फूल की खेती कर जीवन संवार रहे दधपा के संतोष व किशोरी लीज पर जमीन लेकर कमा रहे लाखों खुशबू से सुगंधित हो रहा है आसपास का वातावरण एक एकड़ में होती है 80 हजार से अधिक आमदनी फोटो नंबर-2,परिचय- लहलहाते गेंदा का फूल अंबा (औरंगाबाद) प्रखंड के दधपा गांव के सरयू मालाकार उसका बेटा संतोष मालाकार व उसी गांव का किशोरी फूल की खेती कर अपना जीवन संवार रहे हैं. अंबा के बतरे नदी के किनारे दोनों ने 10-10 कट्ठा जमीन लीज पर लिया है और कई वर्षों से विभिन्न प्रकार के फूल की खेती कर रहे हैं. सरयू का बेटा संतोष मालाकार व किशोरी बताते हैं कि एक वर्ष में तीन तरह की फूलों की खेती वे कर लेते हैं और इससे उन्हें अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक आमदनी हो रही हैं. दोनों ने 10 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से लीज पर जमीन ली है. फूल की गाछी कोलकाता से मंगाते हैं, जिसमें तकरीबन 12 हजार रुपये प्रति एकड़ खर्च होता है. फूल की खेती करने से एक ओर दोनों परिवार का आमदनी बढ़ा है तो दूसरी ओर आसपास का वातावरण भी सुगंधित रहता है. इससे प्रगतिशील किसानों में औषधीय खेती करने का जज्बा भी पनप रहा है. आम तौर पर धान-गेहूं व अन्य फसल सिंचाई अथवा वातावरण के प्रभाव से नष्ट हो जाता है. मगर फूल की खेती में कम उरर्वक व कम पूंजी के बावजूद अच्छी कमाई हो जाती है. इनके फूलों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. स्थानीय बाजार समेत नवीनगर, औरंगाबाद, डेहरी, सासाराम व झारखंड प्रदेश के डालटेनगंज आदि कई बाजार में अंबा का फूल इन दिनों बिक रहा है. फिलहाल गेंदा, गुलजाफरी व चीना चेरी फूल की खेती की है. उत्पादक बताते हैं कि तीन माह में छह से आठ बार इसे पटवन करना पड़ता है. एक बार पटवन करने में लगभग पांच लीटर तेल लगता है. एक एकड़ में होती है 18 हजार रुपये खर्चफूल की खेती से जुड़े किसान बताते हैं कि एक एकड़ में फूल की खेती करने में तकरीबन 18 हजार रुपया खर्च होता है. कोलकाता से लाल व पीला फूल की गाछी मंगा कर लाये हैं. किसान बताते हैं कि प्रति गाछी चार रुपये के दर से मिला है. इसे रोग से बचाने के लिए प्रति एकड़ दो हजार के लगभग दवा पर खर्च होता है. पौधा पर मिट्टी डालते समय यूरिया, डीएपी खाद दिया जाता है. पौधा को लगाने से लेकर अंतिम समय तक पटवन पर प्रति एकड़ चार से पांच हजार रुपये खर्च होता है.सरकारी सुविधा से वंचित हैं किसानकृषि विभाग द्वारा फूल की खेती पर अनुदान देने का प्रावधान है, पर अब तक इन दोनों किसानों को किसी तरह की सरकारी सुविधा उपलब्ध नहीं हुई हैं. किसान बताते हैं कि विगत तीन वर्षों से हम खेती कर रहे है, पर अब तक कोई अधिकारी नहीं आये हैं. सरकारी सुविधाओं का लाभ न मिलने से उनमें अंसतोष व्याप्त है. हालांकि, कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक युवाओं को ट्रेनिंग देने यहां आये थे. क्या है फायदाफूल की खेती केवल आमदनी का साधन नहीं, बल्कि इससे कई तरह का लाभ मिलता हैं. विशेषज्ञों की माने तो इससे वातावरण पर अच्छा प्रभाव पड़ता है. इसके साथ ही गेंदा का फूल कीट के प्रकोप को भी समाप्त करता है. अन्य फसलों में लगने वाले कीट को यह अपनी ओर आकर्षित करता है. डीएचओ डाॅ श्रीकांत बताते हैं कि यदि टमाटर व गेंदा के फूल की अंर्तवती खेती की जाये, तो टमाटर की उपज अधिक होती है. साथ ही टमाटर पर किसी तरह का रासायनिक दवाओं का छिड़काव नहीं करना पड़ता है. डीएचओ बताते हैं कि दो लाइन टमाटर व एक लाइन में गेंदा के फूल लगाने से टमाटर में लगने वाले फल छेदक कीट को फूल अपनी ओर आकर्षित कर लेता है. जिससे फल में छेद नहीं होता है और रासायनिक दवाओं के छिड़काव भी नहीं करना पड़ता है. एक एकड़ में लगाया जाता हैं 15 हजार पौधेडीएचओ ने बताया कि किसान एक एकड़ में 15 हजार गेंदा के फूल के पौधे लगा सकते है. तीन माह की गेंदा फूल की खेती में एक पौधा से एक से डेढ़ किलो फूल निकलता है.40 से 50 रुपये किलो होती है बिक्रीगेंदा का फूल 40 से 50 रुपये किलो बाजार में बिक रहा है. डीएचओ के अनुसार एक एकड़ में 20 हजार किलो से अधिक उपज होगी, जिसका बाजार मूल्य 80 हजार से एक लाख रुपये तक होती है. 20 हजार रुपये लगा कर मात्र तीन माह की खेती में एक लाख की आमदनी शायद ही कोई फसल से हो सकती है. ऐसे में फूल की खेती उत्पादकों के लिए काफी लाभदायक है. गेंदा के फूल के कई प्रजाति के पौधे बाजार में उपलब्ध है, जिसमें साबौर हजारा, पूसा नारंगी, बंगाली गेंदा आदि प्रमुख हैं. व्यावसायिक दृष्टि से पूसा नारंगी व बंगाली प्रजाति के पौधे अधिक लाभदायक हैं.मच्छर से करता है बचावडीएचओ के मानें तो गेंदा का फूल हमें मच्छर से भी बचाता है. उन्होंने बताया कि यदि घर के आस पास इसकी खेती की जाये तो मच्छर का प्रभाव कम होता है. उन्होंने आर्थिक व धार्मिक दृष्टि के साथ-साथ वातावरण को शुद्धता बनाये रखने में भी गेंदा के फूल की खेती को आवश्यक बताया है.
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फूल की खेती कर जीवन संवार रहे दधपा के संतोष व किशोरी
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