पुष्यमित्र
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वाल्मीकिनगर : इन दिनों अगर आप बगहा के वाल्मीकिनगर में किसी खाद दुकानदार से सब्जियों की फसल में इस्तेमाल होनेवाला कीटनाशक फेराडौन (फ्यूराडन) दवा मांग लें, तो वह आपको घूर कर देखेगा. हो सकता है वन विभाग के कर्मी आपसे पूछताछ भी करने लगे. दरअसल, बिहार के छोटे से छोटे गांव में खाद-बीज की दुकान पर धड़ल्ले से 150-200 रुपये किलो की दर से बिकनेवाले इस कीटनाशक की मदद से पिछले तीन-चार महीने में शिकारियों ने आठ-नौ बाघों को मौत के घाट उतार दिया है.
हालांकि, इन 11 शिकारियों का पूरा गैंग पकड़ा गया है, मगर इस घटना ने यहां वन विभाग के अधिकारियों की रातों की नींद गायब कर दी है. पांच-छह साल की मेहनत के बाद यहां बाघांे की संख्या 10 से बढ़ कर 28 हुई थी, मगर इस हमले ने वाल्मीकिनगर में बाघों के अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है.
दरअसल, पिछले दो-तीन सालों से देश भर में बाघ के शिकारियों की गतिविधियां तेज हो गयी हैं. कार्बेट नेशनल पार्क में लगातार ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती रही हैं. हालांकि, वाल्मीकिनगर का इलाका इस दौरान अमूमन शांत ही रहा है. 2003 में एक बाघ के मारे जाने की सूचना के बाद कभी यहां इस तरह की सूचना सुनने को नहीं मिली. मगर हाल की घटना इतनी बड़ी है कि अधिकारियों को समझ नहीं आ रहा कि इस पर कैसे रिएक्ट करें, कैसे बाघों की तस्करी पर रोक लगाये.
हरनाटांड बाजार के एक स्थानीय खाद-बीज विक्रेता बताते हैं कि फेराडौन (फ्यूराडन) इतनी आम दवा है कि हर जगह आसानी से उपलब्ध है. खेती-किसानी के काम में इसका इतना अधिक इस्तेमाल होने लगा है कि कोई चाह कर भी इस पर रोक नहीं लगा सकता. इस दवा की खासियत यह है कि यह गंधहीन और स्वादहीन होता है. ऐसे में बाघों के शिकार के लिए यह एक सटीक हथियार बन गया है.
इन घटनाओं के आरोप में गिरफ्तार हुए बाघ तस्कर गैंग के मुखिया हरि गुरो ने पुलिस को दिये अपने बयान में कबूल किया है कि उसने पिछले तीन-चार महीने में नौ बाघों का शिकार किया और उसे दिल्ली और नेपाल के तस्कर गिरोह को बेच दिया है. उसके मुताबिक, उसे एक बाघ के बदले पांच लाख की रकम मिलती है. बाघ की खाल, उसके नाखून और उसकी हड्डियां बेशकीमती होती हैं और अंतिम खरीदार तक पहुंचते-पहुंचते इसकी कीमत 20 से 25 लाख तक पहुंच जाती है. उसने चीन तक इन बाघों के तस्करी होने की बात कबूल की है.
अपने कबूलनामे में शिकारियों ने कहा है कि उनके साथ के लोग जंगल में लकड़ियां बटोरने के बहाने भटकते हैं, वे ऐसे मरे हुए जानवरों पर नजर रखते हैं, जो बाघ का शिकार हो सकते हैं. दरअसल, वे जानते हैं कि बाघ अपने शिकार को एक बार में नहीं खाता है. ऐसे में बाघ का खाया हुआ कोई जानवर दिखता है, तो ये लोग उस शिकार पर फ्यूराडन छिड़क देते हैं. इसके गंधहीन और स्वादहीन होने की वजह से बाघ को पता नहीं चलता है कि इस पर कोई जहरीली चीज छिड़की गयी है. एक्सपर्ट बताते हैं कि इसे खाने लेने पर बाघ अधिक-से-अधिक एक घंटा जिंदा रह पाता है. बाद में मरे हुए बाघ को गैंग के लोग उठा लेते हैं और सीमा पार कर नेपाल निकल जाते हैं.
डीएफओ अमित कुमार कहते हैं, दरअसल वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व की सीमा नेपाल के चितवन नेशनल पार्क और उत्तर प्रदेश के सोहागी बरवा सेंचुरी से मिली हुई है. इस वजह से तीनों जंगलों में पशुओं और शिकारियों की आवाजाही होती रहती है. ऐसे में किसी भी शिकारी के लिए यह आसान है कि वह वाल्मीकिनगर में बाघ का शिकार करे और चितवन से होकर नेपाल में निकल जाये. हम चाह कर भी उसे नहीं रोक सकते. इसके अलावा हमारे पास पूरे जंगल की सुरक्षा करने लायक न मैनपावर है, न संसाधन. सच यही है कि हम 10 फीसदी ही वेल इक्युप्ड हैं. बिहार के पास यही तो एक ग्रीन पैच है, मगर हमें जिस तरह से उसका ख्याल रखना चाहिए, रख नहीं पाते.
वन विभाग के परेशान होने की एक और बड़ी वजह यह है कि इस झटके में उनकी चार-पांच साल की मेहनत जाया होती नजर आ रही है. 2010 की गिनती के हिसाब से वाल्मीकिनगर में सिर्फ आठ बाघ बचे थे. 2014 तक यह संख्या 28 पर पहुंच गयी. यह एक बड़ी उपलब्धि थी. मगर इस हमले ने वहां के कुल बाघों में से एक तिहाई को नुकसान पहुंचा दिया है. हालांकि, डीएफओ अमित कुमार इसके बावजूद आश्वस्त हैं. वे कहते हैं, हमारे यहां अच्छी संख्या में कब्स (बाघ के शावक) और बाघिनें दिखती हैं. हमें उम्मीद है कि हम बहुत जल्द इन हालात से उबर जायेंगे.
मगर इसके बावजूद उनके माथे पर चिंता की रेखाएं साफ नजर आती हैं, क्योंकि फ्यूराडन इतनी सहज दवा है कि इसका उपयोग बहुत आसान है. 11 लोगों के गैंग के गिरफ्तार होने के बावजूद आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता कि अब ऐसी घटनाएं दुबारा नहीं होंगी. कोई नया गैंग फिर से उठ खड़ा नहीं होगा, क्योंकि संसाधन विहीन इस रिजर्व पर अंतरराष्ट्रीय तस्करों की निगाह पड़ चुकी है और उनके लिए यहां ऑपरेट करना कहीं आसान है.
बिहार के वाल्मीकिनगर रिजर्व में तीन माह में मारे गये नौ बाघ
भारत में बाघों की संख्या
साल 2008 में 1411
साल 2011 में 1706
1994-2010 के बीच
शिकार हुए 923
कीटनाशक से बाघों पर आफत
अंतरराष्ट्रीय बाजार में बाघ के अंगों की कीमतें
खाल : ~ 2 से 5 लाख
नाखून : 1 से 5 हजार ~ प्रति नाखून
बाल : 2 से 5 हजार ~ प्रति ग्राम
हड्डियां : 2 से 5 हजार ~ प्रति ग्राम
जब तक स्थानीय लोग सजग नहीं होंगे, तब तक इस रिजर्व से बाघों को बचाना मुमकिन नहीं होगा, क्योंकि ये तस्कर शिकार करने के लिए स्थानीय लोगों को ही चुनते हैं.
अमित कुमार, डीएफओ