार सजे हुए हैं. जिन मार्गों पर अब तक राह आसान नजर आ रही थी, वहां भी रूकावटों ने जड़ें मजबूत […]
नगर परिषद उदासीनता के भंवर से बाहर आने की इच्छाशक्ति नहीं दिखा पा रही हैं. इसका खामियाजा यातायात व्यवस्था पर प्रतिकूल दिख रहा है. मुख्य बाजारों में पार्किंग की समस्या हावी है. इन सब परेशानियों के बीच अब तक समाधान की दिशा में उठाये गये कदम नाकाफी साबित हो रहे हैं.
वाहनों के बोझ से लोगों का राह चलना भी मुश्किल: शहर में तेज रफ्तार से जारी रेल इंजन फैक्ट्री, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, विश्वविद्यालय निर्माण के कारण शहर की सूरत अवश्य बदली है, पर सड़कों पर लगातार बढ़ रहे वाहनों के बोझ से लोगों का राह चलना भी मुश्किल होते जा रहा है.
प्रति वर्ष जिले में निजी व व्यावसायिक वाहनों की संख्या भी बढ़ती जा रही है़. इसमें निजी वाहनों की संख्या अधिक है. अमूमन प्रति वर्ष जिले में हजार निजी व व्यावसायिक वाहन नये आते हैं. इसमें अधिकांश निजी होता है़.
वहीं कई वैसे वाहनों का परिचालन भी बेरोकटोक जारी है, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है़. पर्यावरण व यात्रियों की सुरक्षा के लिए बड़े व्यावसायिक और निजी वाहनों की दुरूस्तगी व वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण की जांच के लिए मोटर व्हेकिल एक्ट के तहत जांच कर प्रमाण पत्र देने तथा इस मामले में दोषी पाये गये वाहन मालिकों से जुर्माना वसूल करने का प्रावधान है.
वाहनों की रफ्तार से होती हैं दुर्घटनाएं:
शहर की सड़कों पर दो पहिया वाहनों पर ट्रिपल लोडिंग के अलावा तेज रफ्तार से गाड़ी चलाने के क्रम में अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं.
जिला मुख्यालय में इन दिनों लगातार चलाये जा रहे वाहन चेकिंग अभियान में आये दिन पुलिस ऐसे मनचलों को दंडित करती नजर आती है. बावजूद इसके इस अवैध और अमानवीय गतिविधियां नियंत्रित नहीं हो पा रही है.
सड़कों पर बढ़ते बोझ के कारण निकल रहा है सड़कों का दम: सड़कों पर भारी वाहनों का संचालन जिला प्रशासन के गले की फांस बनता नजर आ रहा है. शहर में भारी वाहनों का आवागमन से दबाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. यातायात की व्यवस्था पूर्व के वर्षों व उस समय की भौगोलिक संरचना एवं आबादी क्षेत्र के अनुसार की गयी थी, जो अब काफी बदली हुई है़.
सड़कों पर बढ़ते बोझ के कारण जहां उनका दम निकल रहा है, वहीं उन्हें सुधारने के लिए कोई पहल नहीं हो रही. ट्रैक्टर की भांति ही ट्रॉलियों के निबंधन की अनिवार्यता है, जिसके लिए एक मुश्त छह हजार रुपये शुल्क 12 वर्षों के लिए लिया जाता है़.
वहीं ट्रैक्टर के लिए अवधि 15 वर्ष निर्धारित की गयी है़. वैसे ट्रॉलियों में रिफ्लेक्टर लाइट लगाने की अनिवार्यता नहीं है, जिससे संबंधित ट्रैक्टर के पीछे की लाइट ट्रॉली से अधिक ऊंचाई पर लगी हो. वहीं बगैर निबंधन के चलने वाले ट्रैक्टर व ट्रॉली के पकड़े जाने पर वाहन मालिक व चालक दोनों से एक एक हजार रुपया जुर्माना वसूल किया जा सकता है.
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