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2013 में बिहार में एनडीए से अलग होने का फैसला सही था : जदयू

2013 में बिहार में एनडीए से अलग होने का फैसला सही था : जदयू(डेवलप खबर दिल्ली से आयेगी, यह डाक एडिशन के लिए है)बंगाल, असम व केरल समेत अन्य राज्यों में महागंठबंधन का स्वरूप बनाने को नीतीश और शरद अधिकृतचुनाव चिह्न के लिए शरद यादव अधिकसंवाददाता, पटना जदयू ने साफ किया है कि 2013 में […]

2013 में बिहार में एनडीए से अलग होने का फैसला सही था : जदयू(डेवलप खबर दिल्ली से आयेगी, यह डाक एडिशन के लिए है)बंगाल, असम व केरल समेत अन्य राज्यों में महागंठबंधन का स्वरूप बनाने को नीतीश और शरद अधिकृतचुनाव चिह्न के लिए शरद यादव अधिकसंवाददाता, पटना जदयू ने साफ किया है कि 2013 में भाजपा से अलग होने का फैसला पार्टी का सही कदम था. पार्लियामेंट एनेक्सी भवन में रविवार को जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में केंद्र की राजनीति में व्यापक रूप से अपने पांव पसारने और बिहार विधानसभा चुनाव में मिली जीत का लाभ उठाने के लिए रणनीति पर भी चर्चा हुई. अगले साल असम और पश्चिम बंगाम में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे मेें दोनों राज्यों में पार्टी अपनी उपस्थिति दर्ज करने की तैयारी को लेकर भी सलाह- मशविरा किया गया. राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने इसके लिए बिहार के तर्ज पर महागंठबंधन का स्वरूप बनाने के लिए विभिन्न दलों के नेताओं से बातचीत करने को शरद यादव और नीतीश कुमार को अधिकृत कर दिया. कार्यकारिणी की बैठक में कई अहम फैसले लिये गये. बैठक में राजनीतिक और आर्थिक प्रस्ताव पेश किये गये . राजनीतिक प्रस्ताव को सांसद केसी त्यागी ने पेश किया, जबकि आर्थिक प्रस्ताव को राज्यसभा सांसद हरिवंश नारायण सिंह ने पेश किया, जिसका समर्थन नेताओं ने किया. राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सबसे पहले बिहार में मिली जीत पर चर्चा की गयी. बैठक में पार्टी के चुनाव चिह्न पर भी चर्चा हुई. नेताओं ने कहा कि चुनाव चिह्न को लेकर कन्फ्यूजन के चलते लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में जदयू को कम सीटें मिलीं. पार्टी ने चुनाव चिह्न इसके लिए शरद यादव को अधिकृत किया, ताकि वह चुनाव आयोग से मिल कर चुनाव चिह्न बदलने के बारे में आगे कार्यवाही करें.बैठक में पार्टी के इस स्टैंड की भी चर्चा हुई कि जब 2013 में पार्टी ने सिद्धांत के आधार पर एनडीए का साथ छोड़ दिया था. पार्टी ने उस स्टैंड की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पार्टी के स्टैंड का स्वागत किया. बैठक इस बार की चर्चा की गयी कि आखिर पार्टी को बिहार चुनाव में 72 सीटें ही क्यों मिलीं, जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को 118 के करीब सींटे मिली थीं.

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