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भाई श्री से मुलाकात

-हरिवंश- ‘भाई श्री’ उच्चकोटि के साधक हैं. एमबीबीएस की पढ़ाई की. फिर संन्यासी हो गये. अद्भुत प्रतिभा के धनी. शालीन और संवेदनशील. स्नेह, उनसे झरता है. प्राचीन और अत्याधुनिक ज्ञान के वह संगम हैं. गहरे अध्येता. विद्वता की प्रतिमूर्ति. पर वह प्रचार नहीं चाहते, इसलिए अपना नाम और परिचय छापने से मना करते हैं. आत्मप्रचार, […]

-हरिवंश-

‘भाई श्री’ उच्चकोटि के साधक हैं. एमबीबीएस की पढ़ाई की. फिर संन्यासी हो गये. अद्भुत प्रतिभा के धनी. शालीन और संवेदनशील. स्नेह, उनसे झरता है. प्राचीन और अत्याधुनिक ज्ञान के वह संगम हैं. गहरे अध्येता. विद्वता की प्रतिमूर्ति. पर वह प्रचार नहीं चाहते, इसलिए अपना नाम और परिचय छापने से मना करते हैं. आत्मप्रचार, साधना में खलल है, यह वह मानते हैं. भारत के एक महान क्रांतिकारी (जिनकी आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका थी. वह गांधी जी के अत्यंत करीबी थे) के वह पुत्र हैं, जो आजादी के बाद साधना-आध्यात्म के क्षेत्र में चले गये. बड़े साधक बने. ‘भाई श्री’ को ‘आध्यात्म’-‘साधना’ विरासत में मिले हैं.

एक युवा मित्र के सौजन्य से ‘भाई श्री’ से पहली मुलाकात हुई. उनकी सादगी, तप, त्याग और विचारों में चुंबक है. उनकी बातें मंत्रमुग्ध करती हैं. विज्ञान से लेकर दुनिया के कोने-कोने में हो रही नयी चीजों-आविष्कारों के बारे में वह बताते हैं. भारत के प्राचीन ग्रंथों को कोट करते हैं. सम्यक दृष्टि से चीजों को देखते-परखते हैं. उनकी वाणी-विचार ताजगी देते हैं. सो फिर मिला. लंबी बातचीत हुई. पढ़िए, बातचीत का एक अंश.

भारत और पश्चिम में बुनियादी फर्क है. भारत में सामूहिक सफलता की कामना की जाती रही है. व्यक्तिगत सफलता की आकांक्षा पश्चिम की देन है. भारत के महान ग्रंथों के मंत्र ‘बहुवचन’ में हैं. यहां वसुधैव कुटुंबकम की मान्यता रही है. वेदों के मंत्र देखें. गायत्री मंत्र देखें.
‘भाईश्री’ प्रह्लाद की प्रार्थना उद्धृत करते हैं. भगवान प्रह्लाद से वरदान मांगने के लिए कहते हैं. बालक प्रह्लाद जवाब देते हैं, मुझे आपकी कृपा नहीं चाहिए. जब तक इस धरती पर एक भी प्राणी दुखी है, मैं सुखी नहीं रह सकता. यह ‘हम’ केंद्रित समाज का चिंतन है. पश्चिम ‘मैं’ केंद्रित समाज है.‘भाई श्री’ कहते हैं, पश्चि›म के विकास मॉडल में तनाव, दुख, डिप्रेशन, हिंसा, द्वेष वगैरह अंतर्निहित हैं.
भाई श्री से …
भारत का संकट यह है कि हमने गांधी को भुला कर ‘मैं’ केंद्रित, पश्चिम के समाज का विकास मॉडल अपना लिया है. इसलिए यहां भी व्यक्तिगत आकांक्षा, अपनी सफलता, निजी मुक्ति की भूख बढ़ रही है. भारतीय समाज के संकट के मूल में यह तथ्य है.
हमारे ॠषियों की कसौटी क्या थी? कौन समाज को सत्य या ब्रšह्म की ओर कितना ले गया? पश्चिम में निजी उत्कृष्टता (इंडिविजुअल एक्सेलेंस), व्यक्तिगत उपलब्धि (इंडिविजुअल परसुट) पर जोर है. आपका बायोडाटा (सीवी) आपकी नियति तय करता है. पर भारत के ॠषियों-महर्षियों का कोई सीवी (बायोडाटा) है? उपनिषदों जैसे महान ग्रंथों के रचनाकारों के नाम आप जानते हैं? याज्ञवल्क्य ने हजारों वर्ष पहले प्रार्थना की. सबके कल्याण के लिए.
इसलिए भारत के विकास मॉडल का नया मूल मंत्र होना चाहिए, ‘सबके सुख में हमारा सुख हो’. यह नयी बात नहीं है. हमारे अतीत के सर्वश्रेष्ठ विचारों का यह अंश है. इसलिए आधुनिक ॠषि विनोबा ने कहा, मनुष्य ही देहमुक्त हो सकता है. मानव ही कह सकता है कि हम शरीर नहीं हैं. पशु तो देह से बंधे होते हैं. आहार, निद्रा, मैथुन और भय से संचालित. इनसे ऊपर उठना ही आत्मप्रगति है. अपने काम-फर्ज को अच्छी तरह जानना और उत्कृष्ट ढंग से उन्हें पूरा करना, यह मानव फर्ज है.
‘भाई श्री’ कार्लाइल को उद्धृत करते हैं, ‘इफ यू नो योर वर्क, यू आर ऑलरेडी ब्लेस्ड’ (अगर आप अपने काम को अच्छी तरह जानते हैं, तो इसका अर्थ है ईश्वर ने आपको वरदान दिया है).‘भाई श्री’ रवींद्रनाथ टैगोर की ‘साधना’ पुस्तक से उद्धरण सुनाते हैं. पढ़ने का सुझाव देते हैं. दो दिनों बाद ही ‘भाई श्री’ वह पुस्तक खरीद कर भिजवाते हैं. फिजिक्स के एक उद्भट विद्वान की सीडी भी साथ में है. पुस्तक और सीडी पाकर लगता है कि हमारी ॠषि परंपरा खत्म नहीं हुई है. जो दूसरों की मुक्ति के लिए जीता हो, वही उस समृद्ध ॠषि परंपरा का आधुनिक प्रतीक है. ‘भाई श्री’ ऐसे ही हैं.

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