टेंपोचालकों पर नहीं चलता किसी का जोरशहर से लेकर गांव तक सार्वजनिक वाहनों की कमी का दंश झेल रही है सूबे की बड़ी आबादी. बुनियादी सुविधाओं की कमतर उपलब्धता से जूझते लोग अपने गंतव्य तक जाने के लिए ट्रेन, बस में ठूंस-ठूंस कर भरे रहते हैं. धक्के खाना उनकी रोज की जिंदगी में शुमार हो गया है. हद तो यह कि गांव-देहात के संपर्क पथों व शहर की नगर सेवा में चलने वाले टेंपो भी आजकल सवारों को लेकर कुछ ज्यादा ही संजीदा हो गये हैं. टेंपोचालकों की मनमानी का आलम यह है कि उन पर शासन-प्रशासन किसी का जोर नहीं चलता. कभी यूनियन तो कभी लोगों की जरूरत के आधार पर वह अपना कायदा-कानून खुद तय करते हैं. जिले में परिवहन व्यवस्स्था को दुरुस्त करने के लिए पहले डीटीओ और फिर पुलिस महकमा ट्रैफिक संभालने में जुटी है. लेकिन टेंपोचालकों पर नकेल कसना उनके बूते से बाहर दिखता है. वे सरेराह वाहनों को जहां-तहां रोक कर यात्रियों को चढ़ाते-उतारते हों या फिर कहीं भी पार्किंग करते हों. प्रशासन को वह जगह-जगह आइना दिखाते हैं. खुलेआम टेंपो में ऊंची आवाज में गाने बजाना, अनियंत्रित रफ्तार, सवारों के साथ बदतमीजी व नियमों की अनदेखी करने में चालकों का कोई सानी नहीं. वे कभी भूल से भी एक लेन में चलना पसंद नहीं करते. शहरों में कई बार देखा जाता है कि टेंपोचालक इमरजेंसी में जरूरतमंदों से ज्यादा पैसे वसूल कर उनका दोहन करने से भी नहीं चूकते. हमारी सरकार को चाहिए कि टेंपो को लेकर स्पष्ट नीति निर्धारित की जाये. खास कर शहरों में उनके लिए स्टैंड, यात्रियों के लिए भाड़ा व चालकों की पहचान के मामले में जिला प्रशासन को निर्देश देकर इसका कड़ाई से अनुपालन किया जाना चाहिए.निरंजन, कोर्ट एरिया, जहानाबाद
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टेंपोचालकों पर नहीं चलता किसी का जोर
टेंपोचालकों पर नहीं चलता किसी का जोरशहर से लेकर गांव तक सार्वजनिक वाहनों की कमी का दंश झेल रही है सूबे की बड़ी आबादी. बुनियादी सुविधाओं की कमतर उपलब्धता से जूझते लोग अपने गंतव्य तक जाने के लिए ट्रेन, बस में ठूंस-ठूंस कर भरे रहते हैं. धक्के खाना उनकी रोज की जिंदगी में शुमार हो […]
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