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प्रेम में होने का अर्थ
मूल रूप से प्रेम का मतलब है कि कोई और आपसे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो चुका है. यह दुखदायी भी हो सकता है, क्योंकि इससे आपके अस्तित्व को खतरा है. जैसे ही आप किसी से कहते हैं, ‘मैं तुमसे प्रेम करता हूं’, आप अपनी पूरी आजादी खो देते हैं. आपके पास जो भी है, आप […]
मूल रूप से प्रेम का मतलब है कि कोई और आपसे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो चुका है. यह दुखदायी भी हो सकता है, क्योंकि इससे आपके अस्तित्व को खतरा है. जैसे ही आप किसी से कहते हैं, ‘मैं तुमसे प्रेम करता हूं’, आप अपनी पूरी आजादी खो देते हैं. आपके पास जो भी है, आप उसे खो देते हैं.
जीवन में आप जो भी करना चाहते हैं, वह नहीं कर सकते. बहुत सारी अड़चनें हैं, लेकिन साथ ही यह आपको अपने अंदर खींचता चला जाता है. यह एक मीठा जहर है, बेहद मीठा जहर. यह खुद को मिटा देनेवाली स्थिति है. अगर आप खुद को नहीं मिटाते, तो आप कभी प्रेम को जान ही नहीं पायेंगे. आपके अंदर का कोई-न-कोई हिस्सा मरना ही चाहिए.
आपके अंदर का वह हिस्सा, जो अभी तक ‘आप’ था, उसे मिटना होगा, जिससे कि कोई और चीज या इनसान उसकी जगह ले सके. अगर आप ऐसा नहीं होने देते, तो यह प्रेम नहीं है, बस हिसाब-किताब है, लेन-देन है. जीवन में हमने कई तरह के संबंध बना रखे हैं, जैसे पारिवारिक संबंध, वैवाहिक संबंध, व्यापारिक संबंध, सामाजिक संबंध आदि. ये संबंध हमारे जीवन की बहुत सारी जरूरतों को पूरा करते हैं. ऐसा नहीं है कि इन संबंधों में प्रेम जताया नहीं जाता या होता ही नहीं. बिल्कुल होता है. प्रेम तो आपके हर काम में झलकना चाहिए. आप हर काम प्रेमपूर्वक कर सकते हैं.
लेकिन जब प्रेम की बात हम एक आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में करते हैं, तो इसे खुद को मिटा देने की प्रक्रिया की तरह देखते हैं. जब आप प्रेम में डूब जाते हैं तो आपके सोचने का तरीका, आपके महसूस करने का तरीका, आपकी पसंद-नापसंद, आपका दर्शन, आपकी विचारधारा, सब चीजें दबल जाती हैं. आपके भीतर ऐसा अपने आप होना चाहिए और इसके लिए आप किसी और इनसान का इंतजार मत कीजिए कि वह आकर यह सब करे.
इसे अपने लिए खुद कीजिए, क्योंकि प्रेम के लिए आपको किसी दूसरे इनसान की जरूरत नहीं है. अगर आप बस किसी के भी प्रति हद से ज्यादा गहरा प्रेम पैदा कर लेते हैं, जो आप बिना किसी बाहरी चीज के भी कर सकते हैं, तो आप देखेंगे कि इस ‘मैं’ का विनाश अपने आप होता चला जायेगा.
– सद्गुरु जग्गी वासुदेव
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