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Jehanabad : भजन, झांकी से श्रद्धालुओं ने पाया ब्रजभूमि का अनुभव

लक्ष्मी नारायण मंदिर परिसर स्थित गीता भवन में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के अंतर्गत गुरुवार की संध्या श्रद्धालुओं के लिए अविस्मरणीय बन गयी. इस दिव्य संध्या को स्वामी हरे रामाचार्य महाराज के मुखारविंद से भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत धारण करने की अद्भुत और प्रेरणादायी लीला का ऐसा मार्मिक वर्णन हुआ कि उपस्थित जनमानस भावविभोर हो उठा.

हुलासगंज . लक्ष्मी नारायण मंदिर परिसर स्थित गीता भवन में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के अंतर्गत गुरुवार की संध्या श्रद्धालुओं के लिए अविस्मरणीय बन गयी. इस दिव्य संध्या को स्वामी हरे रामाचार्य महाराज के मुखारविंद से भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत धारण करने की अद्भुत और प्रेरणादायी लीला का ऐसा मार्मिक वर्णन हुआ कि उपस्थित जनमानस भावविभोर हो उठा. स्वामी जी ने विस्तार से बताया कि किस प्रकार इंद्र के अहंकार को नाश करने और गोकुलवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए बाल रूप में श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी सी कनिष्ठा अंगुली पर विशाल गोवर्धन पर्वत को सात दिनों तक धारण किया. गोप-गोपिक झूला, गौओं और गोकुल के सभी निवासियों ने पर्वत की शरण में आकर भय से मुक्ति पाई. यह प्रसंग न केवल अहंकार के विनाश का संदेश देता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि जब भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए संकल्प लेते हैं, तो सम्पूर्ण सृष्टि भी उनके संकल्प को रोक नहीं सकती. कथा के दौरान गीता भवन का वातावरण भक्ति और अध्यात्म से सराबोर हो गया. मंच पर अरविंद जी, कौस्तुभ जी, सुदर्शन जी, चंदन जी, पुष्कर कुमार, रवि कुमार, अभय कुमार एवं सुमन कुमार द्वारा प्रस्तुत मधुर भक्ति गीतों ने समूचे परिसर को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया. गोवर्धन धरणीधार गोपाल और श्याम तेरी बंसी पुकारे जैसे भजनों की स्वर लहरियों ने सभी को मानो उस समय में पहुंचा दिया जब स्वयं श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत धारण किए खड़े थे. इसके बाद झूला उत्सव का भी भव्य आयोजन हुआ. राधा-कृष्ण की मनमोहक झांकी को सजे-धजे झूले पर विराजमान देखकर श्रद्धालुओं के हृदय में अलौकिक आनंद का संचार हुआ. फूलों से सजे झूले, दीपों की झिलमिलाहट और भजन की गूंज ने वातावरण को द्वारका और मथुरा जैसा बना दिया. श्रद्धालु दर्शन करते हुए बार-बार यही अनुभव कर रहे थे मानो वे स्वयं ब्रजभूमि में उपस्थित हों. इस दिव्य संगम में कथा, कीर्तन, दर्शन और झूल भक्तों को आत्मिक शांति और आनंद से भर दिया. गीता भवन की यह संध्या श्रद्धालुओं की स्मृतियों में लंबे समय तक जीवंत रहेगी.

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