गया : बिहार के गया जिले में पितरों के तर्पण का सबसे बड़ा संगम चल रहा है. अपने पूर्वजों के प्रति आगाध आस्था और श्रद्धा का यह संगम महीने भर चलता है. क्या देशी और क्या विदेशी विश्व के कोने-कोने से श्रद्धालु हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार अपने पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए पिंडदान करते हैं. पिंडदान का महात्य और इसकी महता के बारे में कई पौराणिक धर्मग्रंथों में बताया गया है. पितरों के पिंडदान और श्राद्ध पक्ष पर गहन अध्ययन करने वाले ज्योतिषविद् डॉ. श्रीपति त्रिपाठी ने प्रभात खबर डॉट कॉम को बताया कि श्राद्ध पक्ष पितरों की तृप्ति का पक्ष है. इस पक्ष का अपना महत्व है. हमारे पितर ही देवता हैं, जो प्रसन्न होकर सारी सुख सुविधा को देते हैं. पितृ पक्ष अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता ज्ञापित करने का विशिष्ट अवसर होता है. श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धापूर्ण व्यवहार और तर्पण का अर्थ है, तृप्त करना. इन दिनों में किये जाने वाले तर्पण से पितर घर-परिवार को आशीर्वाद देते हैं. श्राद्ध दिनों को कनागत भी कहते हैं.
उन्होंने कहा कि इस दौरान शुभ कार्य या नये कपड़ों की खरीदारी नहीं की जाती. शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के लिए तीन ऋण कहे गये हैं. देव, ऋषि और पितृ ऋण. इनमें से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक होता है. वर्ष में केवल एक बार श्राद्ध सम्पन्न करने और कौवा, श्वान (कुत्ता), गाय और ब्राह्मण को भोजन कराने से यह ऋण कम हो जाता है.पितृ पक्ष में देवताओं के उपरांत मृतकों के नामों का उच्चारण कर उन्हें भी जल देना चाहिए. ब्रह्मण पुराण में लिखा है कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज यमपुरी से पितरों को मुक्त कर देते हैं और वे संतों और वंशजों से पिंडदान लेने को धरती पर आ जाते हैं.
उन्होंने तर्पण का महत्व बताते हुए कहा कि इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है. श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है. भोजन व पिंडदान के महत्व को समझाते हुए उन्होंने कहा कि पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है. श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिंड दान भी किये जाते हैं. वस्त्रदान भी इसका एक मुख्य पार्ट है. साथ ही,किसी भी यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है. जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता.
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