Pitru Paksha 2025: हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष को बेहद पवित्र समय माना गया है. यह 15–16 दिनों की अवधि होती है, जिसमें लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं. मान्यता है कि इस दौरान श्रद्धा से किया गया पिंडदान पितरों को संतुष्टि देता है और परिवार में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद लाता है. इस वर्ष पितृ पक्ष 21 सितंबर 2025 को समाप्त होगा. परंपरागत रूप से श्राद्ध और तर्पण का कार्य पुरुष सदस्य ही करते हैं, लेकिन अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या महिलाएं भी इन कर्मकांडों को कर सकती हैं?
क्या महिलाएं कर सकती हैं श्राद्ध?
धर्मग्रंथों और कथाओं के अनुसार, यदि परिवार में पुरुष उत्तराधिकारी न हो, तो महिलाएं भी श्राद्ध और तर्पण कर सकती हैं. आस्था और श्रद्धा से किया गया हर कर्म पितरों को प्रसन्न करता है.
मां सीता द्वारा पिंडदान का प्रसंग
रामायण के अनुसार, वनवास के समय श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण गया पहुंचे थे. वहां एक ब्राह्मण ने पिंडदान हेतु मदद मांगी. श्रीराम और लक्ष्मण की अनुपस्थिति में ब्राह्मण के आग्रह पर सीता जी ने ही रेत से पिंड बनाकर फल्गु नदी तट पर पितरों को अर्पित किए. वट वृक्ष, केतकी पुष्प, नदी और गाय को साक्षी मानकर किया गया यह श्राद्ध राजा दशरथ की आत्मा को शांति प्रदान कर गया. बाद में स्वयं दशरथ जी ने आकर सीता जी के इस पवित्र कर्म की पुष्टि की.
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गरुड़ पुराण का उल्लेख
गरुड़ पुराण में भी स्पष्ट कहा गया है कि यदि परिवार में पुरुष न हों तो महिलाएं भी श्राद्ध और तर्पण कर सकती हैं. बेटियां अपने माता-पिता के लिए श्राद्ध कर सकती हैं और अविवाहित या अकेली महिलाएं भी पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकती हैं.
पितृ पक्ष 2025 के शेष प्रमुख श्राद्ध तिथि
पितृ पक्ष 2025 के शेष प्रमुख श्राद्ध तिथि
- षष्ठी श्राद्ध: 12 सितंबर (शुक्रवार)
- सप्तमी श्राद्ध: 13 सितंबर (शनिवार)
- अष्टमी श्राद्ध: 14 सितंबर (रविवार)
- नवमी श्राद्ध: 15 सितंबर (सोमवार)
- दशमी श्राद्ध: 16 सितंबर (मंगलवार)
- एकादशी श्राद्ध: 17 सितंबर (बुधवार)
- द्वादशी श्राद्ध: 18 सितंबर (गुरुवार)
- त्रयोदशी श्राद्ध एवं मघा श्राद्ध: 19 सितंबर (शुक्रवार)
- चतुर्दशी श्राद्ध: 20 सितंबर (शनिवार)
- सर्वपितृ अमावस्या: 21 सितंबर (रविवार)
पितृ पक्ष केवल कर्मकांड का समय नहीं, बल्कि यह अपने पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्रद्धा प्रकट करने का अवसर है. धर्मग्रंथों के अनुसार, आस्था और नीयत से किया गया कर्म पुरुष हो या महिला—दोनों के द्वारा समान रूप से स्वीकार्य है और पितरों को प्रसन्न करता है.
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ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष, वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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