-टी बोर्ड ने अब तक जारी नहीं किया है चाय उत्पादन बंद करने का निर्देश ठाकुरगंज जाड़ा आ चूका है, मगर इस साल अब तक टी बोर्ड ने चाय उत्पादन बंद करने को लेकर कोई स्पष्ट निर्देश जारी नहीं किया है. जिस कारण अभी भी बागानों से पत्तियां टूट रही है. बताते चले कि गत वर्ष उत्तर बंगाल, बिहार और असम में चाय उत्पादन पूर्व निर्धारित समय से पहले ही 30 नवंबर से बंद कर दिया गया था जिसके चलते चाय बागान मालिकों संग टी प्रोसेसिंग प्लांट को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था. टी बोर्ड के इस कदम ने चाय उद्योग में बड़ा विवाद पैदा कर दिया था. मुख्य रूप से बंगाल के राजनेताओं ने टी बोर्ड के फैसले का विरोध किया था. शायद उसी राजनीतिक व औद्योगिक दबाव के बीच इस बार टी बोर्ड पूरी तरह साइलेंट मोड में दिखाई दे रहा है. बताते चले कि शीत ऋतु में कीट-पतंगों की संख्या काफी बढ़ जाती है जो चाय बागानों में चाय की पत्तियों को चट कर उनकी गुणवत्ता खराब कर देते है. इसलिए हर साल जाड़े के मोसम में चाय बागानों में पत्तियां तोड़ने पर रोक लगा दी जाती है. हालांकि जानकार बताते है कि इसी वर्ष बंगाल मे होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए टी बोर्ड इस मुद्दे पर फिलहाल किसी अनावश्यक विवाद से बचना चाहता है. इसलिए अब तक चाय उत्पादन बंद करने का कोई निर्देश नहीं दिया है. चाय उद्योग से जुड़े कई विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि शायद इस बार चाय उत्पादन बंद करने का निर्णय बागानों पर ही छोड़ दिया गया है जैसा कि लगभग 8 वर्ष पहले तक प्रचलित था. इस बीच, टी बोर्ड की ओर से निर्देश न आने के बावजूद समीपवर्ती बंगाल के कई चाय बागान शीतकालीन रख-रखाव का काम खुद ही शुरू कर चुके है. वही बिहार में अभी भी कई बागानों में चाय पत्ती टूटने का सिलसिला जारी है. बताते चले कि हाल ही में टी बोर्ड ने चाय उत्पादकों एवं व्यवसायियों के संगठनों के प्रतिनिधियों संग एक ऑनलाइन मीटिंग की थी. उसमें अधिकांश प्रतिनिधियों ने आग्रह किया था कि उत्पादन बंद करने का कोई आदेश थोपने के बजाय चर्चा व सहमति से निर्णय लिया जाए. वही ठाकुरगंज के चाय उत्पादक किसानो ने कहा कि गत वर्ष जल्दबाज़ी में चाय उत्पादन बंद किए जाने के निर्णय से चाय उद्योग जगत में भारी नाराजगी थी. इस बार हमें विश्वास है कि टी बोर्ड सभी पक्षों की राय लेकर ही कोई उचित निर्णय लेगा. किसानों ने कहा कि जब तक अच्छी गुणवत्ता की पत्तियां उपलब्ध है, उत्पादन जारी रहना चाहिए. समस्या केवल यह है कि इस दौरान बॉटलिफ फैक्टरियां निम्न स्तर के पत्तों या चाय-कचरे का दुरुपयोग न करे. इसकी कड़ी निगरानी जरूरी है. किसानों का मानना है कि चाय उत्पादन प्रकृति पर आधारित है, इसलिए उत्पादन रोकने का निर्णय भी पत्तियों की उपलब्धता को देखकर ही होना चाहिए. गत वर्ष गुणवत्ता सुधारने के नाम पर समय से पहले उत्पादन रोकने का निर्णय उलटा पड़ गया. फलस्वरूप केन्या व नेपाल की चाय आयातित होने लग गई.
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