अमरेश सिंह, मोतिहारी : जिलें में धान अधिप्राप्ति प्रशासनिक उदासीनता की भेट चढ़ गयी है. धान क्रय को ले प्रशासन की मंशा ठीक नहीं है. प्रशासन ने अधिप्राप्ति एजेंसी पैक्स व व्यपार मंडल को सीएमआर बैग व क्रेडिट लिमिट में उलझा रखा है. पैक्स व व्यपार मंडलों को नहीं तो एसएफसी से सीएमआर बैग ही उपलब्ध कराये जा रहे हैं.
और नहीं समितियों का कैश लिमिट ही बढ़ायी जा रही है. इन दोनों ही मूल कारणों से जिले में धान अधिप्राप्ति कार्य ठप है, जबकि किसान अपने उत्पाद को बेचने के लिए समितियों के चक्कर लगा रहे हैं. इस समस्या को लेकर गुरुवार को दर्जनों की संख्या में समिति अध्यक्ष जिला सहकारिता पदाधिकारी के कार्यालय पहुंचे. लेकिन समस्याओं के तत्काल निदान के बदले उन्हें डीसीओ के आश्वासन पर ही बैरंग वापस लौटना पड़ा. जबकि सरकारी स्तर पर धान अधिप्राप्ति के लिए डेडलाइन पहले से तय है
. विभागीय निर्देश के मुताबिक 31 मार्च तक ही धान क्रय करना है. जबकि जिलें में अधिप्राप्ति लक्ष्य के 50 प्रतिशत भी धान का क्रय केंद्रों के माध्यम से अबतक पूरी नहीं हो पायी है. अधिप्राप्ति कार्य में पिछड़ने के लिए समितियां सीधे तौर पर प्रशासन को जिम्मेवार ठहरा रही है. समितियों का आरोप है कि एसएफसी सीएमआर गिराने के लिए बैग ससमय उपलब्ध नहीं करा रही है. वहीं गिराये गये सीएमआर के पैसे के भुगतान में भी एसएफसी की अपनी मनमानी चल रही है.
पहले फेज में सीएमआर गिराने वाले समितियों को 15 से 20 दिन बाद एसएफसी ने राशि की भुगतान की. जिसका अधिप्राप्ति कार्य पर गहरा प्रभाव पड़ा. भुगतान में विलंब होने की स्थिति में समितियों ने क्रेडिट लिमिट बढ़ाने के लिए सहकारिता कार्यालय का दरवाजा खटखटाया. लेकिन सरकारिता कार्यालय ने समितियों को प्रक्रिया में उलझाये रखा
. क्रेडिट लिमिट बढ़ाने को आज भी समिति अध्यक्ष सहकारिता कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं. आज जिलें में अधिप्राप्ति की स्थिति यह है कि समितियों के पास सीएमआर का चावल तैयार है. लेकिन एसएफसी से उन्हें बैग नहीं मिल रहा. तो दूसरी तरफ समितियों के क्रेडिट लिमिट नहीं बढ़ायी जा रही है. इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि धान अधिप्राप्ति में विभाग व प्रशासन की मंशा क्या है?