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Aurangabad News : पचार पहाड़ी पर 1600 साल पुराने बौद्ध विहार के अवशेष

Aurangabad News: संरक्षण और शोध से बनेगा इतिहास प्रेमियों व पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र

सुजीत कुमार सिंह, औरंगाबादप्राचीन मगध के कई गांवों में आज भी बौद्ध विहारों के अवशेष बिखरे पड़े हैं. इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण स्थल है पचार पहाड़ी, जो औरंगाबाद जिले के रफीगंज प्रखंड मुख्यालय से तीन किमी की दूरी पर दक्षिण-पूर्व में स्थित है. इस पहाड़ी के शीर्ष पर लगभग 1600 साल पुराने गुप्तकालीन दो-मंजिला बौद्ध विहार के अवशेष मौजूद हैं. यहां पहुंचने पर गुप्त कालीन बनावटें दिखती है. कई ऐसी चीजें हो जो आकर्षित करती है और कौतुहल में भी डालती है. यदि पुरातत्व विभाग इस स्थल पर ध्यान दे, तो इसे पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता है. पचार पहाड़ी पर स्थित यह बौद्ध विहार गुप्तकालीन स्थापत्य और बौद्ध संस्कृति का महत्वपूर्ण प्रमाण है. यहां से प्राप्त पुरावशेषों के आधार पर यह क्षेत्र भारत के समृद्ध इतिहास और प्राचीन धार्मिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सिद्ध होता है. यदि उचित संरक्षण और शोध किया जाये, तो यह स्थल इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों के लिए एक आकर्षण केंद्र बन सकता है.

उत्कृष्ट वास्तुकला को दर्शाती है बनावटें

रफीगंज निवासी व पटना विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग के छात्र प्रिंस कुमार के अनुसार, यह दो-मंजिला बौद्ध विहार गुप्तकालीन ईंटों से निर्मित है. पुरातात्विक अन्वेषण से पता चलता है कि इस विहार की नींव एक प्राचीन और बड़े स्तूप पर रखी गयी थी. बौद्ध विहार में चार कक्ष और एक बरामदा है. इसकी दीवारें 10 फुट से अधिक मोटी हैं. ऊपरी भाग गुप्तकालीन ईंटों से बना है, जबकि निचला भाग कुषाणकालीन ईंटों से निर्मित है. प्रिंस ने बताया कि यहां से भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में छोटी-बड़ी मूर्तियां प्राप्त हुई हैं, जिनमें धर्मचक्र परिवर्तन मुद्रा, ध्यान मुद्रा व भूस्पर्श मुद्रा प्रमुख हैं. एक बौद्ध देवता महाकाल की प्रतिमा भी मिली है. अन्य पुरातत्विक वस्तुओं में रेड वेयर, मृदभांड व पत्थर की पट्टियां (सलेब) शामिल हैं. विहार के आस-पास प्राचीन मिट्टी के बर्तनों (पॉटरी) और ईंटों के अवशेष भी मिले हैं. बौद्ध विहार के निर्माण में चूना प्लास्टर का उपयोग किया गया है. इसमें कई दीर्घाएँ (गैलरी) मौजूद हैं. फर्श की संरचना आज भी आश्चर्यजनक है. पूरी बनावट समकोणीय है, जो उस समय की उत्कृष्ट वास्तुकला को दर्शाती है.

प्राचीन काल से ही ऐतिहासिक महत्व का केंद्र रहा है पचार

पचार पहाड़ी प्राचीन काल से ही ऐतिहासिक महत्व या यूं कहे शोध का केंद्र रहा है. मगध और बौद्ध इतिहास पर शोध कर रहीं रूपा रंजन ने बताया कि पचार गांव की तुलना भूरहा, दुब्बा, देवकली, नसेर, गुनेरी और मंडा जैसे महत्वपूर्ण बौद्ध पुरातात्विक स्थलों से की जाती है. पचार पहाड़ी प्राचीन राजगृह-उरुवेला-सारनाथ मार्ग पर है. यह वही मार्ग है, जिससे भगवान बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद बोधगया से सारनाथ गये थे. इसी रास्ते में भूरहा और नसेर भी पड़ता है. भुरहा वहीं जगह है जहां भगवान बुद्ध सारनाथ जाने के क्रम में पहली रात गुजारे थे. प्राचीन काल में यह बोधगया और सारनाथ के बीच एक महत्वपूर्ण मार्ग था. इसके आस-पास के गांवों श्रवक, देवकुली, कासमा, चेव, भिक्षणपुरा में नवपाषाण काल से मध्यकाल तक के पुरातात्विक साक्ष्य मौजूद हैं. यहां प्राचीन नगर के संकेत भी मिलते हैं.

पार्श्वनाथ को समर्पित है पाल कालीन गुफा

रफीगंज के सामाजिक कार्यकर्ता विकास कुमार ने बताया कि पाचार पहाड़ी पर पालकालीन गुफा मंदिर भी है, जो 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित है. पहाड़ी की तलहटी में स्थित प्राचीन तालाब, जिसे ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है. उक्त गांव निवासी चंद्रदेश्वर भगत बताते हैं कि पचार गांव की कई प्राचीन मूर्तियां गया और पटना संग्रहालय में संरक्षित हैं.

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