बेगूसराय. आशीर्वाद रंगमंडल के तत्वावधान में बुधवार को कला संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से दिनकर कला भवन में आयोजित 10वां राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव संपन्न हुआ. महोत्सव के अंतिम दिन हमिदाबाई की कोठी नाटक का मंचन किया गया. महोत्सव के प्रथम सत्र में समारोह का उद्घाटन आगत अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया. एनएसडी के रजिस्ट्रार प्रदीप कुमार मोहंती ने कहा कि बेगूसराय की धरती कला व संस्कृति की उर्वर धरती है. यहां से हर वर्ष कलाकारों का चयन एनएसडी में प्रशिक्षण के लिए होना यह साबित करता है कि यहां के युवा कला प्रेमी और उर्जावान हैं. प्रसिद्ध रंग समीक्षक अजीत राय ने कहा कि बिहार में कला के विकास को अवरूद्ध करने का जिम्मेदार यहां के नौकरशाह हैं. वे बिहार में कला संस्कृति के विकास प्रति उदासीन हैं. इस ओर राज्य एवं केंद्र की सरकार को ध्यान देना चाहिए.
दिनकर कला भवन में आयोजित 10वें राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव का हुआ समापन
असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मुरली वासा ने कहा कि असम यूनिवर्सिटी में अगले तीन वर्षों तक नाटक विषय से मास्टर डिग्री में नामांकन लेने वाले बेगूसराय के छात्रों की फीस वे वहन करेंगे. दर्शकों को पूर्व प्राचार्य स्वप्ना चौधरी, रामवरण सिंह, संजय राज रोजी, डॉ अजय जोशी समीक्षक, संजय कुमार पोद्दार, महामंत्री, दक्षिण संस्कार भारती बिहार, डॉ संदीप भगत, उपाध्यक्ष, संस्कार भारती बिहार प्रदेश, संजय राज , रंगकर्मी सत्येंद्र कुमार , नगर आयुक्त, नगर निगम बेगूसराय ने सम्बोधित किया. ललन प्रसाद सिंह, दीपक कुमार, कुमार, अभिजीत मुन्ना, सुनील राय शर्मा ने मंचासीन अतिथियों को सम्मानित किया. इस मौके पर आशीर्वाद रंगमंडल की ओर से डॉ. मुरली वासा को आर.टी. राजन रंग सम्मान से नवाजा गया. इस सम्मान में मोमेंटो, अंगवस्त्र एवं 51 सौ रुपए नगद राशि प्रदान की गई. वहीं एनएसडी के रजिस्ट्रार प्रदीप कुमार मोहंती को आशीर्वाद रंग प्रोत्साहन सम्मान दिया गया. इस सम्मान में 15 हजार रुपए नगद, अंगवस्त्र एवं मोमेंटो अतिथियों ने प्रदान किया. आगत अतिथियों को फेस्टिवल डायरेक्टर डॉ. अमित रौशन, संस्था के अध्यक्ष ललन कुमार सिंह ने अंगवस्त्र व मोमेंटो देकर स्वागत किया. संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी अभिजीत कुमार मुन्ना ने किया. कार्यक्रम के अंत में समारोह को संपन्न कराने में कार्य कर रहे रंगकर्मियों एवं सहयोगियों को मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया. मौके पर रंगकर्मी अवधेश, परवेज युसूफ, सीताराम, दीपक सिन्हा, रामानुज सिंह, अभिषेक कुमार, अनिल पतंग समेत सैकड़ों रंगकर्मी व रंग दर्शक मौजूद थे. कार्यक्रम के दूसरे सत्र में नाटक हमिदाबाई का मंचन अभिजीत चौधरी के निर्देशन में किया गया. नाटक का मूल लेखक अनिल बर्वे एवं हिन्दी अनुवाद धनश्री डेवलीकर ने किया. हमिदाबाई की कोठी उस समय की कहानी है जो भारत में क्लासिक तवायफ परंपरा का प्रतीक है. हमीदाबाई जी एक निपुण तवायफ थीं, जिनकी गायकी उस समय किसी से भी बेमिसाल और अद्वितीय थी, जिसने उन्हें शिखर पर पहुंचाया. कोठी को न केवल नाम और शोहरत मिली, बरिक ””””””””रुतबा और आदब भी मिला और इसे सबसे ज्यादा सम्मान मिला. रामय बदलता है और हमिदाबाई की कोठी भी बदल गई. ग्रामोफोन और फिल्मों के आगमन के साथ, दर्शकों ने महंगी कोठियों से बाहर निकलना शुरू कर दिया और अपने घरों में आराम से कम खर्चीले मनोरंजन को प्राथमिकता दी. हमिदाबाई के लिए आवाज रिकॉर्ड करना एक पाप है जिसे वह कभी नहीं करना चाहती क्योंकि यह उस मौलिकता में विश्वास करती है जो सर्वशक्तिमान ने उसे दी है. कोठी टूट जाती है. हमिदाबाई की शख्त नैतिकता का बोझ उन पर था जिसके परिणाम स्वरूप प्रमुख गायिका नर्तकी सईदा कोठी से चली जाती है. उसकी बेटी शब्बो जो पढ़ाई करती थी और हॉस्टल में रहती थी और जिसे उसने जान बूझकर इस संस्कृति से दूर रखा था. वह अपनी मां द्वारा महीनों तक फीस न भेजे जाने के बाद घर में आ जाती हैं. हमिदाबाई बीमारी के कारण दम तोड़ देती है. क्या हमिदाबाई की बेटी हमीदाबाई की कोठी का गौरव फिर से लौटा पाने की हर कोशिश करती है. नाटक में धनश्री इंबलीकर, तारा मोहिनी सायली राव, प्रशांत गौडा, कुशल शहाणे, मून फाल्के, कुशल शहाणे, मोहित रानाडे, अजय बोराट, राहु किने, सुयश कुकरेजा, प्रवेश सकोरे नर्तक सारखी, मृषाली, पूजा आंशा आदि ने अपने अभिनय से दर्शकों को बांधकर रखा.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

