दाउदनगर. धान का कटोरा कहे जाने वाले दाउदनगर अनुमंडल क्षेत्र और इसके आसपास के इलाकों में नहर ही किसानों की खेती की सिंचाई का मुख्य साधन है. 25 मई से रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत होने वाली है. रोहिणी नक्षत्र शुरू होते ही किसान बिचड़ा डालने के लिए तत्पर हो जाते हैं, लेकिन सिंचाई के मुख्य स्रोत नहर की जो स्थिति है उसे सही नहीं कहा जा सकता.150 वर्ष पुरानी ब्रिटिश कालीन नहर प्रणाली जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुकी है और इसी नहर प्रणाली के सहारे औरंगाबाद जिले के बारुण, ओबरा, दाउदनगर के अलावा कई प्रखंडों व निकटवर्ती जिलों के इलाकों में खेतों की सिंचाई की जाती है. पटना मेन कैनाल से लगभग 75 हजार हेक्टेयर में फैले खेतों की सिंचाई का मुख्य स्रोत है. सिंचाई को लेकर आ रही समस्या पर प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम के तहत इस बार दाउदनगर प्रखंड के रेपुरा बस स्टैंड के समीप व एकौनी में किसानों के साथ संवाद किया गया. तमाम लोगों ने खुलकर बातें रखी और व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने पर चर्चा की.
मछली मारने व जानवरों को धोने के लिए तोड़ दिया जाता है नहरों का तटबंध
जिले की सिंचाई व्यवस्था में सोन नहर का योगदान काफी महत्वपूर्ण है. रोहतास और औरंगाबाद जिले के मध्य इंद्रपुरी बराज के पास से निकली नहरों के जरिये सोन के दोनों किनारों पर आठ जिलों के हजारों एकड़ खेतों की सिंचाई होती है. इंद्रपुरी बराज से निकली पूर्वी मुख्य पटना कैनाल में प्रारंभिक बिंदु से लेकर 57.6 किलोमीटर दूर अरवल जिले के बलिदाद तक का पूरा इलाका दाउदनगर सिंचाई प्रमंडल के अंतर्गत आता है. 13 सितंबर 1872 को इस कैनाल का उद्घाटन हुआ था. इसे पटना में कैनाल के नाम से भी जाना जाता है. इससे करीब एक दर्जनों शाखा नहरें निकली हुईं है. आज भी स्थिति यह है कि पटना मुख्य कैनाल हो या इससे निकली शाखा नहरें.कहीं-कहीं तो लगता है कि तटबंध है ही नहीं. बस जैसे-तैसे काम चल रहा है, ताकि पटवन का काम हो सके और किसान अनाज उपजा सकें. नहरों के संचालन के लिए जो आधारभूत संरचनाएं तैयार की गयी है, उसकी हालत सही नहीं कहीं जा सकती. नहरों के टेल इंड तक पानी पहुंचाना आज भी चुनौती बनी हुई है. कई स्थानों पर अवैध आउटलेट बना लिये गये हैं. मछली मारने और जानवरों को धोने के लिए नहरों का तटबंध तोड़ दिया जाता है. लोगों का कहना है कि नहरों का पक्कीकरण किया जाना जरूरी है. तटबंध की मरम्मति और अन्य आधारभूत संरचनाओं की मरम्मति किये जाने की आवश्यकता है. सरकार ने हर खेत को पानी योजना को अपने सात निश्चय में प्राथमिकता में रखा है, लेकिन सही मायने में किसानों के खेतों तक यानी अंतिम छोर तक नहरों का पानी पहुंचने के लिए अभी काफी कुछ किये जाने की आवश्यकता है. विभागीय सूत्रों से पता चला सरकार की योजना में सोन नहर का पक्कीकरण शामिल है. इसके अंतर्गत पहले पटना मैन कैनाल का पक्कीकरण किये जाने की योजना शामिल है. इसके लिए लगभग 15 सौ करोड़ (शून्य से 109 किलोमीटर) का डीपीआर (स्ट्रक्चर समेत) बनाकर सरकार को भेजा भी गया है, लेकिन पेंडिंग है. भाकपा माले नेता व काराकाट से सांसद राजाराम सिंह की सोन नहर का आधुनिकीकरण की मांग बहुत पुरानी मांगों में शामिल है. ओबरा विधायक ऋषि कुमार ने भी कुछ महीनाें पहले नहरों का निरीक्षण किया था. सांसद ने इस मामले को लोकसभा में भी उठाया है. किसानों का कहना है कि सोन नहर का जीर्णोद्धार और पक्कीकरण करा दिया जाये तो कई लाभ मिलेंगे. पानी की क्षति कम होगी. छोटी बड़ी नहरों के टेल इंड तक पानी पहुंच सकेगा, जो अभी कई बार नहीं पहुंच पाता. अवैध आउटलेट बंद हो बंद हो जायेंगे. हांलाकि, सिंचाई विभाग दाउदनगर के कार्यपालक अभियंता ने कहा कि दाउदनगर डिवीजन में सभी शाखा नहरों से अंतिम छोर तक पानी पहुंच रहा है. सिर्फ माली कोचहासा में कुछ समस्याएं हैं, जिसमें डिजाइन, डिस्चार्ज को इंप्रूव करना पड़ेगा.
पटना मेन कैनाल से निकली हैं कई शाखा नहरें
बारुण प्रखंड से पटना मेन कैनाल निकली है, जो दाउदनगर होते हुए पटना तक जाती है. औरंगाबाद, अरवल व पटना जिले के विभिन्न इलाकों की खेतों को संचित करती है. बारुण शून्य किलोमीटर से अरवल जिले के वलिदाद तक की 57 किलोमीटर की परिधि दाउदनगर सिंचाई प्रमंडल कार्यालय के अंतर्गत आता है. मेन कैनाल से निकलने वाली शाखा नहरों में कोचहासा लाइन की लंबाई 35.2 किलोमीटर, माली लाइन की लंबाई 41.6 किलोमीटर, अंछि फीडर की लंबाई 7.4 किलोमीटर, तुतुरखी की 12.8 किमी, चंदा लाइन की 18 किमी, तेजपुरा फीडर की पांच किमी, मनोरा लाइन की 21 किमी, इमामगंज लाइन की 22.4 किमी, अमरा की लंबाई 20.8 किमी है. इसके अलावा भी कई शाखा नहरें निकली हुई हैं.
मेठ के सहारे नहरों का रख-रखाव
नहर प्रणाली का रख-रखाव स्थाई कर्मचारियों के सहारे नहीं बल्कि मेठ यानी अस्थाई कर्मचारियों (मौसमी कर्मचारियों) के सहारे किया जा रहा है. जेइ की भी कमी है. दाउदनगर सिंचाई प्रमंडल के अंतर्गत तीन सब डिविजनल कार्यालय हैं. तीनों सबडिविजनल कार्यालय में चार-चार जेइ का पद स्वीकृत है, लेकिन तीनों में तीन-तीन जेइ पदस्थापित हैं. दाउदनगर सबडिवीजन कार्यालय में एक एसडीओ, तीन जेइ, खरांटी में एक एसडीओ और तीन जेइ और अगनूर में तीन जेई पदस्थापित हैं. अगनूर में एसडीओ का पद काफी समय से खाली है और वहां के प्रभार में खरांटी के एसडीओ हैं. विभागीय सूत्रों से पता चला कि दाउदनगर डिवीजन में 13 जेइ का पद स्वीकृत है, लेकिन नौ पदस्थापित हैं. सभी नहरों व शाखा नहरों को प्रशाखा में बताकर जेइ को उसका प्रभार दिया जाता है. 120 मेठ यानी मौसमी कर्मचारी से काम लिया जाता है. हालांकि, एसओपी के अनुसार 84 मौसमी कर्मचारी का पद ही स्वीकृत है.
नहर में डाले जाते हैं कूड़े-कचरे
नहर में कहीं-कहीं कूड़े-कचरे भी तैरते हुए दिखते है. चाहे पटना मेल कैनाल या फिर इसे निकली शाखा नहरों में जब पानी रहता है तो कहीं-कहीं पर कूड़ा-कचरा का ढेर भी लगा दिखता है. नहर के किनारे या बीचों-बीच पेड़ पौधे व सिल्ट भी देखने को मिलते हैं. यह कूड़ा-कचरा नहर के पानी को प्रदूषित करते हैं और यह प्रदूषित पानी नहर के माध्यम से खेतों चला जाता है, जिससे खेत की उर्वरा प्रभावित होने की संभावना बनी रहती है.
आहर, पइन की स्थिति सही नहीं
जल प्रबंधन के तहत ग्रामीण क्षेत्र के खेतों तक नहर के पानी पहुंचाने के लिए आहर, करहा, पइन की पारंपरिक व्यवस्था है. सरकार द्वारा इनकी मरम्मत या निर्माण के लिए सकारात्मक पहल की गयी है, लेकिन अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी स्थिति सही नहीं कहीं जा सकती. कई गांवों के किसानों ने बताया कि आहार-पईन की स्थिति जर्जर हो गयी है. खेतों तक समुचित तरीके से पानी नहीं पहुंच पाता. सुदुरवर्ती इलाके के खेतों तक नहर का पानी पहुंचाने के लिए नहरों का सुदृढीकरण के साथ जल प्रबंधन प्रणाली को बेहतर बनाने पर ध्यान देना होगा.
नकदी फसलों के खेती की ओर देना होगा ध्यान
परिचर्चा के दौरान एक बात और सामने आयी की रवि और खरीफ फसलों के साथ-साथ खेती की ओर भी किसानों को ध्यान देना चाहिए. भारतीय पटसन निगम खलिहान नामक संस्था द्वारा दाउदनगर, ओबरा, हसपुरा और अरवल जिले के कलेर में जूट की खेती को प्रोत्साहन देने का प्रयास किया जा रहा है. खलिहान के प्रोजेक्ट हेड द्वारा बताया गया कि चारों प्रखंडों को मिलाकर 2300 किसान करीब 2000 बीघा में जूट की खेती कर रहे हैं. इस तरह से क्षेत्र में नकदी फसल की खेती की शुरुआत हो गयी है. गेहूं कटने के तुरंत बाद जूट का बीज बो देना है और धान रोपने के समय उसे काट देना है. उस समय बारिश का मौसम हो जाता है. इसलिए तालाबों, गड्ढों में उसे कुछ दिनों के लिए डाल दिये जायेंगे. उसके बाद प्राप्त रेशे को संस्था द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद करेगी. किसानों को बिना किसी अन्य फसल का नुकसान किये अतिरिक्त लाभ का अवसर मिलेगा, लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि सालों भर सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था हो. नहर के पानी को स्टोर करने की व्यवस्था करनी होगी. नलकूपों की संख्या बढ़ानी होगी. अगर नहर के पानी का को स्टोर करने की व्यवस्था कर दी जाये जो किसान नकदी फसलों की खेती भी कर सकते हैं, जो उनके लिए हितकारी व लाभकारी सिद्ध होगा.
ऐतिहासिक है सोन नहर प्रणाली : सांसद
काराकाट के सांसद राजाराम सिंह ने कहा कि सोन कैनाल सिस्टम देश की ऐतिहासिक एवं एक महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना रही है. आठ जिलों की सिंचाई व्यवस्था को संभालने वाली सोन नहर प्रणाली है. सोन के पानी का इस्तेमाल करने वाला बिहार पहला राज्य था. बाणसागर और रिहंद डैम बनने के बाद सोन नदी में पानी का अभाव हो गया है. पानी तब आता है, जब बाढ़ आता है और चारों ओर पानी पानी ही हो जाता है. इसलिए अब डैम जरूरी है. इंद्रपुरी डैम और सोन नहर के आधुनिकीकरण को लेकर संसद में भी सवाल उठाये. चार सांसद प्रधानमंत्री से भी मिलने गये, वहां से सिंचाई मंत्री पर डाल दिया गया. सिंचाई मंत्री ने भी आज तक कोई ठोस जवाब नहीं दिया. सोन नहरें आठ जिलों की जीवन रेखा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो जल जीवन हरियाली मिशन चलाया है तो इस इलाके की जल जीवन रेखा सोन नहरें ही है. सोन नहरें चलती है तो नदी, नाला, चापाकल सब में पानी आ जाता है. इसे सुदृढ़ करना अत्यंत आवश्यक है. इस पर अगर सरकार ने नहीं सुना तो किसानों को संगठित कर आंदोलन में भी जायेंगे.
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