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IPL सट्टेबाजी : हाईकोर्ट ने क्रिकेटर श्रीसंत और अन्य को जारी नोटिस की स्थिति जाननी चाही

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपने रजिस्ट्रार को यह पता लगाने का निर्देश दिया कि क्या क्रिक्रेटर एस श्रीसंत, अजीत चंडीला और अंकित चव्हाण के साथ आरोपमुक्त किये गये सभी लोगों पर नोटिस तामील हो गया है. ये नोटिस 2013 के आईपीएल -6 सट्टेबाजी मामले में पुलिस की अपील पर जारी […]

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपने रजिस्ट्रार को यह पता लगाने का निर्देश दिया कि क्या क्रिक्रेटर एस श्रीसंत, अजीत चंडीला और अंकित चव्हाण के साथ आरोपमुक्त किये गये सभी लोगों पर नोटिस तामील हो गया है.

ये नोटिस 2013 के आईपीएल -6 सट्टेबाजी मामले में पुलिस की अपील पर जारी किये गये थे. न्यायमूर्ति सुनील गौड़ ने यह मामला रजिस्ट्रार के पास भेजा है जो संबंधित पक्षों पर नोटिस की तामील होने के बारे में रिपोर्ट पेश करेंगे.

अदालत ने कहा, यह मामला रजिस्ट्रार के समक्ष सूचीबद्ध कीजिए जो रिपोर्ट देंगे कि क्या प्रतिवादियों में कोई ऐसा तो नहीं है जिसे नोटिस नहीं मिला. अदालत ने रजिस्ट्रार के सामने यह मामला 10 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध किया है। दिन में सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दयान कृष्णन ने कहा कि सभी प्रतिवादियों को नोटिस दे दिया गया है और उनके वकील उनका प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं.

उच्च न्यायालय ने सभी 36 प्रतिवादियों को 18 नवंबर, 2015 को नोटिस जारी किये थे जिन्हें इस मामले में आरोपमुक्त कर दिया गया था. पुलिस ने इस मामले में क्रिक्रेटरों और कथित सट्टेबाजों को निचली अदालत से क्लीनचिट मिलने के बाद दो सितंबर, 2015 को उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी.

दिल्ली पुलिस ने निचली अदालत के फैसले को दोषपूर्ण बताते हुये उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी. अपील में कहा गया है कि निचली अदालत का आदेश कानून के सामने टिक नहीं सकता क्योंकि आरोपियों को आरोपमुक्त करने के लिए दिये गये तर्क और निष्कर्ष सही नहीं हैं.

उच्चतम न्यायालय ने 15 मार्च भारतीय क्रिक्रेट नियंत्रण बोर्ड की अनुशासन समिति के आदेश को दरकिनार कर दिया था. समिति ने सट्टेबाजी में श्रीसंत की कथित संलिप्तता को लेकर उन पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया था.

श्रीसंत, चंडालिया, चव्हाण राजस्थान रॉयल्स आईपीएल टीम का हिस्सा थे और तब उन पर सट्टेबाजी में कथित संलिप्तता को लेकर जीवन भर के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था. शीर्ष अदालत ने कहा था कि अनुशासन समिति तीन महीने के अंदर इस पर पुनर्विचार करे कि श्रीसंत की सजा क्या हो और उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिलेगा.

निचली अदालत ने 2015 में अपने फैसले में कहा था कि जांचकर्ता महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून के तहत प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने के लिए सभी आवश्यक अवयव नहीं जुटा पाये. उसने कुछ सट्टेबाजों समेत 36 आरोपियों के खिलाफ लगे आरोप हटा दिये थे. अपनी अपील में दिल्ली पुलिस ने दलील दी कि निचली अदालत ने मकोका के प्रावधानों की पूरी गलत व्याख्या की.

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