मृदु वचनों का उपयोग करने से यह संसार अपने वश में किया जा सकता है. ऐसा करने में आपकी फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं होती और न ही कुछ नुकसान होता है, बल्कि आपका अध्यक्ष, आपका पति, आपकी पत्नी, आपका ग्राहक और आपके मित्र आपके दास बन जाते हैं. उनके दिलों में आपके प्रति एक हार्दिक भावना बनी रहती है. आप उनके अपने हो सकते हैं.
आपके लिए वे सब-कुछ करने के लिए तैयार हो जाते हैं. यदि आपसे कुछ गलती भी हो जाये, तो वे उसको अनदेखा कर देते हैं. इस तरह रहने के लिए नम्रता और आज्ञाकारिता आवश्यक गुण हैं. अहंकार और गर्व से उन्मत्त व्यक्ति आपस में मिलजुल कर नहीं रह सकते. परिणाम यह होता है कि वे अपने को सदा संकट से घिरा हुआ पाते हैं. वे किसी कार्य को सफलतापूर्वक पूरा नहीं कर पाते हैं. प्रत्येक कार्य में उन्हें असफलता ही मिलती है.
व्यवहारपटुता के मार्ग में अहंकार और गर्व दो बड़े अवरोध हैं. व्यवहार कुशल व्यक्ति में सेवा की भावना तीव्र हो जाती है. इससे उसकी स्वार्थपरता का अंत हो जाता है, वह अपनी चीजें दूसरों के साथ बांट कर आनंदित होता है. साथ-साथ कुशल व्यक्ति को निंदा, अपमान और कटु शब्द सुन कर भी शांत रहना पड़ता है. व्यवहारपटुता में यह अनिवार्य नियम है. इसका मूल्य लोककार्य के लिए ही नहीं, वेदांतिक साधना में भी है.
व्यवहारकुशल व्यक्ति को अपने मित्रों की कटु-उक्तियां शांतिपूर्वक सुननी चाहिए, उसमें धैर्य और सहनशीलता के गुण चरम कोटि के होने चाहिए. जब वह मिलजुल कर रहने का अभ्यास करता है, तब ये गुण स्वत: ही उसमें विकसित हो उठते हैं. वह अपने वातावरण के विषय में शिकायतें नहीं करता.
उसे पर्णकुटी में भेजिए, वह वहां रह लेगा. ठंढे स्थानों में भेजिए, वहां रह लेगा. अफ्रीका की गरमी में भेजिए, वह वहां भी रह लेगा. उसके मन को कष्ट पहुंचाइए, वह शांतिपूर्वक सहन कर लेगा. उसकी निंदा कीजिए, वह प्रसन्न ही बना रहेगा. अंततोगत्वा यह व्यवहारपटुता आत्मज्ञान में परिणत हो जाती है. ऐसा व्यक्ति तीनों लोकों का आभूषण बन जाता है. ऐसा ही व्यक्ति प्रसन्नता और सफलता का भागी बनता है.
– स्वामी शिवानंद सरस्वती