गोपालगंज. प्रेम, समर्पण और विश्वास के प्रतीक करवाचौथ पर सुहागिनों ने निर्जला रहने के बाद चलनी से अपने चांद का दीदार कर करवा से जल पीकर व्रत को तोड़ा. करवा चौथ व्रत को लेकर काफी उत्साह का माहौल पूरे गोपालगंज में दिखा. खासकर नवदंपती के लिए पहला करवा चौथ काफी रोचक रहा. मारवाड़ी समाज, सिंधी, पंजाबी के अलावे अपने यहां भी इस व्रति का अलग ही क्रेज दिखा. कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि शुक्रवार को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि की कामना की. दिन भर निर्जला व्रत रखने के बाद शाम को महिलाएं सोलह शृंगार कर पूजा की थाली में दीपक, मिठाई, करवा (जल का पात्र) और चलनी सजा कर और भगवान शिव, पार्वती, गणेश और चंद्रदेव की पूजा की. करवा चौथ की कथा सुनी. शाम में चांद निकलने का इंतजार करती रही. रात के 8:30 बजने के साथ ही महिलाएं चलनी से पहले चंद्रमा को देखा और फिर उसी चलनी से अपने पति का चेहरा निहारकर व्रत खोला.
पति-पत्नी के बीच अटूट विश्वास व समर्पण का प्रतीक
चलनी में हजारों छोटे-छोटे छेद होते हैं. मान्यता है कि जब महिलाएं उससे चांद को देखती हैं, तो चांद की रोशनी उन छेदों से गुजरकर चमकती है, जो सौभाग्य और दीर्घायु की प्रतीक मानी जाती है. ऐसा भी विश्वास है कि चलनी से चंद्र दर्शन करने के बाद जब महिलाएं उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं, तो उनके पति की आयु में वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में खुशहाली बनी रहती है. यही कारण है कि करवा चौथ का व्रत चलनी से चांद और पति को देखे बिना अधूरा रहता है.करवा चौथ पर छलनी से चंद्रमा और पति के दर्शन करना न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि इसमें श्रद्धा, आस्था और प्रेम का गहरा भाव छिपा हुआ है. यह प्रथा पति-पत्नी के बीच अटूट विश्वास और समर्पण का प्रतीक है, जो भारतीय संस्कृति की सुंदर परंपराओं में से एक है, जिसका निर्वहन महिलाओं ने किया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

