गया.दो से तीन दशक पहले शादी-विवाह के मौसम में सिंघा पार्टियों की बुकिंग खूब होती थी. इसकी बुकिंग होते ही लोग बड़ा काम होना मान लेते थे. इसमें तीन-चार सिंघा, चार बड़े ढोल, तासा के साथ झुनझुना भी रहता था. शादी के साथ-साथ विशेष पूजन आदि में भी इसकी बुकिंग काे महत्व दिया जाता था, पर धीरे-धीरे इसकी मांग कम होने लगी. फिलहाल श्मशानघाट पर ही सिंघा बाजाने वाले सिमट कर रह गये हैं. विष्णुपद स्थित श्मशानघाट पर इस बाजा को जलती चिता के इर्द-गिर्द बजाते एक बुजुर्ग दिख जाते हैं. बाजा बजाने के बाद दाह-संस्कार करने पहुंचे लोग कुछ रुपये इन्हें दे देते हैं. शादी-विवाह व अन्य प्रयोजनों में लोग डीजे-बैंड बाजा आदि बुकिंग ही करते हैं. यहां पर इन्हें लोग बाबा के नाम से ही बुलाते हैं. हर किसी से ये अच्छा व्यवहार करते हैं. इस दौर के बच्चे इस बाजा को आश्चर्य से ही देखते हैं. क्योंकि उनके जन्म के बाद अब यह बाजा आम तौर पर दिखता ही नहीं है.
20 वर्षों से श्मशानघाट में सिंघा बजा रहे हीरा बेलवंशी
यूपी के मऊ जिले के रतनपुरा गांव के रहनेवाले हीरा बेलवंशी ( विष्णुपद स्थित श्मशानघाट पर सिंघा बजाने वाले ) ने बताया कि अब इस बाजे को बजवाना लोग तौहीन समझते हैं. तरह-तरह के फूहड़ गानों के धुन पर लोगों को थिरकना अच्छा लगता है. इस बाजे से ध्वनि प्रदूषण का खतरा बहुत कम रहता था. अब तेज आवाज में डीजे व बैंड पार्टी के बजने से ध्वनि प्रदूषण अधिक होता है. शादी-विवाह में मांग कम होने पर यहां 20 वर्ष से श्मशानघाट पर चिता के चारों ओर सिंघा फूंकते हैं. उन्होंने बताया कि इस बाजा को बजाने वाला पहले बहुत लोग थे. अब मांग घटने पर सभी ने इसे छोड़ दिया. इसको बजाने में शरीर की बहुत ताकत लगती है. उन्होंने बताया कि वे हर दिन 800 से 1000 रुपये तक कमा लेते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है