भगवान गणेश कोई साधारण देवता नहीं हैं. वे साक्षात अनंतकोटि ब्रह्माण्डनायक जगन्नियन्ता परातत्व ब्रह्म ही हैं. श्रीगणेश तैतीस करोड़ देवी देवताओं में भी परम आराध्य हैं. प्रत्येक कार्य के प्रारंभ में भगवान की श्रीगणेश की पूजा अत्यंत आवश्यक है. पत्र या ग्रंथ लिखते समय सबसे पहले ‘श्रीगणेशाय नम:’ लिखकर ही आगे कुछ लिख जाता है. श्रीगणेश प्रथम पूज्य हैं. परमात्मा के विवाह में भी भगवान श्रीगणेश की पूजा सर्वप्रथम की गयी थी. भगवान श्रीराघवेंद्र का जब विवाह हुआ तो उन्होंने स्वयं अपने हाथों से श्रीगणेशजी की बड़े प्रेम से पूजा की थी. भगवान शंकर और पराम्बा पार्वती की शादी में भी भगवान गणेश की पूजा की गयी थी.
शास्त्रों में उल्लेखित है कि जिन योगियों सिद्धों वेदान्तियों और ब्रह्मज्ञानियों ने अपने साधन के अभिमानवश भगवान श्रीगणेश की उपेक्षा की ओर अपने ज्ञान, योग और सिद्धि आदि के बल पर ही आगे बढ़ने का प्रयास किया उनको अपने जीवन में भीषण विघ्न बाधाओं का सामना करना पड़ा. गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी अपने परम ईष्टदेव भगवान श्रीरामसीता प्राप्ति के लिए भगवान श्रीगणेश की वंदना करना परमावश्यक माना था. उन्होंने विनय पत्रिका के प्रथम पद में उनकी स्तुति करते हुए कहा है. –
‘गाइये गनपति जगबंदन । संकर-सुवन भवानी-नंदन ।।’
भगवान श्रीगणेश ने ही महाकाव्य महाभारत को लिखा और हिन्दुओं पर बड़ा उपकार किया है. समस्त विश्व साहित्य में महाभारत कोई साधारण किताब नहीं बल्कि साक्षात पंचम वेद है. यह अनंत विद्याओं का भंडार है. उसपर आज समस्त विश्व मुग्ध है.
भगवान श्रीगणेश के भक्तों का परम कर्त्तव्य
1. भगवान श्रीगणेश की नित्य पूजा करें और प्रात: काल उठकर सबसे पहले उनके चित्र का दर्शन करें.
2. किसी कार्य के कारंभ के पूर्व श्रीगणेश का स्मरण करना ना भूलें.
3. अपना घर या मकान बनाते समय द्वार पर भगवान श्रीगणेश की सुंदर प्रतिमा लगाना ना भूलें.
4. समाज के लिए हानिकारक तासमी चीजों के प्रचार प्रसार में भगवान श्रीगणेश के प्रतीक का उपयोग ना करें.
5. भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए स्वयं भी सात्विक बनें.
6. पीली मिट्टी से भगवान गणेश की प्रतिमा बनाकर उनका पूजन करें और बाद में उसे नदी में प्रवाहित करें.
7. पूज्य ब्राह्मणों के द्वारा श्रीगणेश की कथा का श्रवण करें. गणेश मंदिर में जाकर श्रीगणेश का दर्शन और पूजन करें.