जिस प्रकार शरीर बल को बढ़ाने के लिए आहार, व्यायाम एवं विशेष उपचारों का सहारा लिया जाता है, उसी प्रकार मनोबल के लिए भी ध्यान, धारणा आदि यौगिक अभ्यासों की जरूरत होती है. चिंतन में उत्कृष्टता, चरित्र में आदर्शवादिता और व्यवहार में शालीनता का समावेश करने से मनोबल की अभिवृद्धि होती है. मन का शरीर पर पूरी तरह नियंत्रण है.
विज्ञान की नवीनतम शोधों ने उन ऋषि निर्धारणों की पुष्टि की है. संकल्प बल से स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीरों का उत्कर्ष होता है. यदि मनोबल गिरे या विकृत दिशा में चले, तो उसका परिणाम पतन और पराभव के रूप में सामने आयेगा. यह कथन आंशिक रूप से सही है कि शरीर बीमार होने पर मनोबल भी गिरता है, किंतु यह निष्कर्ष-प्रतिशत सही है कि मनोबल गिरेगा, तो शरीर विचित्र रोगों से घिरने लगेगा. यदि मनोबल दृढ़ हो, तो गांधी और विनोबा जैसे दुर्बल दिखनेवाले भी संकल्प बल के सहारे बड़े-बड़े संकल्प करते और अपनी मानसिक समर्थता के सहारे उन्हें पूर्ण करके दिखाते हैं. जिनका मनोबल गिर गया, वे साधारण कामों को भी पर्वत के समान भारी मानते हैं. वह उत्साह और साहस ही है, जिसके सहारे सामान्य लोग बड़े काम कर दिखाते हैं.
नेपोलियन भी शारीरिक दृष्टि से सामान्य मनुष्यों जैसा ही था, पर जिस भी काम को हाथ में लेता, उसे हर कीमत पर पूरा करके दिखाता था. मनोबल के धनी कुछ भी करने में समर्थ होते हैं. भीष्म का सारा शरीर बाणों से बिंध रहा था, फिर भी वे उत्तरायण सूर्य आने तक छह महीने उसी शरीर में प्राण धारण किये रहे. राणा सांगा को साठ गहरे घाव लगे थे, तो भी वे लड़ाई के मैदान में पूर्ववत् अपना जौहर दिखाते रहे.
आद्य शंकराचार्य भगंदर के फोड़े की व्यथा 16 वर्ष तक लगातार सहते हुए भी ग्रंथ लेखन और देशव्यापी भ्रमण करते रहे. विनोबा ने अल्सर के फोड़े की व्यथा सहते हुए भी, बीस वर्ष उसी स्थिति में भूदान के निमित्त हजारों मील का परिभ्रमण जारी रखा. यह सब मनोबल का चमत्कार है. तप तितीक्षा उन्हीं में आते हैं. मनीषियों ने मनोबल बढ़ाने के कई उपाय बताये हैं. उनका अभ्यास करना चाहिए.
-आचार्य महाप्रज्ञ