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अरबों की लागत से बने भवनों की उपयोगिता नहीं बिना उपयोगिता निर्धारण के बनते चले गये जिले में बेशुमार भवन बिना उपयोग के गिर कर बिखरने लगे हैं करोड़ों की लागत से बने भवन बांका : पिछले एक दशक के दौरान बांका सहित जिले भर में बेशुमार सरकारी भवन बने . इनके नाम पर अरबों […]

अरबों की लागत से बने भवनों की उपयोगिता नहीं

बिना उपयोगिता निर्धारण के बनते चले गये जिले में बेशुमार भवन
बिना उपयोग के गिर कर बिखरने लगे हैं करोड़ों की लागत से बने भवन
बांका : पिछले एक दशक के दौरान बांका सहित जिले भर में बेशुमार सरकारी भवन बने . इनके नाम पर अरबों की राशि भी जाया हुई. पर इनकी उपयोगिता सिद्ध नहीं हो सकी. इनके नाम पर व्यय की गयी राशि मानो पानी में बह गयी. इनमें से ज्यादातर भवन जीर्ण शीर्ण हालत में यों ही बेकार पड़े हैं, या फिर उनका बेजा और अन्यथा इस्तेमाल हो रहा है. एक तरफ भवनों के निर्माण के नाम पर जिले में सरकारी राशि के वारे न्यारे का यह हाल है. दूसरी तरफ जिले के डीएम और एसपी को रहने के लिए अपना सरकारी आवास या कई सरकारी विभागों को अपना कार्यालय भवन तक नहीं है.
जिले में ऐसे अनुपयोगी भवनों की संख्या सैकड़ों में है. सिर्फ जिला मुख्यालय में दर्जनों ऐसे भवन है. इन भवनों का निर्माण तो किसी और मकसद से हुआ, लेकिन या तो इनका दूसरे मशरफ में इस्तेमाल हुआ या फिर कोई इस्तेमाल ही नहीं हुआ. तात्पर्य कि पूरी तरह अनुपयोगी. यह सिलसिला पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से जारी है. प्रशासनिक महकमे की बात तो दूर यहां के जनप्रतिनिधि भी इस ओर से बेखबर बने हुए है. जबकि सब कुछ उनकी आंखों के सामने है.
डीएम के लिए बनाया गया आवास वीरान : करीब एक दशक पूर्व समाहरणालय परिसर में डीएम के लिए आवास का निर्माण कराया गया. हर तरह से सुसज्जित, लेकिन सुरक्षा कारणों से कभी कोई डीएम इस भवन में रहने को तैयार नहीं हुए. लिहाजा एक प्रशासनिक निर्णय के बाद इसे समाहरणालय पुस्तकालय घोषित कर दिया गया. लेकिन यह पुस्तकालय भी नहीं बन सका. आज यह वीरान और भुतहा बना हुआ है.
नहीं रुक रहा नये भवन निर्माण का सिलसिला : लेकिन यह सिलसिला अब भी थम नहीं रहा. सदर अस्पताल परिसर हो या आरएमके मैदान. रैन बसेरा परिसर हो या डायट परिसर… हर तरफ भवनों का शिलान्यास और निर्माण का सिलसिला जारी है. करोड़ों रुपये इन पर पानी की तरह बहाये जा रहे हैं. लेकिन शायद ही आम लोगों को मालूम हो कि ये भवन किस निमित्त और विभाग से बनाये जा रहे हैं.
योजनाओं में गड़बड़ी

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