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धन कमाने का जरिया बन गया निजी विद्यालय

आरटीई के तहत प्रावधान में यह साफ कहा गया है कि निजी विद्यालय पारदर्शिता के साथ कमजोर एवं वंचित वर्ग के बच्चों का दाखिला 25 प्रतिशत कोटे के तहत लेगी. इसका भी निजी विद्यालय द्वारा उल्लंघन किया जाता है कटिहार : जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में निजी विद्यालय अब धनोपार्जन का जरिया बन […]

आरटीई के तहत प्रावधान में यह साफ कहा गया है कि निजी विद्यालय पारदर्शिता के साथ कमजोर एवं वंचित वर्ग के बच्चों का दाखिला 25 प्रतिशत कोटे के तहत लेगी. इसका भी निजी विद्यालय द्वारा उल्लंघन किया जाता है
कटिहार : जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में निजी विद्यालय अब धनोपार्जन का जरिया बन चुका है. मोटी रकम निवेश कर लोग निजी विद्यालय खोलने में जुटे हैं. जिले में करीब 300 से अधिक निजी विद्यालय संचालित हो रहे हैं. इसमें कई तरह की निजी विद्यालय शामिल है. मसलन बच्चों के नामांकन पर निजी विद्यालय के स्टेटस को देखा जाता है. खासकर बेरोजगार लोग एवं पूंजीपति लोग निजी विद्यालय खोलने में दिलचस्पी ले रहा है. यद्यपि वर्ष 2010 में जब शिक्षा अधिकार कानून 2009 लागू हुआ तो इस कानून में निजी विद्यालय खोलने को लेकर मानक निर्धारित की गयी. पर जिले में संचालित अधिकांश निजी विद्यालय निर्धारित मानक को पूरा नहीं करती है. उसके बावजूद प्रशासन के नाक के नीचे धड़ल्ले से नियमों को ताक पर रखकर निजी विद्यालय संचालित किये जा रहे हैं. दूसरी तरफ जिला प्रशासन की ओर से भी इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की जाती है. शिक्षा को लेकर होने वाली समीक्षा बैठक में भी निजी विद्यालय की समीक्षा नहीं होती है. निजी विद्यालय का फीस स्ट्रक्चर भी अलग-अलग होते हैं. साथ ही आरटीई में गरीब एवं वंचित वर्ग को 25 प्रतिशत नामांकन लेने के प्रावधान का भी धड़ल्ले से उल्लंघन होता है. इसको लेकर भी निगरानी करने वाला शिक्षा विभाग मौन है. प्रभात खबर ने लगातार तीन दिनों से निजी विद्यालय कि मनमानी एवं आरटीई के उल्लंघन को लेकर श्रृंखला में खबर प्रकाशित कर रही है.
25 प्रतिशत नामांकन में भी होती है अनदेखी : शिक्षा अधिकार कानून 2009 के तहत निजी विद्यालय में गरीब व वंचित वर्ग के 25 प्रतिशत बच्चों का दाखिला लेने का प्रावधान किया गया है.
कटिहार जिले के अधिकांश विद्यालय इस मामले में रुचि नहीं ले रही है. यूं तो कटिहार जिले में 300 से अधिक निजी विद्यालय संचालित है. पर मात्र 106 विद्यालय को ही आरटीई के तहत स्थानीय शिक्षा विभाग के द्वारा स्वीकृति दी गयी है. जबकि दो दर्जन से अधिक निजी विद्यालयों में प्रस्वीकृति के लिए स्थानीय शिक्षा विभाग के यहां आवेदन जरूर किया है. प्रस्वीकृति प्राप्त निजी विद्यालय एवं गैर प्रस्वीकृति प्राप्त निजी विद्यालय में से अधिकांश कमजोर एवं वंचित वर्ग के बच्चों का दाखिला लेने में कोई रुचि नहीं दिखाती. उल्लेखनीय है कि आरटीई के तहत प्रावधान में यह साफ कहा गया है कि निजी विद्यालय पारदर्शिता के साथ कमजोर एवं वंचित वर्ग के बच्चों का दाखिला 25 प्रतिशत कोटे के तहत लेगी. इसका भी निजी विद्यालय द्वारा उल्लंघन किया जाता है.
कटिहार : दरअसल निजी विद्यालय खोलने के पीछे कम समय में अधिक धन कमाने की लालसा है. यह पिछले एक दशक से जिस रफ्तार में शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में निजी विद्यालय खुले हैं. इससे यही बात सामने आयी है कि धन कमाना ही निजी विद्यालय का मुख्य उद्देश्य है. यद्यपि पहले भी निजी विद्यालय एवं शैक्षणिक संस्थान खुलते रहे हैं. लोग ऐसे भी थे जो बड़े पैमाने पर शिक्षण संस्थान के नाम पर संपत्ति दान कर दी. उस समय लोगों की सोच यही थी कि समाज में शिक्षा का वातावरण बने. बच्चे शिक्षित एवं सभ्य नागरिक बनें. पर अब स्थिति साफ बदल गयी है. अब तो बेरोजगारी दूर करने एवं पूंजी लगाकर अधिक धन कमाना ही निजी विद्यालय के स्थापना का मुख्य उद्देश्य बन गया है. जिले में ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे, जो कम समय में निजी विद्यालय के जरिये धनवान की श्रेणी में आ गये हैं.
अलग-अलग है फीस स्ट्रक्चर : जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित निजी विद्यालय या तो केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संबद्धता प्राप्त है या फिर उनके करिकुलम को मानती है. ऐसे निजी विद्यालय अपने प्रचार माध्यम के जरिये भी कुछ इसी तरह का दावा भी करती है. लेकिन निजी विद्यालय फी स्ट्रक्चर के मामले में अलग-अलग नियम रखे हुए हैं. अधिकांश निजी विद्यालय फी स्ट्रक्चर एक दूसरे विद्यालय से मेल नहीं खाती है.
ऐसे विद्यालय संचालक अपने-अपने हिसाब से फी स्ट्रक्चर निर्धारित करती है. विकास शुल्क, विविध शुल्क, वार्षिक शुल्क, बिजली, पुस्तकालय, पाठ्यपुस्तक, यूनिफाॅर्म, जूता-मौजा, टाइ, बेल्ट, आइकार्ड, ट्यूशन, कोचिंग सहित विभिन्न तरह के शुल्क के जरिये अभिभावकों से राशि वसूली की जाती है. अधिकांश विद्यालय अभिभावकों से ली जाने वाली राशि का लेखा-जोखा भी नहीं रहता. तमाम मामलों पर सरकारी तंत्र के स्तर से किसी तरह की निगरानी नहीं होती है. फलस्वरूप विद्यालय संचालक बेखौफ होकर मनमानी फीस वसूल रहे हैं.
निजी विद्यालय की ओर से की जा रही मनमानी की रोकथाम को लेकर न तो जिला प्रशासन कोई कदम उठा रही है और न ही सियासी दल की तरफ से ही कोई पहल हो रही है.
हालाकि कांग्रेस के जिला अध्यक्ष ने इस मामले में जिला शिक्षा पदाधिकारी से पहल करने की मांग की है. पर अधिकांश राजनीतिक दल विभिन्न मामलों में तुरंत प्रतिक्रिया देती है, निजी विद्यालय के मामले में सियासी दल की चुप्पी समझ से परे है. जिला शिक्षा पर जिला प्रशासन भी समय-समय पर शिक्षा विभाग की गतिविधियों एवं योजनाओं के क्रियान्यवन को लेकर समीक्षा तो की जाती है, लेकिन उसमे निजी विद्यालय की गतिविधियों की समीक्षा नहीं होती है. यह सर्वविदित है कि आरटीआई लागू होने के बाद तीन सदस्य कमेटी गठित की गयी है. जानकारी के मुताबिक इस कमेटी का काम निजी विद्यालय की निगरानी करना है, पर यह कमेटी भी पूरी तरह निष्क्रिय बनी हुई है.

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