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एफआरके की कमी से धान अधिप्राप्ति ठप, छोटे किसानों पर बढ़ा दबाव

जिले में धान अधिप्राप्ति की रफ्तार लगातार सुस्त पड़ती जा रही है.

बेतिया. जिले में धान अधिप्राप्ति की रफ्तार लगातार सुस्त पड़ती जा रही है. इसकी वजह न तो मौसम का प्रभाव है और न ही किसानों की उदासीनता, बल्कि पैक्सों में राशि की कमी और एसएफसी द्वारा अब तक एफआरके (फोर्टिफाइड राइस कर्नेल) उपलब्ध नहीं कराए जाने की समस्या है. इस तकनीकी अड़चन के कारण चावल तैयार नहीं हो पा रहा है और न ही उसे एसएफसी तक पहुंचाया जा सका है. चावल के बदले भुगतान मिलने पर ही पैक्सों की चक्रिय प्रणाली संचालित होती है. लेकिन भुगतान रुकने से यह व्यवस्था ठप पड़ गई है. नतीजतन धान की खरीद पहले से ही धीमी थी, जो अब लगभग रुक-सी गई है. इसका सबसे अधिक असर छोटे और मझोले किसानों पर पड़ रहा है. भुगतान में देरी और पैक्सों द्वारा खरीद बंद होने से किसानों को मजबूरी में खुले बाजार में औने-पौने दाम पर धान बेचना पड़ रहा है. ऐसे हालात में जिले का अधिप्राप्ति लक्ष्य पूरा होना भी मुश्किल नजर आ रहा है. जिले में धान खरीद के लिए समितियों को अनुमानित क्रय के विरुद्ध लगभग 40 प्रतिशत कैश क्रेडिट की सुविधा दी गई है, जो सामान्य परिस्थितियों में चक्रिय प्रणाली बनाए रखने के लिए पर्याप्त मानी जाती है. लेकिन एफआरके के अभाव में राइस मिलों में चावल बनना ही शुरू नहीं हो सका. आमतौर पर चावल तैयार होने के बाद उसे एसएफसी में जमा किया जाता है और भुगतान मिलने पर समितियां पुनः धान की खरीद करती हैं. यह पूरी प्रक्रिया फिलहाल बाधित है. एसएफसी द्वारा अब तक राइस मिलों को एफआरके उपलब्ध नहीं कराया जा सका है. परिणामस्वरूप एक ओर धान में नमी की समस्या और दूसरी ओर राशि के अभाव ने खरीदारी पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. यही कारण है कि क्रय सत्र शुरू हुए डेढ़ माह से अधिक समय बीत जाने के बावजूद अब तक मात्र 2004 किसानों से करीब 16,200 मीट्रिक टन धान की ही खरीद हो सकी है. खरीदा गया धान फिलहाल पैक्स गोदामों और मिलों में पड़ा हुआ है. एसएफसी के जिला प्रबंधक सुमित कुमार ने बताया कि एफआरके की समस्या मुख्यालय स्तर से जुड़ी है. इसे दूर करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और शीघ्र ही राइस मिलों को एफआरके उपलब्ध करा दिया जाएगा. इसके बाद धान अधिप्राप्ति की प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद है.

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