आरा. प्राकृत एवं जैन शास्त्र विभाग तथा भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में प्राच्य वाड्मय में धर्म दर्शन: एक अनुचिंतन विषय पर आयोजित सांगोष्ठी में षष्ठम सत्र में प्रथम वक्ता डॉ उदिता रही. जिन्होंने जैन धर्म में आत्म तत्व विषय पर अपना व्याख्यान दिया. दूसरी वक्ता चंद्रप्रभा ने जीव का विवेचन करते हुए कर्म सिद्धांत की चर्चा की. तीसरी वक्ता निधि राज ने बौद्ध धर्म में वर्णित चेतना विषय को प्रतिपादित करते हुए कर्म एवं कर्म फल की चर्चा की. प्राच्य भाषा को प्राकृत भाषा का अवदान विषय पर सत्यम पासवान ने अपने विचार प्रकट करते हुए भौगोलिक व्यवस्था के अनुसार भाषाओं एवं बोलियों में विविधता जो विद्यमान है उसको रेखांकित किया तथा इसे भारतीय संस्कृति की आत्मा बताया. चौथी वक्ता चांदनी कुमारी ने ज्ञान विषय पर अपना पत्र शोध लेख प्रस्तुत किया और बताया कि ज्ञान ही जीवन का सार है. इसके बाद ज्योति कुमारी ने भारतीय दर्शन में योग पर व्याख्यान देते हुए अष्टांग योग की व्याख्या करते हुए मन एवं शरीर के स्वच्छता की चर्चा की. रजनी कुमारी ने आत्म तत्व का दार्शनिक विवेचन करते हुए बताया कि तत्वों का चित्रण अध्ययन सूक्ष्म एवं जटिल होने के साथ-साथ अत्यंत सरल भी है और संख्यत्व जीवन के सृष्टि जैन दर्शन के अनुसार व्याख्याकित है. डॉ आशीष कुमार ने कहा कि ज्ञान हमें आत्म शक्ति की ओर अग्रसर करता है. गीता के योग विषय पर बी आर अंबेडकर विश्वविद्यालय के आशीष कुमार ने विवेचन करते हुए कहा कि ध्यान हमे योग, आत्म एवं परमात्मा के मिलन का सिद्धांत है. सोनू पासवान ने जैन धर्म में मुख्य विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए आत्म शुद्धि के द्वारा ज्ञान दर्शन चरित्र के संयोजन से मोक्ष प्राप्त करने के साधन को रेखांकित किया. रजनीश भारती ने धर्म के स्वरूप की व्याख्या करते हुए आचार्य, व्यवहार, नैतिकता आदि को इसका आधार बताया. बौद्ध दृष्टि से कर्म के प्रकार पर अपना विचार सोनी गुप्ता ने रखा. बौद्ध दर्शन के कर्म विषय पर अपना शोध लेख प्रस्तुत किया. रूबी कुमारी ने अहिंसा जैन दर्शन में क्या है, इस पर वक्तव्य देते हुए बताया कि अहिंसा हमें शुद्ध जीवन जीने की ओर अग्रसर करती है और हमें प्रेरित करती है. प्रियंका कुमारी ने जैन धर्म के संदर्भ विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए बताया कि आश्रम द्वार हमारे जीवन शुद्धि के लिए अत्यंत आवश्यकता है. वंदना कुमारी ने जैन धर्म में मोक्ष का विश्लेषण करते हुए बतलाया कि सही आचरण सही तपस्या से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता. रिचा कुमारी धर्म दर्शन में प्रेम के विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया और धर्म का संबंध प्रेम से अत्यंत जुड़ा हुआ है ऐसा बताया. विवेक कुमार ने सेतुबांध में राम एक तात्विक विवेचन पर अपना व्याख्यान देते हुए बताया कि राम का चरित्र सभी के लिए अनुप्रिय है. मनीष कुमार सिंह ने जैन धर्म के मोक्ष को प्रतिपादित करते हुए त्रिरत्न को मोक्ष मार्ग का वाहक बताया. वहीं दूसरे सत्र समापन सत्र में विशिष्ट अतिथि डॉक्टर हरेंद्र सिंह ने कहा कि विज्ञान के साथ यदि अध्यात्म को आत्मसात किया जाये, तो विनाश को हम अग्रसर होने से रोक सकते हैं. कर्म के साथ यदि धर्म को नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक सफलता नहीं प्राप्त होगी. विशिष्ट अतिथि प्रो विश्वनाथ चौधरी ने कहा कि जो बार-बार जिसका जय हो, उसे विजय कहते हैं. जो संघर्ष के पसीने से नहाता है, वही इतिहास बदलता है. अहिंसा, सत्य , दया, करूणा, मर्यादा इत्यादि के पालन करने पर जोर उन्होंने दिया. मुख्य अतिथि लंगट सिंह कॉलेज मुजफ्फरपुर दर्शन विभागाध्यक्ष प्रो विजय कुमार सिंह ने बताया कि वैदिक परंपरा में योग का आरंभ यम से होता है. वही जैन परंपरा में भी विद्यमान है योग के लिए मन, वचन का सहयोग जैन धर्म में बताया गया है. अध्यक्षता करते हुए प्रकाश राय ने बताया कि धर्म दर्शन जीवन के वास्तविक स्वरूप को पाने का साधन है. इस अवसर पर प्रो किस्मत कुमार सिंह, प्रो विजय कुमार सिंह, डॉ रमेश कुमार, डॉ प्रतिमा, डॉ आमिर मोहम्मूद, डॉ अशोक कुमार, डॉ रामधनी राम, डॉ मिथिलेश, डॉ ट्विंकल केसरी उपस्थित थे. इस सत्र का संचालन डॉ पूर्ति माहौर ने किया. इस अवसर पर संयोजक प्रो दूधनाथ चौधरी ने बताया कि यह तीन दिवसीय सेमिनार अपनी सफलता को प्राप्त किया. इस पर लगभग 200 लेख यहां पढ़े गए हैं. सभी सत्रों को मिलाकर, आज के दिन लगभग 30 शोध लेख को पढ़ा गया. इस संगोष्ठी को सफल बनाने के लिए मीडिया का योगदान अत्यंत सराहनीय है.
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