Bihar Election 2025: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के दफ्तर के बाहर लगे एक पोस्टर ने बिहार की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है. पोस्टर में तेजस्वी यादव को ‘बिहार का नायक’ बताया गया, जिस पर एनडीए नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भड़क गए.
मांझी ने कहा, नालायक को नायक बताना नायक शब्द का अपमान है. इस बयान के बाद सियासी गलियारों में हलचल मच गई है.मांझी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, “नालायक को नायक बताना ‘नायक’ शब्द का अपमान है.” इस बयान के बाद बिहार की सियासत में एक बार फिर शब्दों की जंग तेज हो गई है.
पोस्टर से भड़के मांझी
‘राजद के पटना स्थित केंद्रीय कार्यालय के बाहर शनिवार को एक बड़ा पोस्टर लगाया गया था, जिसमें तेजस्वी यादव को ‘बिहार का नायक’ बताया गया. यह पोस्टर महागठबंधन की ओर से तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किए जाने के ठीक बाद लगाया गया.
केंद्रीय मंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने इस पोस्टर को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा —
“नालायक को नायक बताना ‘नायक’ शब्द का अपमान है.”
मांझी के इस बयान के बाद बिहार की सियासत में नया शोर उठ खड़ा हुआ है.
तेजस्वी का पलटवार: ‘बिहार बदलाव के लिए बेसब्र’
तेजस्वी यादव ने भी अपने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए जवाबी हमला बोला। उन्होंने लिखा —
“अगर मैं मुख्यमंत्री बनता हूं, तो बिहार का हर व्यक्ति मुख्यमंत्री बनेगा. हमें अपराध और भ्रष्टाचार मुक्त बिहार बनाना है.”
तेजस्वी ने आगे कहा,
“बिहार बदलाव के लिए बेसब्र है. यह नया बिहार बनाने का चुनाव है. दो दशक की सरकार ने राज्य की दो पीढ़ियों को बर्बाद कर दिया. बिहारियों के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन लाने का वक्त आ गया है.”
तेजस्वी ने लोगों से अपील करते हुए कहा, “आपने एनडीए को 20 साल दिए, हमें सिर्फ 20 महीने दीजिए — हम मिलकर नया बिहार बनाएंगे.
बिहार में बढ़ती सियासी गर्मी
इस पोस्टर विवाद ने बिहार चुनाव की सियासी दिशा को और दिलचस्प बना दिया है.
‘नायक बनाम नालायक’ की यह जुबानी जंग दरअसल युवा नेतृत्व बनाम पुरानी राजनीति की लड़ाई को और स्पष्ट कर रही है.
एनडीए जहां तेजस्वी को अनुभवहीन और असफल नेता बताकर जनता को डराने की कोशिश कर रहा है, वहीं महागठबंधन तेजस्वी को “बदलाव का चेहरा” बनाने में जुटा है.
जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें नजदीक आ रही हैं, इस तरह के बयानबाजी से यह साफ है कि बिहार का रण अब सिर्फ घोषणाओं का नहीं, बल्कि छवि और शब्दों का युद्ध बन चुका है.

