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स्कूल के नाम पर चला रहे दुकान, प्रशासन है चुप

मनमानी : निजी स्कूलों में अभिभावकों को हो रहा शाेषण निजी स्कूलों में मनमानी चरम पर है. री-एडमिशन, पाठ्यपुस्तक सहित पठन-पाठन से जुड़ी अन्य सामग्रियों की खरीदारी विद्यालय प्रबंधन की मर्जी से होने की वजह से अभिभावक परेशान हैं. पर, वे भी बच्चों के भविष्य के लिए चुप रहने में ही भलाई समझते हैं. कटिहार […]

मनमानी : निजी स्कूलों में अभिभावकों को हो रहा शाेषण

निजी स्कूलों में मनमानी चरम पर है. री-एडमिशन, पाठ्यपुस्तक सहित पठन-पाठन से जुड़ी अन्य सामग्रियों की खरीदारी विद्यालय प्रबंधन की मर्जी से होने की वजह से अभिभावक परेशान हैं. पर, वे भी बच्चों के भविष्य के लिए चुप रहने में ही भलाई समझते हैं.
कटिहार : जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में निजी विद्यालयों कि मनमानी पर अब तक कोई रोक नहीं लगी है. फलस्वरुप अभिभावक निजी विद्यालयों की मनमानी का शिकार बन रहे हैं. इसमें जिला शिक्षा विभाग भी पूरी तरह उदासीन बना हुआ है. री-एडमिशन, पाठ्यपुस्तक सहित पठन-पाठन से जुड़ी अन्य सामग्रियों की खरीदारी विद्यालय प्रबंधन की मर्जी से होने की वजह से अभिभावक परेशान हैं. भीतर ही भीतर अभिभावकों में आक्रोश भी पनप रहा है.
पर, कहीं से कोई न्याय नहीं मिलता देख विद्यालय प्रबंधन के अत्याचार को वे सहने को मजबूर हैं. इस बीच यह भी चर्चा होने लगी है कि अधिसंख्य निजी विद्यालय केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के करिकुलम के आधार पर शिक्षा व्यवस्था देने का दावा करते हैं. इस आशय से संबंधित जिक्र भी संबंधित निजी विद्यालय के बोर्ड पर रहता है. पर, इसका अनुपालन निजी विद्यालय नहीं करते करते हैं. शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी चर्चा है कि विभिन्न तरह के प्रकाशकों की मनमर्जी पर ही विद्यालय प्रबंधन पाठ्यपुस्तकों का चयन करते हैं. अप्रैल के शुरू होने के साथ ही नया शैक्षणिक सत्र प्रारंभ हो जाता है.
स्कूल प्रबंधन नये सत्र के प्रारंभ होने पर अभिभावकों को लंबी सूची थमा दे रहे हैं. नर्सरी से लेकर दसवीं व बारहवीं तक के बच्चों को पढ़ाने के नाम पर जिस तरह निजी विद्यालय अलग-अलग मद में सूची अभिभावकों को पकड़ा रहे हैं, वह परेशानी में डालने वाला है. स्कूल प्रबंधन पठन-पाठन सहित अन्य सामग्री उनके दिशा निर्देश पर ही लेने के लिए अभिभावकों बाध्य करते हैं. इस बीच दर्जनों प्रकाशक अपने यहां के पाठ्य पुस्तक लागू करने के लिए विभिन्न निजी विद्यालयों के निदेशक, संचालक एवं प्राचार्य को लुभाने में जुटे हुए हैं. पुस्तक चलाने के नाम पर प्रकाशक द्वारा विद्यालय प्रबंधन को कमीशन के नाम पर मोटी रकम दी जाती है.
कमीशन के आधार पर ही विद्यालय प्रबंधन यह तय करता है कि कौन से प्रकाशक की पुस्तक उनके विद्यालय में चलेगी. इसी तरह विभिन्न मद में भी अलग-अलग विद्यालय अपने हिसाब से फीस निर्धारित करती है. निजी विद्यालयों की मनमानी पर रोक को लेकर न तो प्रशासनिक स्तर पर कोई पहल होती है और न ही जनप्रतिनिधि ही इस दिशा में कोई पहल करते हैं.
कहीं
प्रकाशकों की ओर से दिया जा रहा मोटा कमीशन
अभिभावक निर्देश मानने को हैं मजबूर
निजी विद्यालय यूं तो अलग-अलग फीस के नाम से अभिभावकों का आर्थिक दोहन तो करते ही हैं, सर्वाधिक दोहन पाठ्यपुस्तक के नाम पर होता है. दर्जनों प्रकाशक इन दिनों शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के विभिन्न निजी विद्यालयों में जाकर विद्यालय के निदेशक, संचालक व प्राचार्य को लुभाने में जुटे हैं. विद्यालय प्रबंधन को प्रकाशक की ओर से उनकी पुस्तक चलाने के नाम पर मोटे कमीशन का ऑफर भी दिया जा रहा है.
एक निजी विद्यालय के संचालक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि पुस्तक चलाने के लिए प्रकाशक की ओर से 20 से 40 प्रतिशत तक का कमीशन दिया जाता है. दूसरी तरफ नर्सरी से लेकर 10-12वीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को पाठ्य पुस्तक के लिए 1000 से 4000 तक चुकाना पड़ रहा है. अभिभावकों ने बताया कि विद्यालय प्रबंधन अपने यहां से ही पुस्तक सप्लाई करते हैं. जिन निजी विद्यालयों के पास पाठ्यपुस्तक सप्लाई करने की व्यवस्था नहीं है.
उनके द्वारा निर्धारित पुस्तक दुकान से पुस्तक लेने की हिदायत दी जाती है. मजबूरी में बच्चों के भविष्य का ख्याल करके निर्धारित पुस्तक दुकान से ही पुस्तक लेनी पड़ रही है.
गाइडलाइन है, पर नहीं करते पालन
अधिनियम 2009 जब लागू हुआ, तब इसमें निजी विद्यालय की स्थापना को लेकर कई तरह के जरूरी प्रावधान किये गये. पर, इसका अनुपालन भी नहीं हो रहा है. यद्यपि राज्य सरकार ने निजी विद्यालयों की स्थापना को लेकर गाइडलाइन जारी किया है. पर विभागीय गाइडलाइन फाइलों तक ही सीमित है. कैसे विद्यालय की स्थापना की जाती है. स्थापना करने वाले कौन लोग हैं, उनकी शैक्षणिक योग्यता क्या है. बच्चों को लेकर उनकी भावना क्या है.
आधारभूत संरचना क्या है. नियमावली के तहत विद्यालय स्थापित किये गये हैं या नहीं, आदि कई ऐसे बिंदु हैं, जिन पर विभाग को जानकारी लेना चाहिए. स्थानीय शिक्षा विभाग इस बारे में बिल्कुल मौन है. शायद ही कभी शिक्षा विभाग के अधिकारी निजी विद्याों का निरीक्षण करते हों.
कहीं कोई निगरानी नहीं
निजी विद्यालय में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले सत्यनारायण मंडल कहते हैं कि निजी विद्यालयों को विभिन्न तरह की फीस लेकर शिक्षा के नाम पर लूट की छूट दी गयी है. कहीं कोई निगरानी नहीं. भले ही सीबीएसइ ने निजी विद्यालयों को पाठ्यपुस्तक संचालन को लेकर दिशा निर्देश जारी किया हो,
पर सीबीएसइ करिकुलम के आधार पर शिक्षा देने वाली बड़ी तादाद में स्थापित निजी विद्यालय अपने मनमाफिक ही पाठ्यपुस्तक लागू करते हैं. यही वजह है कि बगैर संबद्धता प्राप्त निजी स्कूल मानक नहीं रहने से अपने मनोनुकूल पाठ्यपुस्तक बच्चों को पढ़ने के लिए विवश कर रहे हैं.

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