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Aurangabad News : संपूर्ण ऊर्जा का अजस्र स्रोत है भगवान सूर्य

Aurangabad News : वैदिक लौकिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सूर्योपासना श्रेष्ठ

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औरंगाबाद/कुटुंबा. चैती छठ नहाय खाय के साथ मंगलवार शुरू हो गया है. बुधवार को व्रत का खरना होगा. गुरुवार षष्ठी उपवास के दिन संध्याकालीन अर्घ अर्पित करेंगे. चार अप्रैल शुक्रवार को उदयकालीन सूर्य के अर्घ व उपासना के उपरांत पारण के साथ सूर्योपासना अनुष्ठान संपन्न होगा. यह महापर्व लोक चेतना और लोक संस्कृति से जुड़ा है. यह लोक जीवन में सहज उल्लास से स्पंदित है. सूर्योपासना भारत के ही नहीं अपितु विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं में प्रमुखता से होती रही है. भगवान सूर्य की पूजा वैदिक काल से ही होती आयी है. इनकी पूजा में पहले मंत्रों की हीं प्राथमिकता थी, बाद में इसका रूप मूर्ति पूजा के साथ भी विकसित होने लगा. सभ्यता के विकास के साथ ही सूर्य की उपासना व पूजा विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूपों में प्रारंभ हो गयी. इधर, छठ व्रत को लेकर श्रद्धालुओं पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया है. ज्योतिर्विद डॉ हेरंब कुमार मिश्र ने बताया कि उत्तर वैदिक काल के अंतिम कालखंड में सूर्य के मानवीय रूप की परिकल्पना होने लगी. पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा का प्रचलन विस्तार को प्राप्त कर लिया और अनेक स्थानों पर भगवान सूर्य देव के मंदिर भी बनाए गए. भगवान सूर्य को माना जाता है कालचक्र का प्रणेता ज्योतिर्विद ने बताया कि ऋग्वेद के अनुसार संपूर्ण ऊर्जा का अजस्र स्रोत भगवान सूर्य को बताया गया है. इन्हीं के द्वारा दिन-रात का सृजन होता है. इन्हीं के उदय होने पर संसार जागृत होता है, और अस्त होने पर चराचर जगत विश्राम को प्राप्त करता है. उन्होंने बताया कि भगवान सूर्य को ही कालचक्र का प्रणेता माना जाता है. वेदों में इन्हें जगत की आत्मा बताया गया है. वैदिक काल में आर्य लोग सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता धर्ता मानते थे. यजुर्वेद में सूर्य को भगवान का नेत्र बताया गया है. छांदग्योपनिषद में यह चर्चा आयी है कि भगवान सूर्य की ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ होता है. ब्रह्मवैवर्त पुराण में इन्हें परमात्मा का स्वरूप बताया गया है. सूर्योपनिषद में संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का एकमात्र कारण और संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म के रूप में ईश्वर को सूर्य को प्रतिष्ठापित किया गया है. उन्होंने बताया कि संपूर्ण जगत की सृष्टि एवं पालन भगवान सूर्य ही करते हैं. उदय, मध्य एवं अस्त सूर्य ब्रह्मा विष्णु और महेश के स्वरूप हैं. ज्योतिर्विद डॉ मिश्र ने बताया कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य का महत्व है. आधुनिक समय में विज्ञान भी मानता है कि अंतरिक्ष में चारों तरफ फैले सौर्य विकिरण का सूक्ष्म अंश पृथ्वी पर जीवन जगत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसी से पृथ्वी पर संपूर्ण भौतिक एवं जैविक घटनाएं नियंत्रित होती हैं. आरोग्य देवता के रूप में सूर्य की किरणें कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता रखती हैं. सूर्य का प्रकाश दिखाई देने वाले और न दिखाई देने वाले सभी तरह के जीवाणुओं एवं रोगाणुओं से मुक्त करता है. त्रेतायुग में भगवान श्रीराम व माता जानकी ने की थी सूर्य की अराधना ज्योतिर्विद डॉ मिश्र ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार सूर्यपूजा और उनकी आराधना से कई आख्यान जुड़े हैं. त्रेतायुग में भगवान श्रीराम एवं माता जानकी ने सूर्य की आराधना की थी. महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण कटिपर्यंत जल में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ दिया करते थे. महर्षि कश्यप के मार्गदर्शन पर स्वयंभू मनु के पुत्र प्रियव्रत में पुत्रेष्टि यज्ञ किया. उनसे मृत शिशु उत्पन्न हुआ. शोकग्रस्त राजा दंपति के सामने ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी का अवतरण हुआ जिनके स्पर्श मात्र से ही मृत बालक जीवित हो उठा. यही कारण है कि भगवान सूर्य को आदित्य के नाम से भी जाना जाता है. राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या ने भी छठ व्रत किया जिससे उनके पति च्यवन ऋषि की आंखों की रोशनी वापस आयी और जीर्ण शरीर पूर्णतः स्वस्थ हो गया. ऋषि दुर्वासा के श्राप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र शाम्ब ने सूर्य की आराधना कर रोग से मुक्ति पाई थी. सिंह राशि के स्वामी हैं सूर्य ज्योतिर्विद ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं और ये जातक के जीवन पर पिता का प्रतिनिधित्व करते हैं. जातक के शरीर में पेट, आंख, हृदय और चेहरा इनसे प्रभावित होता है. सूर्य के प्रभाव से आंख, सिर, रक्तचाप गंजापन और बुखार संबंधी बीमारी से जातक प्रभावित होता है. राज्य, सुख, सत्ता, ऐश्वर्य, वैभव, अधिकार आदि का स्वामी भगवान सूर्य को माना जाता है. ज्योतिष में इन्हें मस्तिष्क का अधिपति भी बताया गया है. छठ व्रत में प्रकृति की होती है पूजा ज्योतिर्विद ने बताया कि छठ व्रत में भगवान सूर्य के साथ प्रकृति की पूजा होती है. इसके साथ हीं छठ महापर्व में शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है. श्रद्धालु भक्ति भाव से चार दिनों के इस कठिन व्रत को पूर्ण कर भगवान सूर्य से अपने मनोवांछित फल की कामना करते हैं. उन्होंने बताया कि वैदिक लौकिक और आध्यात्मिक दृष्टि से सूर्योपासना करने से भक्तो के कष्टों का निवारण होता है. घर परिवार में सुख शांति व समृद्ध आती है.

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