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संस्कार का पतन होने पर अशांति
बिक्रमगंज (कार्यालय) : मनुष्य में संस्कार का होना जरूरी है. यदि संस्कार का पतन होता है, तो मन में अशांति आती है. जीवन अशांत हो जाता है और मनुष्य अनैतिक कार्य करने के लिए प्रेरित होता है. ये बातें गुरुवार को श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने रेलवे क्रॉसिंग के पास काव नदी के तट […]
बिक्रमगंज (कार्यालय) : मनुष्य में संस्कार का होना जरूरी है. यदि संस्कार का पतन होता है, तो मन में अशांति आती है. जीवन अशांत हो जाता है और मनुष्य अनैतिक कार्य करने के लिए प्रेरित होता है. ये बातें गुरुवार को श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने रेलवे क्रॉसिंग के पास काव नदी के तट पर आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में कहीं.
स्वामी जी ने कहा कि जिसमें संस्कृति समानता, सादगी व सरलता है, वही धर्म है. शांति को स्वीकार करने के लिए धर्म को स्वीकार करना जरूरी होता है. जो मनुष्य विपत्ति के समय भी अच्छे मार्ग से विचलित नहीं होता है और अपने धर्म का पालन करता है, वह धर्मात्मा या महापुरुष कहलाता है. उन्होंने धर्म के आठ स्तंभ बताये. स्वामी जी ने कहा कि यज्ञ, धौर्य, दान, तपस्या, इति, संतोष, श्रमा व अध्ययन इन आठ स्तंभो पर धर्म टीका है. धर्मात्मा व महापुरुष में यह आठ स्तंभ होते हैं. उन्होंने ईश्वर व जीवन की चर्चा करते हुए कहा कि प्रकृति जिसके वश में है, वह ईश्वर है और जो प्रकृति के वश में है, वही जीवन है.
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