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दो दशक बाद भी ताजे हैं सेनारी नरसंहार के घाव
जहानाबाद : नब्बे का दशक इलाके के लिए नरसंहारों का दशक था. एक के बाद एक रूह कंपाने वाले नरसंहारों के दौर में इन पर राजनीतिक रोटियां भी खूब सेंकी गयी. तत्कालीन जहानाबाद अब अरवल जिले के करपी प्रखंड अंतर्गत सेनारी गांव में 18 मार्च, 1999 को 400-500 की संख्या में आये एमसीसी उग्रवादियों ने […]
जहानाबाद : नब्बे का दशक इलाके के लिए नरसंहारों का दशक था. एक के बाद एक रूह कंपाने वाले नरसंहारों के दौर में इन पर राजनीतिक रोटियां भी खूब सेंकी गयी. तत्कालीन जहानाबाद अब अरवल जिले के करपी प्रखंड अंतर्गत सेनारी गांव में 18 मार्च, 1999 को 400-500 की संख्या में आये एमसीसी उग्रवादियों ने देर शाम गांव में ऐसा कहर बरपाया था जिसका दंश आज भी लोगों के मन में गड़ा है.
गांव की घेराबंदी कर नक्सलियों ने पुरुषों को खींच-खींच कर घर से निकाला था और गांव के ठाकुरबाड़ी के पास ले जाकर एक-एक करके बर्बर तरीके से मौत के घाट उतार दिया. महिलाओं को रोने के लिए छोड़ दिया है, ऐसा कहकर बाप के सामने बेटे और भाई के सामने भाई को तड़पा-तड़पाकर वीभत्स हत्या कर दी. इस नरसंहार में गांव के 35 लोग मारे गये थे. पूरा देश इस नृशंस हत्याकांड के दहल गया था.
बाद में अदालती कार्रवाई के द्वारा कुछ नरसंहार के आरोपितों में से 10 लोगों को फांसी और तीन को उम्र कैद सुनायी गयी थी. कुछ को बरी कर दिया गया और कुछ अभी भी फरार चल रहे हैं. वहीं पीड़ित परिजनों को पांच-पांच लाख के मुआवजे दिये गये थे.
कोई मुआवजा, कोई सांत्वना या दिलासा इनके जख्मों को भर नहीं पाया. सेनारी कांड से एक पूरी जेनरेशन को ही समाप्त कर दी गयी थी. जब भी होली आती है तो वह खौफनाक मंजर परिजनों के सामने आज भी घूम जाता है. हर साल बरसी पर हजारों पीढ़ी आसपास के गांव से मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए जुटती है.
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