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न कृपा है, न उपहार, बीते समय में की गयी सेवा का भुगतान है पेंशन

महासंघ भवन में मनाया गया पेंशनर्स दिवस

महासंघ भवन में मनाया गया पेंशनर्स दिवस औरंगाबाद शहर. शहर के क्लब रोड स्थित महासंघ भवन में बुधवार को पेंशनर्स एसोसिएशन द्वारा पेंशनर्स दिवस मनाया गया. इसकी अध्यक्षता उमेश प्रसाद सिंह ने की. कार्यक्रम के दौरान कई वरिष्ठ पेंशनरों को सम्मानित भी किया गया. पेंशनरों ने बारी-बारी अपने विचार पेश किये. वक्ताओं ने कहा कि कर्मचारियों, शिक्षकों तथा अन्य कर्मियों के लिए वृद्धा अवस्था सुरक्षा के सिद्धांत की उत्पति बहुत ही प्राचीन है. राजा की सेवा में 40 वर्ष की बेदाग नौकरी करने पर मिलने वाले वेतन की आधी होती थी. राजशाही काल में भी अपने मुलाजिमो को ताउम्र गुजर-बसर करने के लिए जागीरे तक दी जाती थी. पेंशन योजना ब्रिटिशकाल के प्रारंभिक काल से जारी है. औपनिवशेक शासकों द्वारा राजसी सेवा की ओर बुद्धिमान लोगों को आकर्षित करने के लिए 1920 में पेंशन स्कीम की शुरूआत की गयी थी. राजकीय आयोगों ने कई सिफारिशों के द्वारा योजना को बेहतर बनाया तथा भारत सरकार ने 1935 से वैधानिक ताकत प्रदान की. वक्ताओं ने कहा कि पेंशन न तो लूट है और न ही सम्मान,जो मालिक की इच्छा पर निर्भर है. पहले की गयी सेवा का यह भुगतान है. यह एक सामाजिक कल्याण का कार्य जो उनलोगों को बुरे जीवन में सामाजिक, आर्थिक सहायता देता है, जिन्होंने लगातार नियोक्ता के लिए इसलिए काम किया कि बुढ़ापे में उन्हें दिक्कतों में छोड़ नहीं दिया जायेगा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 17 दिसंबर 1982 को केस के निर्णय में सैद्धांतिक स्वरूप प्रदान किया था. पेंशन न तो नियोक्ता की इच्छा से दिया जाने वाला उपहार है और न ही कृपा है, बल्कि बीते समय में की गयी सेवा का यह भुगतान है. इसके बाद से 17 दिसंबर को पेंशनर दिवस मनाया जाता है.कार्यक्रम के दौरान रामप्रवेश शर्मा,कपिलदेव पांडेय,बालगोविंद पांडेय,मो कमाल आकुब अंसारी को सम्मानित किया गया. सचिव रामजी सिंह, राज्य कार्यकारी अध्यक्ष भोला शर्मा, शिवदत यादव, सुरेंद्र पांडेय, अध्यक्ष जयनंदन पांडेय, पुरुषोत्तम शर्मा, सिकंदर राम, कृष्ण कुमार सिन्हा, देवकुमार मिश्र आदि पेंशनरों ने अपने विचार रखे.

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