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किसी भी पंचायत नहीं होना चाहिए गृह प्रसव : डीएम

जिला प्रशासन ने मातृ और नवजात शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए अब ज़ीरो होम डिलीवरी को लक्ष्य बनाते हुए बड़ी और संवेदनशील पहल शुरू की है

किशनगंज जिला प्रशासन ने मातृ और नवजात शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए अब ज़ीरो होम डिलीवरी को लक्ष्य बनाते हुए बड़ी और संवेदनशील पहल शुरू की है. हाल ही में हुई स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक में जिला पदाधिकारी विशाल राज ने स्पष्ट निर्देश दिया कि जिले की किसी भी पंचायत में अब किसी परिस्थिति में गृह प्रसव नहीं होना चाहिए. इसी निर्देश के बाद स्वास्थ्य विभाग ने पूरे जिले में “गृह प्रसव मुक्त पंचायत अभियान” को तेज गति देते हुए इसे जन-जागरूकता की बड़ी मुहिम में बदल दिया है.

सुरक्षित मातृत्व की बुनियाद: संस्थागत प्रसव क्यों है अनिवार्य

सिविल सर्जन डॉ राज कुमार चौधरी ने कहा कि प्रसव के समय घर पर छोटी-सी चूक भी मां और नवजात दोनों के लिए गंभीर खतरा बन सकती है. रक्तस्राव, प्रसव जटिल होना, उच्च रक्तचाप, झटके आने या नवजात की सांस रुक जाना जैसी स्थिति घर पर संभालना लगभग असंभव होता है. यही कारण है कि जिला प्रशासन ने संस्थागत प्रसव को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए इसे व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामुदायिक जिम्मेदारी बताया है. स्वास्थ्य विभाग का उद्देश्य है कि हर गर्भवती महिला को अस्पताल के सुरक्षित वातावरण में प्रशिक्षित डॉक्टर और नर्स की देखरेख में प्रसव कराने का अवसर सुनिश्चित हो.महिला चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. शबनम यास्मीन कहती हैं कि अस्पताल में प्रसव न सिर्फ सुरक्षित मातृत्व की गारंटी है बल्कि यह एक महिला का अधिकार भी है. उनके अनुसार संस्थागत प्रसव ही वह माध्यम है जो जटिल स्थितियों में मां और शिशु की जान बचाता है.

हर पंचायत को बनाना है गृह प्रसव मुक्त- डीएम

समीक्षा बैठक में जिला पदाधिकारी विशाल राज ने निर्देश दिया कि आशा, एएनएम, बीएमओ और पंचायत प्रतिनिधि मिलकर गांव-गांव संपर्क अभियान शुरू करें. उन्होंने कहा कि किसी भी पंचायत में यदि घर पर प्रसव होता है तो इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए तुरंत चिकित्सा टीम वहां पहुंचेगी और सुरक्षा सुनिश्चित करेगी. डीएम ने साफ तौर पर कहा कि प्रसव को घर से अस्पताल तक लाना केवल स्वास्थ्य विभाग का नहीं बल्कि पूरे समाज का दायित्व है.

जागरूकता, सेवाएं और निगरानी एकसाथ

सिविल सर्जन डॉ राज कुमार चौधरी ने बताया कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग एवं सहयोगी संस्था पिरामल के संयुक्त समन्वय से अभियान को जन-आंदोलन बनाने की दिशा में कार्य हो रहा है. गांव-गांव जाकर गर्भवती महिलाओं की पहचान, उनकी स्थिति का आकलन, प्रसव पूर्व जांच, अस्पताल रेफरल और समय पर एंबुलेंस उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है.उन्होंने कहा कि विभाग का प्रयास है कि गर्भवती महिलाओं को न सिर्फ प्रसव के समय चिकित्सा सुविधा मिले, बल्कि परामर्श, पोषण, सुरक्षित प्रसव की तैयारी और प्रसवोत्तर देखभाल भी व्यवस्थित रूप से मिल सके. इसी क्रम में पंचायत प्रतिनिधियों, स्वयंसेवी समूहों और महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को अभियान से जोड़कर सामुदायिक सहयोग बढ़ाया जा रहा है.

मां और शिशु की सुरक्षा सर्वोपरि: संस्थागत प्रसव से मिलती है जीवनरक्षा

डॉ चौधरी बताते हैं कि अस्पताल में प्रसव से जटिलताओं का तुरंत उपचार संभव हो पाता है. इसके साथ ही नवजात को जन्म के तुरंत बाद जांच, स्तनपान की सलाह, आवश्यक टीकाकरण और प्रसवोत्तर देखरेख की सुविधा भी प्रदान की जाती है. उनका कहना है कि यह अभियान केवल सरकारी प्रयास नहीं बल्कि हर मां की जिंदगी से जुड़ा संकल्प है, जिसे सफल बनाने के लिए परिवारों को जागरूक होना सबसे आवश्यक है.

अभियान के तहत आशा और एएनएम लगातार घर-घर जाकर गर्भवती महिलाओं और परिवारों से बातचीत कर रही हैं, वही सहयोगी संस्था पिरामल स्वास्थ्य द्वारा भी व्यापक जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे है .प्रसव तिथि के अनुसार योजना बन रही है, और यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि कोई महिला अनभिज्ञता, दूरी या संसाधनों की कमी के कारण घर पर प्रसव न कराए. कई पंचायतों में जन-जागरूकता रैलियां, समूह बैठकें और सामुदायिक संवाद आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि सुरक्षित मातृत्व का संदेश हर परिवार तक पहुंचे.जिले की हर पंचायत को “गृह प्रसव मुक्त पंचायत” घोषित करना और सुरक्षित मातृत्व को एक स्थायी व्यवहार के रूप में स्थापित करना.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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