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दिग्गजों को विश्वकप 2015 की टीम में जगह न मिलने के लिए धौनी को जिम्मेदार ठहराना कितना उचित?

विश्वकप क्रिकेट 2015 के लिए संभावित टीम सदस्यों में से 30 खिलाड़ियों की सूची कल भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के चयनकर्ताओं ने जारी कर दी है. इस सूची के जारी होते ही कई सवाल खड़े हो गये हैं. जिनमें से सर्वाधिक चर्चित मुद्दा यह है कि आखिर क्यों इन संभावित खिलाड़ियों की सूची में वीरेंद्र […]

विश्वकप क्रिकेट 2015 के लिए संभावित टीम सदस्यों में से 30 खिलाड़ियों की सूची कल भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के चयनकर्ताओं ने जारी कर दी है. इस सूची के जारी होते ही कई सवाल खड़े हो गये हैं. जिनमें से सर्वाधिक चर्चित मुद्दा यह है कि आखिर क्यों इन संभावित खिलाड़ियों की सूची में वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, गौतम गंभीर, जहीर खान और हरभजन सिंह का नाम शामिल नहीं है.

इस बात को लेकर कई लोग भावनात्मक प्रतिक्रियाएं भी दे रहे हैं, मसलन जिस युवराज सिंह ने टीम के लिए खेलते हुए मैदान पर खून की उल्टियां की उन्हें टीम में जगह क्यों नहीं दी जायेगी? कई लोग चयनकर्ताओं पर पक्षपात करने का आरोप लगा रहे हैं, तो कुछ लोगों का कहना है कि महेंद्र सिंह धौनी राजनीति करते हैं.

उन पर आरोप लगाया जाता है किउन्होंने अपने से सीनियर को किनारे करने के लिए चयनकर्ताओं पर दबाव बनाया और कप्तान बनने के बाद से वे हमेशा ऐसा ही करते रहे हैं. जिसके कारण सहवाग, युवराज और गंभीर को टीम से बाहर जाना पड़ा. लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या महेंद्र सिंह धौनी की इन खिलाड़ियों से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी है? क्या उक्त खिलाड़ी महेंद्र सिंह धौनी के प्रतिद्वंद्वी हैं? अगर नहीं तो आखिर क्यों महेंद्र सिंह धौनी इन खिलाड़ियों को टीम से निकलवाने की कोशिश करेंगे.

विश्वकप 2011 में इन खिलाड़ियों का प्रदर्शन अच्छा था. इन सभी ने टीम को जिताने में अपना भरपूर योगदान दिया था. विश्वकप 2011 पर भारत का कब्जा बनाने के लिए कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने भी अमूल्य योगदान दिया था, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. जहां तक बात सहवाग और युवराज की है, तो यह दोनों धौनी से सीनियर हैं और इनकी बैंटिंग स्टाइल निसंदेह धौनी से बेहतर है.

धौनी के शॉट में वह खूबसूरती कभी नहीं रही, जो सहवाग के शॉट में है. धौनी अपनी इच्छाशक्ति और शारीरिक ताकत के बूते शॉट को बाउंड्री के बाहर भेजते हैं. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि धौनी के पास टीम को जीत दिलाने की रणनीति है और वे हमेशा विपरीत परिस्थितियों में टीम को जीत की ओर लेकर गये हैं.

टेस्ट और एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच में वे भारत के अबतक के सबसे सफल कप्तानों में गिने जाते हैं. 2007 में महेंद्र सिंह धौनी ने टीम की कमान संभाली. उनके कप्तान बनने के बाद टीम का प्रदर्शन काफी सुधरा. कप्तान बनते ही उनके नेतृत्व में टीम ने टी-20 का विश्वकप जीता, 2010 में एशिया कप जीता और 2011 में विश्वकप जीता. महेंद्र सिंह धौनी के नेतृत्व में पहली बार ऐसा हुआ कि वर्ष 2013 में आईसीसी टेस्ट रैंकिग में भारत शीर्ष पर पहुंचा.

उनकी कप्तानी में आईसीसी के एकदिवसीय रैंकिंग में भी टीम इंडिया शीर्ष पर पहुंची है. ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, वेस्टइंडीज और पाकिस्तान को भी टीम इंडिया से उनकी कप्तानी में हार का सामना करना पड़ा. टीम का कप्तान बने महेंद्र सिंह धौनी को सात वर्ष हो गये हैं और धौनी ने 33 वर्ष पूरे कर लिये हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि धौनी ने अपनी टीम में कई परिवर्तन किये और उन्होंने युवाओं को मौका दिया. लेकिन यह कहना है कि वे सीनियर का अपमान करते हैं, यह बात गले नहीं उतरती. हां, इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्होंने इस बात को कहने की हिम्मत की कि वह खिलाड़ी कितना भी बड़ा क्यों न हो, अगर उसका प्रदर्शन टीम के लिए फायदेमंद न हो, तो उसके लिए टीम में जगह नहीं होनी चाहिए.

जहां तक बात टीम चयन की है, तो बीसीसीआई के चयनकर्ता टीम का चयन करते हैं. संदीप पाटिल इस टीम के चेयरमैन हैं. उनके अतिरिक्त इस टीम में नॉर्थ जोन का विक्रम राठौड़, सेंट्रल जोन का राजिंदर हंस, ईस्ट जोन का सबा करीम और साउथ जोन का रोजर बिन्नी प्रतिनिधित्व करते हैं. इनके पास वोटिंग राइट है. चयनकर्ता टीम के कप्तान और कोच से सलाह लेते हैं, लेकिन इनके पास वोटिंग राइट नहीं है. ऐसे में यह बात कहना है कि टीम सलेक्शन में धौनी की अहम भूमिका बेमानी है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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