बक्सर.
चरित्रवन स्थित स्वामी सहजानंद सरस्वती आश्रम में चल रहे सात दिवसीय श्रीमदभागवत कथा के दूसरे दिन वृहस्पतिवार को कथावाचक पूज्य श्री दंडी स्वामी देवानंद सरस्वती जी के शिष्य हरी प्रकाश महाराज ने गोकरण जी की कथा सुनाते हुए कहा कि प्राचीन समय की बात है. दक्षिण भारत की तुंगभद्रा नदी के तट पर एक नगर में आत्मदेव नामक एक व्यक्ति रहता था, जो सभी वेदों में पारंगत था. उसकी पत्नी का नाम धुन्धुली था.धुन्धुली बहुत ही सुंदर लेकिन स्वभाव से क्रूर और झगडालू थी. घर में सब प्रकार का सुख था लेकिन वह व्यक्ति अपनी पत्नी से तो दुखी था ही साथ ही साथ उसे कोई संतान का सुख भी नहीं था. वह चिंता में रहता था कि यदि उम्र ढल गई तो फिर संतान का मुख देखने को नहीं मिलेगा. यह सब सोचकर उसने बड़े दुखी मन से अपने प्राण त्यागने के लिए वह वन चला गया. वन में एक तालाब में वह कूदने ही वाला था कि तभी एक संन्यासी ने उसे देखकर उससे पूछा, कहो वीप्रवण तुम्हे ऐसी कौन-सी भारी चिंता है. जिसके कारण तुम प्राण त्याग रहे हो.आत्मदेव ने कहा, ऋषिवर मैं संतान के लिए इतना दुखी हो गया हूं कि मुझे अब अपना जीवन निष्फल लगता है. संतानहीन जीवन को धिक्कार है और मैंने जिस गाय को पाल रखा है वह भी बांझ है.यह तो ठीक है मैं जो पेड़ लगता हूं उस पर भी फल-फूल नहीं लगते हैं.मैं घर में जो फल लाता हूं वह भी बहुत जल्दी सड़ जाता है. इन सब बातों से में दुखी हो चुका है.ऐसा कहकर वह व्यक्ति रोने लगता है. वह संत उसकी बात सुनकर उसके ललाट की रेखाओं को देखता है. रेखाओं को देखकर वह कहता है कि वीप्रवण कर्म की गति बड़ी प्रबल है, वासना को छोड़ दो, सुनो. मैंने तुम्हारा भाग्य देख लिया है, इस जन्म में तो क्या अगले सात जन्मों तक तुम्हारे कोई संतान किसी भी प्रकार से नहीं हो सकती. तब ब्राह्मण कहता है कि फिर मुझे प्राण त्यागने दीजिए या आप किसी भी यत्न से मुझे पुत्र प्राप्त का मार्ग बताएं. जब वह संत देखता है कि यह व्यक्ति किसी भी प्रकार से समझाने पर भी प्राण त्यागने को अमादा है तो वह अपन झोली से फल निकालकर कहता है कि अच्छा ठीक है.तुम यह फल लो और इसे अपनी पत्नी को खिला देना, इससे उसके एक पुत्र होगा. आत्मदेव वह फल लाकर अपनी पत्नी को दे देता है लेकिन उसकी पत्नी वह मन ही मन सोचती है कि यदि मैंने ये फल खा लिया और गर्भ रह गया तो मुझसे खाया नहीं आएगा और मैं मर भी सकती हूं.यह सोचकर वह तय करती है कि मैं ये फल नहीं खाऊंगी इसीलिए वह आत्मदेव से कई तरह के तर्क और कुतर्क करती है.आत्मदेव के कहने पर वह फल तो रख लेती है लेकिन खाती नहीं है.एक दिन उसकी बहन उसके घर आती है जिसे वह सारा किस्सा सुनाती है.बहन उससे कहती है कि- मेरे पेट में बच्चा है, प्रसव होने पर वह बालक मैं तुम्हे दे दूंगी, तब तक तुम गर्भावती के समान घर में रहो.मैं कह दूंगी, मेरा बच्चा मर गया और तू ये फल गाय को खिला दे.आत्मदेव की पत्नी अपनी बहन की बात मानकर ऐसा ही करती है.उस फल को वह गाय को खिला देती है. समय व्यतीत होने पर उसकी बहन ने बच्चा लाकर धुन्धुली को दे दिया.पुत्र हुआ है यह सुनकर आत्मदेव को बड़ा आनंद हुआ.धुन्धुली ने अपने बच्चे का नाम धुंधकारी रखा.इसके तीन माह व्यतीत होने के बाद एक दिन आत्मदेव सुबह गाय को चारा डालने गा तो उसने देखा कि गाय के पास एक बच्चा है जो कि मनुष्याकार है, लेकिन बस उसके कान ही गाय के समान थे.उसे देखकर वह आश्चर्य में पड़ जाता है. हालांकि उसे बड़ा आनंद भी होता है.वह उस बच्चे को उठाकर घर में ले जाता है.उसका नाम वह गोकर्ण रखता है.अब उसके दो बाल हो जाते हैं.एक धुंधकारी और दूसरा गोकर्ण.श्रावण माह में गोकर्ण ने फिर से उसी प्रकार सप्ताह क्रम से कथा कही. वहां भक्तों से भरे हुए विमानों के साथ भगवान प्रकट हो गए. उस गांव में कुत्ते और चण्डाल पर्यंन्त जितने भी जीव थे सभी दिव्य देह धारण करके विमान पर चढ़ गए. भगवान उन सभी को योगिदुर्लभ गोलोक धाम में ले गए. कार्यक्रम में पूज्य गुरुदेव दंडी स्वामी देवानन्द सरस्वती जी, दंडी स्वामी परमात्मान्द जी, आचार्य महेन्द्र चैतन्य, श्रीकांत राय उर्फ़ कुंदन राय, ब्रजेश कुमार राय, नितेश राय, प्रिंस तिवारी, प्रिंस राय, प्रशांत कुमार राय, शिवानन्द, सत्यम कुमार राय, संजीवनी कुमार राय, आशुतोष राय, सोनू ठाकुर, अवधेश राय,उदयनारायण राय, शाहिल कुमार, हर्ष कुमार, अमीत राय, प्रियाशु कुमार शामिल रहे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है